राम नाम बस एक अधारा..शारदानंद महराज

BHASKAR MISHRA
6 Min Read

IMG_20151202_072729बिलासपुर—सात्विक भोजन, संस्कारी पहनावा, सुन्दर बोल वचन ही अच्छे भाव को पैदा करते हैं। जब ये चारों मिल जाते हैं तो भक्ति का रास्ता अपने आप बन जाता है। जीवन में चौदह प्रकार के यज्ञ होते हैं। परीक्षित ने सुनकर यज्ञ किया। अक्रूर ने भगवान को देखने यात्रा कर यज्ञ किया। प्रहलाद ने जिव्हा यज्ञ किया। अन्त में शरणागत ने उन्हें अपने शरण में लिया। रामायण में भी भगवान के चौदह निवास बताए गए हैं। इनमे से पांच कर्मेन्द्रियां और पांच ज्ञानेन्द्रियां प्रमुख हैं। ईश्वर हमेशा उनके साथ रहता है जिसने मन,वचन और सच्चे कर्म से याद किया। अन्यथा हमारा सारा प्रयास राक्षसों को समर्पित हो जाता है। यह बातें स्वामी शारदानंद जी सरस्वती ने विनोवानगर स्थित बृजेश अग्रवाल के निवास भगवान शिव की आराधना के बाद भक्तों से कही।

             
Join Whatsapp Groupयहाँ क्लिक करे

         श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए स्वामी शारदानंद जी सरस्वती ने कहा कि जो भोजन छीनकर खाता है वह पाप खाता है। हाटलों और जूता पहनकर भोजन ग्रहण करने वाला व्यक्ति कभी सात्विक हो ही नहीं सकता । महाराज जी ने बताया कि वर्तमान समय में हमारे सबसे पहले गाज गिरी है। लोग तामसी भोजन ले रहे हैं। इससे हमारा आचरण दुष्प्रभावित हुआ है। उन्होने कहा जब भोजन सुधरेगा उसी समय सब कुछ सुधर जाएगा।

               भक्तों को संबोधित करते हुए शारदानंद जी ने कहा तामसी सोच और भेष भूषा के साथ भगवान को किया गया अर्पण राक्षस को मिलता है। जिसका नतीजा ही है कि आज आसुरी शक्ति बहुत बलवान हो चुकी है। उन्होंने कहा कि मंदिरों में भीड़ बहुत है लेकिन लाभ किसी किसी को ही मिल रहा। इसका मुख्य कारण हमारी तामसी सोच है। जब तक हम तामसी प्रवृत्ति का परित्याग नहीं करेंगे, हमें ईश्वर का सानिध्य नहीं मिलेगा।

           सरस्वती जी ने कहा कि जब भी हम मंदिर या तीर्थ पर हो ईश्वर को स्मरण और प्रणाम करते रहें। लाभ जरूर मिलेगा। स्वामी जी ने कहा कि मंदिर जाना अच्छी बात है। नहीं जाना उससे अच्छी बात है। ईश्वर को घर में ही सच्चे और सात्विक मन से प्राप्त किया जा सकता है। भीड़ में भगदड़ होती है। ईश्वर का दर्शन नहीं।

           स्वामी शारदानंद जी महाराज ने कहा कि मोह माया में रहकर हम ईश्वर को भूल गये हैं। जब हमें इस बात का अहसास होता है समय बहुत गुजर चुका होता है। हमारी स्थिति चौराहे पर लुटे हुए व्यक्ति की तरह हो जाती है। कुछ नहीं सूझता कि अब हम किधर जाए। उसे किस किस ने लूटा उसी समय उसे इसका ज्ञान हो जाता है। जिसके लिए वह जीवन भर दौड़ा अब वह भी किसी काम की नहीं रह जाती है। विश्व विजेता सिकन्दर का जिक्र करते हुए संत शिरोमणि ने कहा कि उसने दुनिया से विदा होते हुए कहा था कि लोगों को पता चले कि सिकन्दर इस दुनिया से खाली हाथ जा रहा है। इसलिए उसके दोनों हाथ ताबूत के बाहर निकाल कर रखें।

                       स्वामी शारदानंद जी महाराज ने बताया कि आज भोजन, भेष, भाषा और भाव पर सबसे ज्यादा कुठाराघात हुआ है। नतीजन हमे भक्ति का रास्ता नहीं मिल रहा है। जिस दिन हम भोजन, भेष, भाषा को सात्विक करेंगे अपने आप हमारे भाव पवित्र हो जाएंगे। ईश्वर की कृपा बरसने लगेगी। संत ने बताया कि जीवन को धन्य बनाने के लिए केवल परमार्थ ही एक रास्ता है। लेकिन देखने मे आता है कि लोग स्वार्थ, व्यर्थ और निरर्थक बातों में उलझ कर रह गए हैं।

            उन्होने बताया कि आज हमारी स्थिति तालाब की मछलियों की तरह हो गयी है। बीच तालाब में चाल फेंकने वाले मल्लाह की ओर भागने वाली मछलियां जाती हैं। किनारे भागने वाली मछलियां माया जाल में फंस जाती है। दुनियां की मायावी जाल से बचने के लिए सात्विक हमें भोजन, भेष, भाषा और भाव के साथ ईश्वर की शरण में जाने वाला भक्त दुनिया के झंझावातों के बीच अविचल रहता है।

IMG_20151202_072749          महाराज जी ने कहा कि गरीबी का कारण गरीबी नही। ना ही अमीरी का कारण अमीरी ही है। सभी लोग अपनी जगह पर दुखी हैं। लेकिन जिसके दिल में ईश्वर है उसके लिए धन का कोई मूल्य नहीं है। यदि है भी तो उसका सद्पयोग वह परमार्थ में करता है। भोजन, भेष, भाषा और भाव को बनाने में लगाता है। ऐसे लोगों के साथ ईश्वर हमेशा रहते हैं।

          स्वामी जी ने सपेरा का उदाहरण देते हुए कहा कि जिसके पास भगवान का आधार है दुनियां उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती । ऐसे लोगों के सामने दुनिया की तमाम बाधाएं नतमस्तक होती है। एक सामान्य व्यक्ति सांप को देखकर भयभीत हो जाता है लेकिन सपेरा उसी सांप से खिलवाड़ करता और अपना पेट भरता है। ठीक इसी तरह जिसके पास राम नाम है दुनिया उसके सामने नतमस्तक होती है।

close