आम आदमी..आम भी नहीं खा पाया…

BHASKAR MISHRA
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kejariwalबिलासपुर–  व्योमेश त्रिवेदी राजनीति के जाने माने और वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनकी कलम ने हमेशा से पाठक वर्ग के बीच सम-सामयिक विषयों को गंभीरता के साथ उठाया है। उन्होने जब भी लिखा लोगों ने गंभीरता से लिया। उनकी लेखनी ने पाठक वर्ग पर हमेशा से गहरा प्रभाव छोड़ा है।

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      जंगल में लूटतंत्र पर उन्होंने व्यवस्था को लेकर जमकर चोट किया। पाठक वर्ग ने श्रृंखला को पसंद भी किया। एक बार फिर व्योमकेश त्रिवेदी ने दिल्ली की व्यवस्था पर कलम चलाया है। हमेशा से अलग हटकर …पढ़े व्योमकेश की कलम से पढिए सीजी वाल पर केजरीवाल का आम आदमी ..आम भी नहीं खा पाया…..

                 …. मैं कन्फ्यूज हूं…समझ में नहीं आ रहा है कि ये केजरी किस तरह का “वाल” है… ये पालीवाल, अग्रवाल वाला वाल है, या कोई नया आइटम है, जो भी हो, विचार करने पर विवश इसलिए हुआ क्योंकि इसकी हरकतें “वाल” वाली न होकर “वाद” वाली हैं…गंभीरता से विचार करने पर लगता है कि यह पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद की तरह एक नया वाद, अर्थात सत्ता हथियाने के लिए बनी नई विचारधारा ही है, इसलिए इसका नाम “केजरीवाद” होना चाहिए…

                     इस वाद का अभी उत्थान ही हुआ है, आगे के किस्से बाकी हैं, परन्तु इस वाद के जनक की हरकतें देखकर लगता है कि भविष्य में जब इतिहासकार क्षेत्रीय राजनीति का इतिहास लिखेंगे, तो उसमें कुछ इस तरह की बातें होंगी….

.           ..नेतृत्वविहीनता और आपसी फूट के कारण कांग्रेस नामक राष्ट्रीय पार्टी कमजोर हुई, इसके कमजोर होते ही देश के अलग अलग क्षेत्रों में क्षत्रप उग आए, इन क्षत्रपों ने अपनी खास विचारधारा और क्रियाकलापों से अपनी जड़े गहरी जमा लीं और नए नए वाद को जन्म दिया, जैसे बिहार में लालूवाद, उत्तरप्रदेश में मुलायमवाद, मायावतीवाद का जन्म हुआ।

                           उसी तरह दिल्ली में केजरीवाद ने जन्म लिया। इसके जनक केजरीवाल नामक अति चतुर व तीव्रता से रंग बदलने वाले व्यक्ति थे। उस दौर में आमतौर पर राजनीति का अर्थ ही जनता की आंखों में धूल झोंकना होता था, राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पार्टियां नए नए तरीकों से जनता को उल्लू बनाकर सत्ता हथियाने के प्रयासों में लगी रहती थीं, परन्तु केजरीवाद के समर्थक इन सभी से बहुत आगे निकल गए।

इस वाद के जनक ने दशकों पहले सत्ता हथियाने के लिए इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए गरीबी हटाओ नारे को माडीफाई किया, उन्होंने इसे आम आदमी से जोड़ते हुए शानदार वादों की सूची तैयार की, इस सूची में ऐसे वादे शामिल किए गए, जो कभी पूरे हो ही नहीं सकते थे…

वादों के सहारे केजरीवाद के जनक ने देश की राजधानी दिल्ली में हलचल मचाई, एक प्रयास विफल होने के बाद दूसरे प्रयास में उन्होंने आंधी चलाते हुए सत्ता हथिया ली, फिर जब वादे पूरे करने की बात आई तो उन्होंने तेजी से पैंतरा बदला… और वादों से बचने के लिए विवाद शुरू कर दिया….

….हर रोज एक नई कंट्रोवर्सी होती रही, बुलेट ट्रेन की स्पीड से सुर्खियां बदलती रहीं…सुर्खियों में खोया आम आदमी खरीदकर आम भी नहीं खा पाया….और केजरीवाद के समर्थक सत्ता का सुख भोगते हुए खास बन गए….

            …..व्योमकेश त्रिवेदी के कलम से…

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