बिलासपुर– (भास्कर मिश्र)–बचपन का बिलासपुर और आज के बिलासपुर की तुलना उचित नहीं होगा। पहले का बिलासपुर विश्ननीय और सुरक्षित था। समय के साथ बिलासपुर के कल्चर में बदलाव आया है। बचपन के बिलासपुर में जान लेवा प्रतिस्पर्धा नहीं थी। जिन्दगी निर्मल पानी की तरह प्रवाहित थी। कटुता का नामो निशान नहीं था। शाम होते ही तिलकनगर से गोड़पारा तक सड़क के किनारे खटिया की लाइन लग जाती थी। बच्चे देर रात तक टीप रेस खेला करते थे। नन्हें बच्चों की किलकारी दूर तक सुनाई देती थी। अब केवल कल्पना है। बचपन के बिलासपुर को महानगरीय बिलासपुर ने निगल लिया। लेकिन समय के साथ परिवर्तन निश्चित है। कुछ अच्छा हो सकता है तो कुछ बुरा। बिलासपुर के साथ भी ऐसा ही हुआ। यह कहना कि पहले सब कुछ अच्छा था..और अब सब कुछ बुरा… तो गलत होगा। लेकिन इतना तो तय है कि अब बिलासपुर से आत्मीयता गायब हो गयी है।
सीजी वाल से एक मुलाकात में वरिष्ठ पत्रकार बिलासपुर प्रेस क्लब अध्यक्ष शशिकांत कोन्हेर ने बताया कि तब और अब के बिलासपुर में बहुत अंतर आ गया है। जन सामान्य से लेकर जनप्रतिनिधियों की सोच में बदलाव आया है। पहले स्वहित पर जनहित भारी था। परिवार की तरह शहर के जिम्मेदार लोग बिलासपुर की चिंता करते थे। बड़े और छोटे में दूरियां नहीं थी। डॉ.रामचरण राय,रामाधार त्रिपाठी,कृष्णमूर्ती टाह,बीआर यादव,रामबाबू सोंथालिया जैसे लोगों ने हमेशा शहर के लिए ही सोचा। उन पर कभी उंगलियां नहीं उठी। सत्ताधारी और विपक्ष बिलासपुर के विकास के नाम हमेशा एक दूसरे का समर्थन किया। बीआर यादव,राधेश्याम शर्मा,अशोक राव जैसे नेताओं का जनता से संवाद कभी नहीं टूटा। चित्रकांत जायसवाल और अशोक राव की सहजता को आज भी याद किया जाता है। महापौर रहते हुए अशोक राव ने वेतन ही नहीं बल्कि सरकारी सुविधाओं का भी लाभ नहीं लिया। कई लोगों ने उनका अनुशरण किया.. अब ऐसा नहीं है। उनकी सहजता का गवाह कलेक्टर कार्यालय का बरगद पेड़ आज भी खडा है।
अब बिलासपुर के पास समय नहीं है। पारिवारिक समारोहों में चकाचौंथ बढ़ा है लेकिन भावनाएं गायब हो गयी है। आंख बंद कर किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता । चाहे राजनीति हो या व्यापार..हर क्षेत्र में गलाकाट प्रतिस्पर्धा है। राज्य गठन के बाद बिलासपुर के संस्कार को ग्रहण लग गया। बाहरी सोच ने स्थानीय मिठास को फीका कर दिया। इसमें अधिकारियों की सोच भी शामिल है।कोन्हेर ने बताया कि इस समय शिक्षा,व्यापार,रियल स्टेट , ठेकेदारी,राजनीति, सेवा समेत सभी क्षेत्रों में व्यावसायिक सोच का बोलबाला है। सब लोग पहले अपना फिर बिलासपुर के बारे में सोचते हैं। पहले ऐसा नहीं था। बिलासपुर निगम पर व्यापारियों ने कब्जा कर लिया है। पोलिथिन अभी तक प्रतिबंधित नहीं हुआ। पार्किंग व्यवस्था पर निगम ने दबाव बनाया तो व्यावसायियों ने आंख दिखाकर जोश को ठंडा कर दिया।
शशिकांत कोन्हेर ने बताया कि हमारे शहर में अमर अग्रवाल जैसा कद्दावर और सशक्त नेता है। प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में भी उनकी गिनती बड़े नेताओं में होती है। बावजूद इसके बिलासपुर विकास की दौड़ में रायपुर से पीछे छूट गया। आज रायपुर विकास की दौड़ में चालिस से पचास गुना आगे निकल गया है। कोरबा,रायगढ ने भी हमें पीछे छोड़ दिया है। इसकी मुख्य वजह बिलासपुर के नेताओं में एकता का नहीं होना है। कोई योजना आयी नहीं कि एक दूसरे का टांग खीचना का खेल शुरू हो जाता है।
आज तक विपक्ष ने कभी एसपी का घेराव नहीं किया, कलेक्टर पर दबाव नहीं बनाया। ये लोग हमारी बातों को मजबूती के साथ ऊपर तक पहुंचाते हैं। लेकिन विपक्ष ने ईमानदारी से ऐसा कभी नहीं किया। क्योंकि जो लोग आज राजनीति कर रहे हैं उनमें से कोई जमीन का काम करता है। तो कोई रियल स्टेट का कारोबार । कोई एनजीओ से जुड़ा है तो कोई बहुत बड़ा व्यापारी है। जाहिर सी बात है कि ये लोग…प्रशासन पर दबाव बनाकर अपना नुकसान नहीं करेंगे। ऐसे में हम अन्य जिलों से पिछड़ जाएं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। लेकिन विपक्ष सारा दोष मंत्री के सिर डालकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर देता हैं।
आज की पत्रकारिता मैनेजमेंट के इशारे पर चलती है। पहले ऐसा नहीं था। पत्रकारों का आज की ही तरह पहले भी राजनेताओं से सम्पर्क था। राजनेता पत्रकारो की नजर से जनता के सुख दुख को देखते थे। अब मैनेजमेंट की आंखों से दुख सुख का आंकलन किया जाता है। एक समय था कि बिलासपुर टाइम्स में समाज के सभी वर्गों का मजमा लगता था। डीपी चौबे, रामाचरण त्रिपाठी जैसे नेता सार्थक विषय पर चर्चा करते थे। चर्चा में व्यवसायी और कर्मचारी भी हुआ करते थे। मुद्दों को पत्रकार खुलकर लिखा करते थे। अब संभव नहीं है। क्योंकि..छपना क्या है,,मैनेजमेंट तय करता है। संपादक नहीं।
बिलासपुर की पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास है। कमोबेश अभी भी कायम है। गुरूदेव कश्यप,रामगोपाल तिवारी, डॉ.शंकर शेष , सत्यदेव दुबे, श्रीकांत वर्मा, ज्ञान अवस्थी,हबीब खान, नथमल शर्मा,रमेश नैयर,प्राण चड्डा,रूद्र अवस्थी,सदानंद गोडबोले,केशव शुक्ला जैसे कई बड़े पत्रकारों ने बिलासपुर के बारे हमेशा खुलकर लिखा। इसका असर सड़क से सदन तक दिखाई दिया। पत्रकारों ने बिलासपुर के हक में ना केवल कलम चलाया बल्कि एनटीपीसी,एसईसीएल,रेलवे जोन, हाईकोर्ट,राज्य गठन,विश्वविद्यालय के लिए सड़क पर उतरने से गुरेज भी नहीं किया।
बिलासपुर प्रेस क्लब अध्यक्ष शशिकांत कोन्हेर ने कहा कि आज का दौर मैनेजमेंट का है। पत्रकारों पर दबाव बढ़ गया है। गुणवत्ता पर खबरों की संख्या भारी है। बावजूद इसके बिलासपुर की पत्रकारिता ने अपनी श्रेष्ठता पर आंच नहीं आने दिया है। लेकिन प्रशासन ढीठ हो गया है। चमड़ी मोटी हो गयी है। उसने पत्रकारों को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया है। लेकिन ऐसा बहुत दिनों तक नहीं चलने वाला ।
शशिकांत कोन्हेर ने एक सवाल के जवाब में बताया कि कौन नहीं चाहेगा कि बिलासपुर स्मार्ट सिटी बने। इसके पहले हमने सिवरेज भी चाहा था। इसके पहले अस्सी और नब्बे दशक में भी सिवरेज का काम हुआ था। सार्थक परिणाम सामने नहीं आया। अरपा प्रोजेक्ट का भी इंतजार है। एक दिन उसे भी सामने आना है। मुझे लगता है कि एक काम अच्छी तरह से खत्म होने के बाद ही दूसरा काम शुरू किया जाए। इसमें विपक्ष भी सहभागी बने। सिर्फ विरोध के लिए विरोध ना करे । इस विरोध ने नया समाचार पैदा नहीं होने दिया। जैसे तीस साल पहले मच्छर,नाली,पानी,बीमारी का समाचार लिख रहे हैं..वही आज भी लिख रहे हैं।
कोन्हेर ने कहा कि जो निगम नाली,पानी,सफाई का इंतजाम ठीक से नहीं कर सकता उसे सिवरेज की जिम्मेदारी देने का मतलब ही है कि अव्यवस्था और भ्रष्टाचार । यदि डिप्लोमा धारी से हार्ट का आपरेशन करवाएंगे तो परिणाम ऐसा ही मिलेगा।