चल-चल मेरे भाई…

Chief Editor
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fixed_sundaypicasa_copywala“चल…चल मेरे भाई, तेरे हाथ जोड़ता हूँ…हाथ जोड़ता हूँ…तेरे पाँव पड़ता हूँ… बोला ना…नहीं जाता…अरे..घुसता ही चला आ रहा है…याँ…।“ अपने जमाने की मशहूर मल्टी स्टार फिल्म “नसीब” के इस गाने का यह छोटा सा हिस्सा याद आ जाता है (हालांकि गाने के बीच सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के इस डॉयलाग “–अरे घुसता ही चला आ रहा है-” इसके अलावे किसी सीन से इसका ताल्लुक नहीं है ) जब छत्तीसगढ़ कांग्रेस में संगठन वर्सेस पार्टी से निष्कासित एमएलए. अमित जोगी के बीच चल रही लड़ाई पर नजर पड़ती है। अमित जोगी के कुछ महीने पहिले कांग्रेस से निष्कासित किया गया है। और उनके पिता प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निष्कासन का प्रस्ताव एआईसीसी में अटका पड़ा है। मामला अटका रहने को लेकर दोने तरफ से दावे तो खूब हो रहे हैं। लेकिन सच यह भी है कि इस मामले में आलाकमान की जो भी रणनीति हो, पर अब तक कोई कार्रवाई होना तो दूर अनुशासन समिति की मीटिंग की भी खबर नहीं है। अब तक अंतिम रूप से दावा यह है कि “राज्यसभा” चुनाव के बाद “आर-पार” का फैसला हो जाएगा।

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                         ajjeet jogiAmit Jogiअटके हुए समय में लटके हुए मामले में फिलहाल जो कुछ चल रहा है उसे  देखकर ही “नसीब” फिलम् का गाना याद आ रहा है। जिसमें “हाथ जोड़ता हूँ…तेरे पाँव पड़ता हूँ”…वाला सीन है। जिसमें …बोला ना…नहीं जाता…भी कहते हुए दिखाया गया है और कुट्टी-कुट्टी…का भी फिल्मांकन है। यहाँ कांग्रेस में नसीब के इस सीन से थोड़ा सा अंतर यह है कि घर ले जाने की बजाय घर में वापस पहुंचने के नाम पर इस सीन का फिल्मांकन हो रहा है। और संगठन खेमा यह कहने को मजबूर है कि…“अरे ये तो घुसता ही चला आ रहा है।“ अमित जोगी इस अटके हुए वक्त का जिस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे तो कुछ ऐसी ही तस्वीर उभर रही है। मसलन निष्कासन के बाद अमित ने अपनी सक्रियता कई गुना बढ़ा दी। एक सोची-समझी रणनीति के तहत उन्होने आम लोगों से जुड़े मुद्दे उठाने की पहल की। जिसमें आउट-सोर्सिंग, स्थानीय बेरोजगारों को नौकरी , विधायकों की वेतन बढ़ोत्तरी, और पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश जैसे मुद्दों को आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की। पोलावरम में शपथ ली।

                           प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ आगस्ता का मामला उठाया। और इन दिनों गाँव-गाँव में ग्रामसभाएँ कर प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पास कराने की मुहिम चला रखी है। उनकी “ग्राम आवाज” मुहिम के दौरान सूबे की दस हजार से अधिक ग्राम पंचायतों में से करीब साढ़े –पाँच हजार ग्राम पंचायतों तक पहुँचने की तैयारी है।  जिस तरह से पार्टी आलाकमान ने जोगी के निषकासन का मामला अटका रखा है-इस मौके का इस्तेमाल कर उनका पूरा जोर इस ओर है कि मुद्दों को उठाने के बहाने पूरे प्रदेश में अपनी ताकत की नुमाइश भी होती रहे और अधबीच में अटके “त्रिशंकुओँ” के मन में उम्मीद-भरोसे का “इंडीकेटर” भी जलता-बुझता रहे।

                             bhupesh 2tsछत्तीसगढ़ कांग्रेस की “महाभारत” में भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव, डा.चरण दास महंत, रविन्द्र चौबे, मो. अकबर जैसे दिग्गजों से घिरे अमित ने अब एक नया “पासा” फेंका है। छाया वर्मा को छत्तीसगढ से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाए जाने के मामले में बयान जारी कर उन्होने एक ऐसे प्रचलित फटाके पर दिया सलाई छुआ दी है, जो खुशी के मौके पर फूटता है और आसमान में जाकर कई रंगों में बिखर जाता है। ज्यादातर बाराती इन रंगों को देखने के लिए अपनी गर्दन जरूर पीछे की ओर झुकाते हैं।आतिशबाज ने उनमें से एक रंग में स्थानीय उम्मीदवार के चयन पर खुशी जाहिर कर स्थानीयता के अपने मुद्दे पर मुहर लगावे की कोशिश कर ली है। यह बयान उस समय आया है, जब उनके पिता अजीत जोगी का नाम भी छत्तीसगढ़ से राज्यसभा उम्मीदवार के रूप में चर्चा और सुर्खियों में रहा। इसके साथ ही कांग्रेस संगठन में एसटी-एससी,और माइनरिटी की नुमाइंदगी शून्य के बराबर बताते हुए एक बड़े तबके की तबज्जो अपनी ओर चाही है। इस तबके के नेताओँ में असंतोष की बात कहकर पार्टी में ऊपर बैठे नेताओँ के कान तक खतरे की घंटी पहुंचाने की कोशिश की है। यहां तक कि “पर्सनल फेवर” को “पब्लिक फेवर” तक ले जाने का मशविरा भी दे डाला।

                               कांग्रेस के हितचिंतक के इस नए “रोल”  में अमित जोगी, जिस पार्टी से निष्कासित हैं, उसी पार्टी को बेहतरी के लिए बिन माँगी सलाह दे रहे हैं ?या तथ्यों के साथ पार्टी की आलोचना कर रहे हैं? या फिर पार्टी के ऊपर से परदा उठाकर उसे छत्तीसगढ़वासियों के सामने बेनकाब कर रहे हैं? अपनी इस “शार्ट फिल्म” में उनका “एक्शन-डायरेक्शन” जो भी हो । लेकिन मकसद साफ नजर आता है कि चाहे कांग्रेस में वापसी हो या अपनी अलग पार्टी बनाकर सियासत करनी पड़े, अमित दोनों ही सूरत में कामयाबी का स्वाद ही चखना चाह रहे हैं।

                              हालांकि भूपेश बघेल, टीएस बाबा की अगुवाई में संगठन खेमे ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस को जोगी विहीन ( भाजपा के काग्रेस विहीन भारत मुहिम की तरह ) बनाने के लिए जिस तरह की “गोटियां” बिठा रखी हैं, वह भी सही ठिकाने पर जमीं हुईं हैं। जिसके चलते भाजपा के साथ मिलकर कांग्रेस के खिलाफ षड़यंत्र रचने के आरोप में यदि अजीत जोगी को पार्टी से निष्कासित नहीं किया गया तो प्रदेश के आम लोगों और कांग्रेसियों में गलत संदेश जाएगा। दुविधा में फंसे आलाकामान की ओर से फैसला क्या होगा , इस सवाल का जवाब आने वाला कल ही दे सकता दै। लेकिन यदि अजीत-अमित जोगी  की पुनर्बसाहट होती है तो नसीब फिल्म के गाने का आखिरी हिस्सा भी इस सीन में जुड़ जाएगा। और हम सब सुनेंगे…”.तू जानेमन है…जाने जिगर है…तेरे लिए जान भी हाजिर है…।“

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