शौचालय का सच ‘शौच’ से गन्दा

Shri Mi
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sp_pandey(सत्यप्रकाश पाण्डेय)सरकार के शौचालय का सच शौच से भी ज्यादा गन्दा है । खुले में शौच से मुक्ति का लक्ष्य बिलासपुर जिले को 15 अगस्त 2017 तक मिला है लेकिन जिले के अधिकांश गाँवों में शौचालय की ऊंचाई सरकार की उम्मीदों को धराशायी करती नज़र आती है । बिलासपुर जिले की 645 ग्राम पंचायतों में शौचालय निर्माण की जमीनी हकीकत सरकारी कागजों से मेल नही खाती । जिले के कोटा विकासखंड की अलग अलग ग्राम पंचायतों की ये तस्वीरें शासन-प्रशासन के लक्ष्य पूर्ति को आईना दिखाती है ।
                                               clean_1 copyदेश में 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद स्वच्छता अभियान को लेकर जागरूकता की आंधी चली, साफ़-सफाई को लेकर विभिन्न माध्यमों से जनचेतना लाने की सरकारी कवायदें हुईं लेकिन हकीकत उन सभी कोशिशों को सिर्फ झुठलाती नज़र आती हैं । इस देश में खुले में शौच को ख़त्म करने सरकार ने दृढ संकल्प लिया, विभिन्न प्रांतों में सरकार ने लक्ष्य देकर समय सीमा तय की । गाँव-गाँव में अभियान चलाकर प्रशासन ने लोगों को खुले में शौच ना करने की नसीहतें दी । गाँव की दीवारों पर शौचालय निर्माण और उसके नफे -नुकसान को पोता गया ।
                                             clean_3धीरे-धीरे ग्रामीण ये मानने लगे कि सरकार उनके हित और स्वास्थ्य को लेकर काफी गंभीर है । शौचालय निर्माण लक्ष्य के साथ 12 हजार रूपये की लागत मानकर प्रत्येक ग्रामीण को देने का भरोसा दिलाया गया । शर्त नहीं सख्त निर्देश थे की प्रत्येक घर के आँगन में शौचालय नज़र आये । सरकार की मंशा पर प्रशासन ने 2 साल पहले ही कोशिशें शुरू की, घर-घर शौचालय निर्माण भी शुरू हुआ लेकिन 80 फीसदी शौचालय की ऊंचाई 3 फुट से ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाई । ये दावे बिलासपुर जिले के अनेक गाँवों खासकर कोटा विकासखंड में देखने और तस्वीरें लेने के बाद मैं यकीन से कर सकता हूँ।
                                             स्वच्छ भारत अभियान के तहत बिलासपुर जिले में 1 लाख 67 हजार शौचालय निर्माण का लक्ष्य 2014-2015 में मिला जिसमें जिले की 645 ग्राम पंचायतों में 1 लाख 47 हजार 92 शौचालय सरकारी कागज पर खड़े किये जा चुके हैं। लक्ष्य पूर्ति की ओर बढ़ते प्रशासन ने उस हकीकत से देखा ही नहीं जिसकी नीव खोदते वक्त ही भ्रष्टाचार का पानी मिलाकर गारा बनाया गया और उस लेप का छिड़काव कर कुछ ईंटों को जोड़ दिया गया। आखिर क्या हुआ, मिट्टी खोदकर चंद ईंटों को मिटटी के ही घोल में जोड़ने की कोशिशों ने प्रधानमन्त्री नरेंद्र भाई के उस सपने पर मिट्टी डाल दी है जिसमें उन्होंने खुले में शौच मुक्त भारत का स्वच्छ सपना संजोया था । जिले की कोटा विकासखंड की 101 ग्राम पंचायतों के अलग अलग हिस्सों में जाकर देखें तो शौचालय का सच शौच से भी गन्दा नज़र आता है । इस पूरे मामले में जो सच दिखाई देता है वो ये है कि शौचालय निर्माण की खाना पूर्ति के लिए प्रशासन ने अपने स्तर पर हर संभव कोशिश की है और जहां हो सका चार ईंटें जोड़कर शौचालय बनाने की उम्मीद जगा दी है।
                                         clean_2शौचालय निर्माण के खेल में प्रशासन के कुछ नुमाइंदे और उनके करीबी ठेकेदार बिना डकार लिए काफी कुछ पचा गए। वैसे भी इस देश में कुछ भी पचाया जा सकता है, फिर ये तो शौच की राशि थी।जिले की अधिकाँश ग्राम पंचायतों में अधूरे शौचालय निर्माण के पूरा होने की उम्मीद अब कम ही है क्योंकि कोटा विकासखंड के ग्राम अमने के पंच राजीव अनंत ने बताया कि उनके घर में 6 माह पहले शौचालय का निर्माण शुरू हुआ जो चेंबर बनाने के बाद अधूरा छोड़ दिया गया । उन्होंने बताया की ईंटों की जुड़ाई भी हुई लेकिन शौचालय पूरा बनने के पहले धराशायी हो गया । वो शौचालय निर्माण के लिए मिलने वाली १२ हजार रूपये की राशि में होते बंदरबाट की बात भी बताते हैं।
                                          जनपद पंचायत कोटा के अधिकारी कहते हैं जितना भी निर्माण हुआ है उसे साडी या परदे से ढंककर रखा जाये । ग्राम अमने, टाडा, नवागांव, सलका, पिपरखूंटी के अलावा अधिकांश गाँवों में शौचालय ऐसे ही हैं जिनके उपयोग की उम्मीद दूर-दूर तक नहीं है, तस्वीरों की भीड़ में एक और तस्वीर जंगल के बीच शौचालय निर्माण की सरकारी कवायद आखिर किसके लिए, एक खेत में कब्र की दीवार से सटाकर शौचालय निर्माण । ऐसी कई तस्वीरें हैं जो खुले में शौच से मुक्ति को चिढ़ाती हैं ।
                                       गाँव के लोग आज भी खुले में शौच कर रहे हैं, हाँ जो खुले में शौच पर आर्थिक दंड की खबरे हैं वो राज्य के कुछ जागरूक इलाकों से हों लेकिन बिलासपुर जिले की कहानी बेहद शर्मनाक है । अविभाजित बिलासपुर जिले का हिस्सा रहा मुंगेली जिला हाल ही में राज्योत्सव के मंच से प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के हाथों ओडीएफ जिला होने का गौरव हासिल कर चुका है लेकिन बाद में जो सच सामने आया वो बेहद शर्मनाक था । मुंगेली जिले में अधिकांश ग्राम पंचायतों की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है जैसी कोटा विकासखंड की । सरकारी आंकड़े दरकिनार कर सोचें तो ये कह पाना थोडा मुश्किल है कि 15 अगस्त 2017 तक बिलासपुर जिला ओडीएफ कैसे घोषित होगा हालांकि प्रशासन के मुताबिक़ वो लक्ष्य के काफी करीब है । यकीन मानिए अगर इन्ही शौचालयों के भरोसे खुले में शौच से भारत को मुक्त कराए जाने का सपना प्रधानमंत्री देख रहें हैं तो आने वाले 5 दशक और इंतज़ार करना होगा ।
By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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