डस्टबिन ठेका शर्तों में उल्लंघन…कांग्रेस करेगी महापौर का घेराव-शैलेन्द्र

BHASKAR MISHRA
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town hall 1बिलासपुर—कांग्रेस पार्षदों ने डस्टबिन ठेका निरस्त करने की मांग की है। डस्टबिन सप्लायर कंपनी की अमानत राशि राजसात करने और दोषी अधिकारियों पर अपराध कायम कर बर्खास्त करने को कहा है। शैलेन्द्र जायसवाल ने कहा है कि यद डस्टबिन टेंडर को निरस्त नहीं किया जाता है तो महापौर का घेराव किया जाएगा।

             
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                        कांग्रेस पार्षद दल के प्रवक्ता शैलेन्द्र जायसवाल ने बताया कि डस्टबिन टेंडर ठेका में निगम सरकार ने मनमानी की है। 23 नवम्बर की सामान्य सभा में डस्टबिन खरीदी के लिए जो दरें तय की गयी थीं उससे कहीं ज्यादा लागत में डस्टबिन खरीदने का प्रस्ताव एमआईसी ने दिया है। समान्य सभा प्रस्ताव के अनुसार 10,15 और 20 लीटर वाला डस्टबिन खरीदा जाएगा। इसके लिए एमआईसी ने साढ़े तीन करोड़ रूपए का प्रस्ताव पारित किया है। जबकि इसकी निर्धारित संख्या में खरीदे जाने वाले डस्टबिन की कीमत मुश्किल से सवा करोड़ रूपए है।

                शैलेन्द्र जायसवाल ने बताया कि टेन्डर शर्तों के अनुसार डस्टबिन निर्माता कम्पनियों से खरीदा जाएगा। कोई भी सप्लायर टेन्डर में भाग नहीं लेगा। बावजूद इसके डस्टबिन खरीदी का टेन्डर सप्लायर कंपनी को दिया गया। कंपनी के पास न तो कोई उद्योग है और ना ही वह आईएसआई या आईएसओ से प्रमाणित संस्था  है। इससे जाहिर होता है कि दाल में कुछ काला है। शैलेन्द्र ने कि सवाल उठना लाजिम है कि आखिर सामान्य सभा में पास किए गए शर्तों का पालन क्यों नहीं किया गया। SMART_CITY_BITE_SHAILENDRA 005

                       शैलेन्द्र के अनुसार कांग्रेस पार्षद इसका विरोध करता है। ठेके के टेंडर को निरस्त करने की मांग करता है। यदि टेंडर निरस्त नहीं किया गया तो महापौर का घेराव किया जाएगा। सच्चाई को जनता के सामने लाया जाएगा।

 तकनिकी ज्ञान की कमी 

                         सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए डस्टबिन खरीदी को महापौर ने फैक्ट्री गोदाम पहुंचकर क्लीन चिट दी है।। जबकि महापौर को  तकनीकी ज्ञान नहीं है। अच्छा होता कि फैक्ट्री की जांच आयुर्वेदिक डॉक्टर और सब-इंजीनियर करता। महापौर ने अहमदाबाद फैक्ट्री पहुंचकर की जांच कर पद और प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ किया है। महापौर किस आधार पर घनश्याम कंपनी को क्लीन चिट दे रहे हैं। रिकार्ड के अनुसार फैक्ट्री में ढेरों खामियां हैं। फैक्टरी के पास ना तो आईएसआई सर्टिफिकेट है और ना ही आईएसओ का लेबल ही है। कंपनी का रजिस्ट्रेशन सेंट्रल एक्साइज में नहीं है। अचानक आर्डर मिलने के बाद कंपनी ने जिस तरह से रीसायकल प्लास्टिक से डस्टबिन का निर्माण किया उसमें घोटाले की बू आ रही है। इससे जाहिर होता है कि जमकर कमीशनखोरी हुई है।

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