हम बोलते हैं-“ये आकाशवाणी बिलासपुर है..”लेकिन श्रोताओँ की नहीं सुनते?

Chief Editor

RADIO_AIRबिलासपुर।आकाशवाणी बिलासपुर के कार्यक्रमों में लगातार आ रही गिरावट को लेकर रेडियो सुनने वाले चिंतित हैं। श्रोता धीरे-धीरे रेडियो सुनना बंद करते जा रहे हैं। लेकिन उनकी बात सुनने वाला कोी नहीं है। इसे लेकर  कुछ श्रोताओँ के फोन करने पर चिट्ठी लिखने की सलाह दी जाती है। लेकिन उनकी शिकायती चिट्ठियां शामिल नहीं की जातीं हैं। रेडियो सुनने वाले आकाशवाणी के आला अफसरों की मीटिंग में अपनी बात रखना चाह रहे थे। लेकिन उन्हे मिलने से भी रोक दिया गया । जिस पर उन्होने अपना रोष जताया है।जानकारी दी गई है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के समस्त आकाशवाणी केंद्रों के वरिष्ठ अधिकारी महीने में एक बार समीक्षा बैठक के लिए किसी केंद्र पर एकत्र होते हैं। इस बार ये मीटिंग बिलासपुर आकाशवाणी में 9 व 10 तारीख को आयोजित हुई।पिछले कुछ समय से आकाशवाणी के कार्यक्रमों के गिरते स्तर से परेशान बरसों पुराने श्रोता बिलासपुर केंद्र में लगातार पत्र लिख रहे थे, पर उनके जवाब नही दिए जा रहे थे। अधिकारियों से मिलने जाने पर उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा था। फ़ोन करने पर ये कहा जा रहा था कि हमारे नए प्रस्तुतकर्ताओं की तारीफ लिखिए तब पत्र शामिल किए जाएंगे।
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इन सब बातों से परेशान श्रोताओं को जब पता चला कि दिल्ली और भोपाल से बड़े अधिकारी बिलासपुर आ रहे हैं तो  दूर दूर से श्रोता एकत्र होकर उनसे मिलने एवं ज्ञापन देने  उनसे संपर्क करने पहुंचे। उन्हे पता लगा कि  अधिकारीगण कोटा गनियारी मार्ग पर एक  फार्म हाउस गए हैं, मीटिंग वहीं हो रही है। श्रोता वहां भी पहुंच गए। उनसे  2 घंटे बाद  कहा गया कि प्रोटोकॉल के अनुसार आपने परमिशन नही ली है इसलिए हम उनसे नही मिलवा सकते। जाइये बिलासपुर स्टेशन से परमिशन लेकर आइये। जबकि सारे अधिकारी वहीं स्थल पर मौजूद थे। बहुत बहस के बाद भी बिलासपुर के एक अधिकारी  ने वरिष्ठ अधिकारियों से श्रोताओं को मिलने नही दिया।

अब सवाल ये उठता है कि प्रोटोकॉल के अनुसार क्या सरकारी पैसे से मीटिंग पर  अधिकारी हर महीने यूँ ही समय और रुपया  ख़र्च करते हैं?क्या आकाशवाणी अपने श्रोताओं को किसी रूप में संतुष्ट कर पा रहा है?पिछले कुछ महीनों में बिलासपुर केंद्र को सबसे अच्छी प्रस्तुति देने वाला केंद्र मानने वाले  श्रोता इतने असंतुष्ट क्यों  हो रहे हैं…? रुद्री से आये एक श्रोता ने यहां तक कह दिया कि अब मैं कभी किसी केंद्र किसी अधिकारी से मिलने नहीं जाऊंगा, क्योंकि बिलासपुर केंद्र जाने का अनुभव असहनीय है। भाठापारा से आए श्रोता हरमिंदर चावला ने कैमरे पर कहा कि – हम लोग रेडियो के काफी पुराने श्रोता हैं।

कार्यक्रम भी सुनते हैं और इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी देते हैं। लेकिन पिछले कुछ अरसे से आकाशवाणी बिलासपुर के कार्यक्रमों का स्तर काफी गिररता जा रहा है। इस ओर ध्यान दिलाने के लिए जब केन्द्र में चिट्ठी लिखी जाती है तो उसे शामिल नहीं किया जाता।आला अफसरों की मीटिंग की खबर मिलने के बाद बिलासपुर आए तो श्रोताओँ को मिलने नहीं दिया गया।  वे चाहते हैं कि उनकी बात सुनी जाए और बिलासपुर आकाशवाणी का स्तर सुधारा जाए। छत्तीसगढ़ रेडियो लिसनर्स संस्था ने भी अपनी विज्ञप्ति में कुछ इसी तरह की भावनाएँ व्यक्त की हैं।

ये वही श्रोता है जो रेडियो को दीवानगी हद तक चाहते है । श्रोताओ का जो समूह अधिकारियों से मिलने गया था वे रेडियो सीलोन और बी बी सी से लेकर अकाशवाणी बिलासपुर के fm स्टेशन को सुनते है । गाँव गाँव मे सुने जाने के दायरे अनुसार अकाशवाणी के विज्ञापन के दाम तय किये जाते है , सुनकर और पापुलर कर रेवेन्यू की कीमत जताने वाले श्रोताओ की बात सुनने के लिए अफसरों के पास वक्त नहीं है।

सभी की जानकारी में है कि ये रेडियो सुनने वाले अपने अपने राज्य और क्षेत्रो में श्रोता संगठन बनाकर भी अपने विचारों का आदान-प्रदान करते  हैं । पत्रिकाएं छापते है जिसमे अकाशवाणी के अधिकारियों और प्रस्तुतकर्ताओं की फ़ोटो छपते है । श्रोताओ के बड़े बड़े सम्मेलन  करते है । प्रसारकों का सम्मेलनों में सम्मान करते है ।उन्हें बिलासपुर आकाशवाणी के अधिकारियों  ने 4 घंटे कोटा के फार्म हाउस में बिठाए रखा , और अंत मे प्रोटोकाल का बहाना कर मुलाकात करवाने से इनकार कर दिया ।

श्रोताओ के निवेदन पर भी कार्यक्रम प्रमुख इस बात का जवाब न दे सकी की दिल्ली से आये अधिकारियों से श्रोता क्यों न मिले । किसी राज्य और केंद्र के अधिकारियों से आम व्यक्ति जो उस विभाग से रिश्ता रखता है क्यों नही मिल सकता । ज्ञात हो कि श्रोताओ के डेलिगेशन में शामिल परसराम साहू राष्ट्रपति से सम्मानित शिक्षक है । परसराम  छत्तीसगढ़ की संस्कृति और पुरातात्विक महत्व की चीज़ों के सहेजने वाले और शासन के कार्यक्रमो में उसे प्रदर्शित करने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाते है ।

आज के दौर में जब तकनीक की वजह से भी संवाद एकतरफा नहीं रह गया है। और एक-दूसरे से संवाद आसान हो गया है , ऐसे में आकाशवाणी बिलासपुर की हालत कुछ ऐसी नजर आती है कि…. हम बोलते हैं ये आकाशवाणी बिलासपुर है….. लेकिन हम श्रोताओँ की नहीं सुनते……। फिर सवाल यह है कि जब सुनने वाले ही संतुष्ट नहीं हैं, तब बोलने का क्या मतलब रह जाएगा…..। ?

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