जेल के गर्भ में ‘‘ पुष्प की अभिलाषा ‘‘

Chief Editor

 

Central Jail Bsp Image.jpg (1)  बिलासपुर  ( प्रकाश निर्लमकर )    ।  गुलामी के घोर अंधकार में डुबे देश को स्वतंत्र कराने पूरे देश में आंदोलन और विद्रोह चल रहा था। ऐसे में छ.ग. पीछे कैसे रहता, छ.ग. में भी आंदोलन और क्रांतिकारियों की कमी नहीं थी। जिसके  गवाह के बतौर  केन्द्रीय जेल बिलासपुर के कण कण में आजादी के दीवानों की यादें रची बसी है। परतंत्रता के उस दौर में न जाने कितने कही देश भक्तों ने यहां कठोर यातनाएं झेली। ऐसे ही एक महान राष्ट्रभक्त और अपनी ओजस्वी कविताओं से लोगों में आजादी की अलख जगाने वाले  माखन लाल चतुर्वेदी ने भी यहां कुछ महिने बिताए और यही के चार दीवारियों के बीच उन्होने लिखी ‘‘ पुष्प की अभिलाषा ‘‘।

             
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makhan lal

पं. माखन लाल चतुर्वेदी ने करीब 10 महीने बिलासपुर के ही केन्द्रीय जेल कठोर कारावास के रूप में काटी। इतिहास के पन्नों में स्वर्णीम अक्षरों में लिखा यह अध्याय उस दौर की पीड़ा और जज्बे को व्यक्त करता है। बिलासपुर में में प्रांतीय सम्मेलन के दौरान 12 मार्च 1921 को शनिचरी पड़ाव में ‘‘ कर्मवीर ‘‘ के संपादक पं. माखन लाल चतुर्वेदी ने ओजस्वी भाषण दिया और अंग्रेजों की जड़ें उखाड फेंकने के लिए लोगों को प्रेरित किया और उनमें नई उर्जा का संचार किया, जो अंग्रेजों को रास न आयी और उन्हें देशद्रोही ठहराते हुए 12 मई 1921 को जबलपुर से गिरफ्तार कर बिलासपुर जेल लाया गया। इस दौरान उन पर दो माह तक मुकदमा चला और आठ माह के अतिरिक्त कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। उनसे साधारण कैदी की तरह ही व्यवहार किया जाता था। किन्तू ऐेसे कठिन समय में भी उन्होने अपने कवित्व को जिन्दा रखा था। इस दौरान बिलासपुर जेल में उन्होने कई राष्टभक्ति से ओतप्रोत कविताओं की रचना की । जिनमें ‘‘ पूरी नहीं सुनोगे तान ‘‘, पर्वत की अभिलाषा ‘‘ और आज भी उस दौर के आजादी के दीवानों की कहानी कहती कविता ‘‘ पुष्प की अभिलाषा ‘‘ प्रमुख है। केन्द्रीय जेल बिलासपुर की दीवारें जैसे आज भी गाती हैं ……
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।।
पं. माखन लाल चतुर्वेदी ने ‘ कर्मवीर ‘ के माध्यम से लोगों में देशभक्ति की अलख जगाई थी और अपने ओजस्वी लेखन के बलबुते बिलासपुर के विद्यार्थियों में अंग्रेजी शिक्षा के त्याग की प्रेरणा भी भरी थी। उनके ओजस्वी और कविताओं और लेख का बिलासपुर के युवाओं पर ऐसा असर हुआ कि बड़ी संख्या में छात्रों ने अंग्रेजी स्कूलों का त्याग किया था। बिलासपुर के केन्द्रीय जेल के गर्भ से निकली कविता पुष्प की अभिलाषा उस दौर में क्रांतिकारी और उर्जा की संचार करने वाली कविता साबित हुई। जिसकी गवाह है केन्द्रीय जेल की दीवारें….. जहां आज भी मजबूती से खड़ी दीवारें मानों उस कविता की कहानी बयां करती हैं……..
वैसे तो ऐसे ऐतिहासिक कविता के रचनाकार और कविता को किसी सम्मान या अलंकरण की बात करना सूर्य को रोशनी दिखाने की बात करने वाली बात होगी  ।1987-88 के आस-पास तब के जिला कलेक्टर उदय वर्मा की पहल पर बिलासपुर जेल के आँगन में एक बड़े पत्थर पर पुष्प की अभिलाषा कविता की पंक्तियां लिखकर उसका एक समारोह के साथ अनावरण किया गया था। जो आज भी अपनी प्रेरणा के साथ अडिग खड़ा है….।

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