बिलासपुर की सरलता ही चुनौती…नहीं मिला एक्सपोजर…मयंक ने बताया…आउट स्पोकेन नहीं..आउट वर्ल्डिंग बने

BHASKAR MISHRA
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mayank..sp बिलासपुर—बिलासपुर प्रदेश का तीसरा बड़ा जिला है..लेकिन शहर बहुत छोटा है…लोग बहुत सरल हैं..शहर को ठीक से एक्सपोजर नहीं मिला…यही कारण है बिलासपुर का शहरीकरण ठीक से नहीं हुआ। बिलासपुर की सबसे बडी चुनौती यातायात है। यहां के लोग जल्द ही किसी पर विश्वास कर लेते हैं। कुछ हद तक अपराध का कारण भी है। लोगों की सहजता ही यहां की पहचान है। यह बातें सीजी वाल से पुलिस कप्तान मयंक श्रीवास्तव ने कही। मयंक ने बताया कि पुलिस भी आम इंसान है। हमेशा प्रयास किया कि पुलिस और पब्लिक के बीच बेहतर तालमेल हो। काफी कुछ हद तक सफल भी रहा। लोगों को लगता है कि पुलिस और पब्लिक के बीच नजदीकी से परिणाम रिवर्स हो सकते हैं… मैं इसके लिए हमेशा तैयार रहा…परिणाम की चिंता कभी नहीं की…ऐसी तमाम बातों का जिक्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी आईपीएस मयंक श्रीवास्तव ने सीजी वाल की एक मुलाकात के दौरान बातचीत हुी। प्रस्तुत है लम्बी बातचीत के प्रमुख अंश…

             
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सीजी वाल...क्या शुरू से ही आपने आईपीएस बनना निश्चित किया था…या इत्तफाक कहें कि इंजीनियरिंग का छात्र सिविल सेवक बन गया।

मयंक…. मैं जिस शहर से आता हूं…वहां सिविल सेवा का बहुत क्रेज है…इलाहाबाद में स्कूलिंग के दौरान सिविल सेवक बनने का नशा चढ़ा। घर का माहौल खुशनुमा पढने वाला था। परिवार बड़ा था। सिविल सेवा की तैयारी से पहले नौकरी की बहुत जरूरत थी। बीई के बाद नौकरी भी मिल गयी। नौकरी करते हुए सिविल सेवा की तैयारी की…2005 में आईपीएस के लिए चुन लिया गया।

सीजी वाल— आपकी शिक्षा कहां हुई…आईपीएस बनने से पहले…आपने नौकरी में कहां-कहां भाग्य आजमामया…।mayanka..sp

मयंक— मेरा जन्म उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ। जन्म के बाद परिवार इलाहाबाद में बस गया। जाहिर सी बात है कि स्कूलिंग भी इलाहाबाद में हुई। गोविन्दनगर बल्लभ पंत एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नालाजी इजीनियरिंग विश्वविद्यालय से बीई किया। रिहन्दनगर, दिल्ली और ओडिसा के तालचर में इंजीनियरिंग की नौकरी की। 2003 में सिविल सेवा की तैयारी के मैदान में उतरा… 2005 में आईपीएस बन गया।

सीजी वाल..सिविल सेवा की तैयारी में रिस्क बहुत है…। पारिवारिक वातावरण का ठीक ठाक होना बहुत जरूरी है…आपके साथ कैसा महौल था।

मयंक...निश्चित रूप से सिविल सेवा की तैयारी में बहुत रिस्क है। जिस शहर से आता हूं..वहां सिविल सेवा का बहुत क्रेज है। तैयारी से पहले अदद नौकरी की जरूरत थी। बीई के बाद नौकरी मिली। 2003 में तैयारी के मैदान में उतरा…सफलता भी मिली। रही बात चुनौतियों की तो… बताना चाहूंगा कि चुनौती जीवन का दूसरा नाम है। आप पर निर्भर करता है कि किस रूप में लेते हैं। हमारा परिवार मध्यमवर्गीय से आता है। पिताजी रजिस्ट्री विभाग में सब रजिस्ट्रार थे। हम चार भाई और तीन बहन होते हैं। पिताजी जी ने हम भाई बहनों को पढ़ाई पर फोकस किया।

सीजी वाल...छत्तीसगढ़ से आपका परिचय कब हुआ…आईपीएस बनने से पहले और बाद में आप छत्तीसगढ़ को किस तरह देखते हैं।

मयंक…..दुनिया बहुत बड़ी होने के बाद भी छोटी है…। आईपीएस बनने से पहले छत्तीसगढ़ कभी नहीं आया..पत्र पत्रिकाओं से प्रदेश की थोड़ी बहुत जानकारी थी। mayank,.....तैयारी के दौरान छत्तीसगढ़ को पढ़ने का मौका मिला। छत्तीसगढ़ के बाहर सभी लोग दुर्ग और भिलाई से परिचित हैं। रायपुर भी एक नाम है। दुर्ग और भिलाई का नाम देश के औद्योगिक शहरों में शुमार है। तैयारी के दौरान अन्य जिलों की भी थोड़ी बहुत जानकारी थी। छत्तीसगढ़ को नजदीक से जानने मौका ज्वाइनिंग के बाद 2005-06 में मिला। समझ में आया कि इलाहाबाद या उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ की तासीर और इतिहास कला संस्कृति में बहुत अंतर है। छत्तीसगढ़ का भी अपना अलग इतिहास और पहचान है।

सीजी वाल–छत्तीसगढ़ आने के बाद आपने कहां-कहां सेवाएं दी…क्या अन्तर महसूस किया उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच…

मंयक-— 2005-06 पीएचक्यू पहुंचकर ज्वाइनिंग दी। एकडमिक ट्रेनिंग के बाद अन्य साथियों के साथ छत्तीसगढ़ भ्रमण का मौका मिला। इसी दौरान छत्तीसगढ़ को नजदीक से समझने का मौका मिला। यहां की ऊर्जा, क्षमता और प्रदेश की तासीर को समझा। कुल मिलाकर अच्छा लगा। शुरू में ट्रेनिंग के लिए जांजगीर फिर बस्तर भेजा गया। इसके बाद छत्तीसगढ़ से मेरी अच्छी बांडिंग हो गयी।

सीजी वाल...बिलासपुर से पहले आपने प्रदेश को अपनी सेवाएं कहा–कहां दी है…सेवाओं के दौरान अनुभव कैसा रहा।IMG-20180116-WA0013

मयंक– बिलासपुर पुलिस कप्तान बनने से पहले दुर्ग एसपी बनने का मौका। इसके पहले एसटीफ में काम करने का अवसर मिला। 2009-2010 और 2014 में कुल तीन गवर्नर का एडीसी बना। नारायणपुर में एएसपी के बाद बतौर एसपी काम किया। जगदलपुर में भी एएसपी और एसपी बनने का अवसर मिला।

सीजी वाल... बिलासपुर पुलिस कप्ताी के साथ विभिन्न माध्यमों से आपने जनता से सीधा संवाद किया..कैसा अनुभव रहा।

मयंक—– बिलासपुर जिले की तासीर छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों से जुदा है। दक्षिण छत्तीसगढ़ का रहन सहन बिलकुल अलग है। खान पीन भी अलग है। दुर्ग और भिलाई अन्तर्राष्ट्रीय औद्योगिक शहर है। यहां का कल्चर अलग है। दोनों शहर ज्यादा अर्बनाइज्ड हैं। उत्तर छत्तीसगढ की तासीर जुदा है। बिलासपुर प्रदेश का तीसरा बडा जिला है। लेकिन शहर बहुत ही छोटा है। यहां सिटी लाइफ को लेकर पर्याप्त एक्पोजर नहीं मिला। सिटी के हिसाब से सिविक सेन्स का भी डेवलप नहीं हुआ है। जबकि इसकी बहुत जरूरत है। यहां के लोग बहुत सरल हैं..किसी पर भी सहजता से विश्वास कर लेते हैं। इसके चलते कई प्रकार की उलझनें पैदा हो जाती है।

                       ट्रैफिक बिलासपुर के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यहां एक्सीडेन्ट दर प्रदेश के अन्य जिलों से ज्यादा है। लोगों को जागरूक करने के लिए जनता से संवाद करना जरूरी था। जनता के बीच पहुंचकर बताने जरूरी था कि पुलिस के लोग जनता के बीच से ही आए हैं। इस प्रकार का प्रयास मैने बस्तर में किया था। उससे ज्यादा बिलासपुर में किया।

सीजी वाल...बिलासपुर पुलिस कप्तानी के किस तरह की चुनौतियां मिली। जिसे आप हमेशा याद रखना चाहेंगे…चुनौती में आप कितने सफल हुए।

मयंक— पुलिस और चुनौती सिक्के के दो पहलू हैं। पुलिस के लिए हर दिन चुनौती है और चुनोतियों के बीच राहत है। सरकंडा में दो स्कूली बच्चों का अपहरण हुआ। दोनो बच्चे सगे भाई थे। इस दौरान पुलिस बहुत दबाव में थी। लेकिन मीडिया के सहयोग से दोनों बच्चों को सुरक्षित बचा लिया गया। बहुत बड़ी चुनौती थी। सीपत में गरीब परिवार के दो बच्चों का अपहरण किया गया। साइबर सेल और पुलिस के अन्य विंग ने एक साथ काम करते हुए mayank...spदोनों बच्चों को जांजगीर से बरामद किया। इसके अलावा बहुत सी उपलब्धियां हैं जिन्हें बता पाना मुश्किल है।

सीजी वाल...पुलिस की नौकरी और परिवार के बीच किस तरह सामंजस्य बैठाते हैं। आपका नाटक, लेखन से  भीगहरा लगाव है…कैसे निकालते हैं समय।

मयंक श्रीवास्तव….इलाहाबाद में स्कूलिंग के दौरान जवाहर बाल भवन में नाटक मंचन का मौका मिला। एनटीपीसी में भी अवसर मिला। आईपीएस ट्रेनिंग के दौरान भी चेखब समेत कई विदेशी रचनाकारों की कृतियों पर मंचन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान एनएसडी कलाकारों से भी संपर्क हुआ। हमें ट्रेनिंग के दौरान बताया गया कि पुलिस को आउट स्पोकन नहीं बल्कि आउट वल्र्डली होना चाहिए। मैने नाटक भी लिखा…मंचन भी किया। नाटक और लेखन से निश्चित तौर पर लगाव है। इसके लिए मेरा परिवार और आस पास का वातावरण जिम्मेदार है। भरपूर समर्थन भी मिल रहा है।

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