मुख्यमंत्री डॉ रमन ने हर्बल कंपनियों को दिया राज्य में पूंजी निवेश का न्यौता

Shri Mi
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रायपुर।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने वनौषधियों के उत्पादन के लिए देश की बड़ी नामी-गिरामी हर्बल कम्पनियों को राज्य में पूंजी निवेश और उद्योग लगाने का न्यौता दिया है। डॉ. सिंह ने वनौषधियों पर केन्द्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी – वनौषधि छत्तीसगढ़ 2018’‘का शुभारंभ करने के बाद समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने इस अवसर पर आयोजक संस्था छत्तीसगढ़ राज्य औषधीय पादप बोर्ड द्वारा प्रकाशित स्मारिका का विमोचन भी किया।मुख्यमंत्री ने संगोष्ठी में आए वनौषधि निर्माता कंपनियों को छत्तीसगढ़ में वनौषधियों की खेेती, उनके उत्पादन और बाजार व्यवस्था की संभावनाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की बहुमूल्य वन सम्पदा में वनौषधियों के पेड़-पौधे का भी बड़ा योगदान है। राज्य में हर्बल खेती का भी तेजी से विकास हो रहा है। यह हमारे वनवासी परिवारों की अतिरिक्त आमदनी का एक बड़ा जरिया है। वनौषधि आधारित उद्योग लगने पर इनके संग्रहण में लगे वनवासी भाई-बहनों को रोजगार के लिए अच्छा बाजार मिलेगा।

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डॉ. रमन सिंह ने निवेशकों से कहा – अगर आप चाहें तो अपनी पांच वर्ष की कार्य योजना बनाकर सम्मेलन के दूसरे दिन यानी कल ही इसके लिए यहां पर राज्य सरकार के साथ एम.ओ.यू. कर सकते हैं। मुख्यमंत्री ने उनसे आग्रह किया कि वे इसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य वनौषधि बोर्ड और राज्य औद्योगिक विकास निगम के पदाधिकारियों के साथ चर्चा करें। राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ समारोह की अध्यक्षता केन्द्रीय इस्पात राज्य मंत्री श्री विष्णु साय ने की। छत्तीसगढ़ राज्य औषधीय पादप बोर्ड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में लगभग 400 परम्परागत वैद्यों सहित कई बड़ी कम्पनियों के पदाधिकारी हिस्सा ले रहे हैं। इसका आयोजन यहां शासकीय विज्ञान महाविद्यालय परिसर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय आडिटोरियम में किया गया है।

मुख्य अतिथि की आसंदी से शुभारंभ समारोह में डॉ. रमन सिंह ने कहा पूरी परम्परागत खेती के साथ-साथ पशुपालन, डेयरी, उद्यानिकी और वानिकी से संबंधित कार्य भी कृषि क्षेत्र से सम्बद्ध हैं। दुनिया में और विशेष रूप से भारत के छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वनोपजों का उत्पादन और संग्रहण वनवासियों के आर्थिक स्वावलंबन का एक बड़ा महत्वपूर्ण जरिया है। डॉ. सिंह ने कहा – पूरी दुनिया में हर्बल दवाइयों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। निकट भविष्य में यह सबसे बड़ा बाजार होगा। आज की स्थिति में हर साल इसमें 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। दुनिया के हर्बल बाजार का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा चीन के हाथों में है। ऐसे में भारत को भी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है। इसमें भारत के छत्तीसगढ़ जैसे नये राज्य की भी एक बड़ी भागीदारी होगी।

उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में वनौषधियों की खेती, हर्बल दवाइयों के उत्पादन और उन्हें बाजार तक पहुंचाने की काफी अच्छी संभावनाएं है। हमारे यहां काफी बड़ा वन क्षेत्र है। बस्तर जैसे इलाके में हजारों-लाखों एकड़ में वन हल्दी, वन तुलसी आदि प्रजातियों के पौधे मिल सकते हैं। इसके लिए व्यापक सर्वेक्षण की भी जरूरत है। धमतरी में हर्रा, बहेड़ा, आंवला आदि वनोपजों और जड़ी-बूटियों का एक बड़ा राष्ट्रीय बाजार विकसित हो गया है। प्रदेश का मौसम भी काफी अनुकूल है। इन तमाम अनुकूलताओं को देखते हुए राज्य में निवेशकों को वनौषधि प्रसंस्करण उद्योग लगाने के लिए सरकार हर जरूरी मदद करने को तैयार है। मुख्यमंत्री ने कहा – राज्य सरकार ने सभी जिलों में स्थानीय स्तर पर मिलने वाले वनौषधीय महत्व के पेड़-पौधों को चिन्हांकित किया है। नर्सरी भी विकसित की जा रही है।

डॉ. सिंह ने कहा – नया रायपुर स्थित जंगल सफारी के नजदीक प्रदेश सरकार ने 500 एकड़ में हर्बल गार्डन विकसित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य औषधीय पादप बोर्ड द्वारा पूरे प्रदेश में वनौषधियों के संरक्षण, संवर्धन और उनकी खेती को बढ़ावा देने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य औद्योगिक विकास निगम द्वारा वनौषधि निर्माताओं को प्रदेश की उद्योग नीति के तहत सभी जरूरी सुविधाएं दी जाएंगी। टैक्स में कुछ रियायत देने के बारे में भी विचार किया जा सकता है। संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्तर के वनौषधि निर्माता और विषय विशेषज्ञ मौजूद हैं, जिनके विचार हम सबके लिए काफी उपयोगी है। डॉ. सिंह ने कहा कि देश और दुनिया में लगभग 76 प्रकार के औषधीय महत्व के पेड़-पौधों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। उन्हें संरक्षित करने के लिए भी प्रयास जरूरी है। टिश्यू कल्चर के जरिये ऐसा किया जा सकता है। इसके लिए हमने छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में लैब की भी स्थापना की है। मुख्यमंत्री ने कहा – वन क्षेत्र के लोगों और वन समितियों को साथ लेकर वनौषधियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार पूरी गंभीरता से प्रयास कर रही है। इसके लिए फंड की कोई कमी नहीं है। कैम्पा निधि, जिला खनिज विकास निधि (डी.एम.एफ.) आदि मदों से हम उन्हें फंडिंग कर सकते हैं।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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