शिक्षाकर्मियों की बदहाली के लिए सभी संगठन जिम्मेदार,राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक देवांगन बोले-नियमों का नहीं हुआ पालन

Shri Mi
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बिलासपुर।यदि राज्य निर्माण के उपरांत भारत के संविधान में हुए संशोधन को जमीनी स्तर पर पूर्णतः क्रियान्वित करवा लिया जाता तो शिक्षाकर्मियों की आज एक भी समस्या नहीं रहती। यह कहना हैं स्कूली शिक्षा में बेहतर कार्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षक उत्तम कुमार देवांगन का।संविधान में जो 73वां/74वां संशोधन हुआ, उसके अनुसार पूरी की पूरी शिक्षा व्यवस्था को पंचायतों को सौंपा जाना था। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश शासन ने 1997 में पहले मंत्रिमंडल में और उसके बाद विधानसभा में इस आशय का प्रस्ताव पारित कर पंचायत राज अधिनियम में यह प्रावधान कर लिया गया कि पूरी की पूरी व्यवस्था पंचायतों को सौपी जा चुकी हैं।

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लेकिन इसे जमीनी स्तर पर क्रियान्वित नहीं करवाया जा सका । यदि 1998 से ही संवैधानिक संशोधन की मंशा को क्रियान्वित करवाने हेतु प्रयास किया जाता तो उसी समय पूरी स्कूली शिक्षा और शासकीय शिक्षक पंचायतों के हवाले होते और पूरी स्कूली शिक्षा निश्चित रूप से एक ही विभाग के अधीन होती और आज जो स्थिति हैं, वह निर्मित नहीं होती। 1998 से ही शासकीय शिक्षकों के सभी पदों को मृत संवर्ग घोषित किया जाकर इनकी सीधी भर्ती पर हमेशा के लिए प्रतिबन्ध लगा दिया गया हैं।

स्पष्ट हैं कि उस संवैधानिक संशोधन के अनुसार शासकीय शिक्षक भी पंचायत का ही कर्मचारी हैं तथा चूँकि शासकीय शिक्षक के सभी पदों के समकक्ष एक नए संवर्ग के रूप में शिक्षाकर्मियों के पदों का निर्माण कर लिया गया हैं, इसका सीधा सा अर्थ हैं कि 1998 के पश्चात जो भी शिक्षकीय पद सृजित/निर्मित होंगे, वह शिक्षाकर्मियों के ही होंगे।

चूँकि शासकीय शिक्षकों के सभी पद डाईंग कैडर घोषित हैं, अतः इनकी कोई भर्ती/पदोन्नति नहीं की जा सकेगी। श्री देवांगन ने आरोप लगाया कि शिक्षाकर्मियों के सभी संगठनों ने कभी भी डाईंग कैडर पदों पर की जा रही सीढ़ी भर्ती व पदोन्नति का विरोध नहीं किया। जिस शिक्षकीय कार्य को शिक्षाकर्मी करते हैं, उन्ही पदों पर शासकीय शिक्षकों को शासकीय वेतनमान पर सीढ़ी भर्ती/पदोन्नति दे दी गई लेकिन समान कार्य, समान जिम्मेदारी, समान उत्तरदायित्व, समान अधिकार के उपरांत भी शिक्षाकर्मियों को समान वेतन कभी नहीं मिला।

श्री देवांगन ने आगे कहा कि राज्य निर्माण के पश्चात ही यदि इसे क्रियान्वित किये जाने की दिशा में सहीं कदम उठा लिया जाता तो समस्त संस्था प्रमुख पदों अर्थात प्रधान पाठक (प्राथमिक शाला), प्रधान पाठक (पूर्व माध्यमिक शाला) तथा प्राचार्य पदों पर शिक्षाकर्मियों की ही पदोन्नति होती, इसके अलावा अन्य प्रशासनिक पदों जैसे सहायक विकासखंड शिक्षा अधिकारी, विकासखंड शिक्षा अधिकारी, सहायक संचालक, डाइट प्राचार्य तथा जिला शिक्षा अधिकारी के पदों पर भी शिक्षाकर्मियों की ही पदोन्नति होती। चूँकि शासकीय शिक्षकों के सभी पद मृत संवर्ग घोषित हैं, अतः ये अपनी सेवानिवृत्ति तक अपने मूल पद से हिल नहीं सकते।

श्री देवांगन ने कहा कि राज्य निर्माण के पश्चात उस समय के एकमात्र संगठन एवं उसके पश्चात बने संगठनों ने कभी भी संवैधानिक संशोधन के अनुरूप पूरी शिक्षा व्यवस्था को पंचायतों/नगरीय निकायों को पूर्णतः हस्तांतरित करवाने की दिशा में कदम नहीं उठाया गया तथा न ही इसे तवज्जों दी जिसका खामियाजा आज भी शिक्षाकर्मी संवर्ग भुगत रहा हैं, यदि 2005 के पूर्व इसे क्रियान्वित करवा लिया जाता तो 2006 में ही शिक्षाकर्मियों को छठवां वेतनमान और 2016 में सातवाँ वेतनमान स्वतः मिल जाता, इसके अलावा शासकीय शिक्षकों को दिया जाने वाला गतिरोध भत्ता भी अप्रेल 2013 से अपने आप मिल जाता और शोषण का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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