होश में आएं जनप्रतिनिधि…कोयला मजदूर नेता ने कहा…उग्र आंदोलन के साथ करेंगे निजीकरण का विरोध

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— कोयला उद्योग और कोयला कामगारों का भविष्य खतरे में है। जनप्रतिनिधि भी चुप हैं। माइनिंग के निजीकरण का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। या फिर कहें कि माइनिंग उद्योग का 90 प्रतिशत निजीकरण हो चुका है तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। मात्र 10 प्रतिशत उद्योग ही सरकार के हाथों में है…वह भी लोगों के दिखावें के लिए। कामगार यूनियन भी अब मैनेजमेन्ट की भााषा बोलने लगे हैं। यह बातें नेशनल फ्रंट ऑफ ट्रेड यूनियन के अध्यक्ष डॉ.दीपक जायसवाल ने पत्रकार वार्ता के दौरान कही। उन्होने बताया कि इन खतरों से बचने के लिए जनप्रतिनिधियों की मदद की जरूरत है। अन्यथा अनिष्ट से इंकार नहीं किया जा सकता है। बावजूद इसके राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस संघर्ष से कदम पीछे नहीं हटाएगी।

             
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                        पत्रकारों से बातचीत करते हुए डॉ.दीपक जायसवाल ने बताया कि कोयला कामगारों और कोयला उद्योग खतरे में है। एनएफआईटीयू अध्यक्ष ने बताया कि संसद में जनप्रतिनिधि मजदूरों और उद्योग के खिलाफ लिए गए निर्णयों पर एक शब्द नहीं बोलते हैं। जबकि इन्हें जनहित में बोलने के लिए संसद में भेजा गया है। दीपक जायसवाल ने बताया कि तेजी से उद्योंगों का निजीकरण हो रहा है। मजदूरों की जिन्दगी में खतरे में हैं। मजदूरों संगठन भी अब मैनेजमेन्ट की भाषा बोलने लगे हैं। जाहिर सी बात है कि बिना जनप्रतिनिधियों के सहयोग से मजदूरों की आवाज सरकार तक नहीं पहुंचेगी।

     डॉ.दीपक जायसवाल ने बताया कि 26 मई को बसंत विहार में प्रबंध कार्यकारिणी और विशेष पदाधिकारियों की बैठक हुई। बैठक में निर्णय लिया गया कि एक जुलाई 2016 को कामगारों का वेतन बृद्धि फिक्सेशन किया गया। दो साल के बाद भी ना तो बकाया राशि दी गयी ना ही एरियर्स का भुगतान ही किया गया। मामले को भारत सरकार और श्रम मंत्रालय के सामने लाने का निर्णय लिया गया है। यदि सात दिनों के अन्दर मामले का निराकरण नहीं किया गया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा।

                 डॉ.जायसवाल ने बताया कि बायोमेट्रिक अटेन्डेन्स माइनिंग रूल्स और रेगुलेशन के खिलाफ है। मामला श्रमा न्यायालय में विचाराधीन है। बावजूद इसके प्रबंधन बायोमेट्रिक अटेन्डेन्स ले रहा है। यह जानते हुए भी ऐसा करना कोर्ट का अवमानना है। जायसवाल ने बताया कि गेवरा,दीपका,कुसमुण्डा जैसे बड़े प्रोजेक्टों में सेप्टी उपकरणों की भारी कमी है। जिसके कारण मजदूरों की जान खतरे में है। पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है। मजदूरों का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है। जान माल की सुरक्षा के लिए सैक्शन 22 का लगाया जाना जरूरी है।

                             22 सूत्रीय मांगों को लेकर जून 2017 और जनवरी 2018 में एसईसीएल मुख्यालय के सामने धरना प्रदर्शन भी किया जा चुका है। लेकिन प्रबंधन ने किसी भी प्रकार का निराकरण नहीं किया है। दीपक जायसवाल ने बताया कि राष्ट्रीय कालरी मजदूर का जन्म 1947 में हुआ। सबसे पुरानी संस्था होने के कारण यूनियन मजदूरों के अहितों को देखकर चुप नहीं रह सकती है।

     दीपक जायवाल ने बताया कि हमने कोयला उद्योग और  कामगारों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखा है। कोरबा जिले के प्रभारी मंत्री अमर अग्रवाल, कोरिया जिले के प्रभारी मंत्री भैयालाल रजवाड़े, गृहमंत्री रामसेवक पैकरा, शहडोल सांंसद ज्ञान सिंह परस्ते, विष्णु देव साय,बंशीलाल महतो समेत कोयला क्षेत्र के सभी नगर पालिका और जनप्रतिनिधियों से निवेदन किया है कि अपने वोटरों की रक्षा के लिए सार्थक कदम उठाएं।

                                   मजदूर नेता ने बताया कि बसंत विहार में आयोजित बैठक में फैसला लिया गया कि यदि मामले में प्रबंधन और जनप्रतिनिधियों ने सार्थक कदम नहीं उठाया तो उग्र आंदोलन किया जाएगा। उन्होने बताया कि बैठक में प्रमुख रूप से इश्वर सिंह चंदेल,शंकर दास महंत,छोटे लाल वर्मा,अहमद हुसैन,सनत शुक्ला नासिर अली, सरोज समेत कई मजदूर नेता मौजूद थे।

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