वामपंथियों ने पैदा किया मंदिर मस्जिद विवाद..के.के.मोहम्मद ने बताया…अयोध्या में 12 सौ ईशा पूर्व में बनी मंदिर

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— अयोध्या में मंदिर मस्जिद विवाद वामपंथियों की दिमाग की उपज है। दरअसल अयोध्या में जिस स्थाना पर मंदिर मस्जिद विवाद है..वहां दरअसल मस्जिद थी ही नहीं। वावरी मस्जिद मंदिर के खम्भे पर बनाया गया है। जब पहली बार मंदिर मस्जिद विवाद पर पुरातत्व सर्वेक्षण किया गया। उस दो सदस्यी टीम में एक मैं भी था। डायरेक्टर बी.बी.लीड कर रहे थे। उनकी पकड़ अंग्रेजी पत्रिकाओं में अच्छी थी। वामपंथी होने के कारण प्रोफेसर बी.बी.लाल तात्कालीन समय सर्वे में हासिल तथ्यों को छिपाया। उन्होने सहयोगियों के साथ इतना लिखा कि लोगों ने अयोध्या में मंदिर मस्जिद  विवाद पैदा कर दिया। वर्ना देश के मुसलमानों ने भी ठांचे को मंदिर मान लिया था। यद्यपि कोर्ट को सब जानकारी है। जिसके आधार पर 2008 में हाईकोर्ट ने निर्णय दिया था। यह बातें भारत सरकार पुरातत्व क्षेत्रिय निदेशक डॉ.के.के.मोहम्मद ने पत्रकारों को दी।

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                      सेवा निवृत  भारत सरकार के पुरातत्व क्षेत्रिय निदेशक के.के.मोहम्द ने बताया कि अयोध्या में जिस स्थान पर विवादास्पद मंदिर मस्जिद ढांचा है। दरअसल वहां 12 सौ ईशा पूर्व मंदिर हुआ करता था। साल 1976-77 में भारत सरकार के निर्देश पर अयोध्या में विवादित स्थल पर खुदाई की गयी। पीलर के बेसमेन्ट से सम्पूर्ण कलश और पत्तियों का नमूना मिला। इसके अलावा सर्वेक्षण के दौरान सदियों पुरानी विष्णु की मूर्ती मिली। अन्य कई ऐसे प्रमाण मिले कि जिससे साबित होता है कि यहां ईशा पूर्व मंदिर हुआ करता था। तथ्य सामने आने के बाद मुसलमानों ने भी मान लिया था कि यहां मंदिर है। बाबद में ऊपर का ठांचा गिराकर मस्जिद का शक्ल दिया गया है।

डॉ.मोहम्मद ने बताया डॉ.बी.बी.लाल वामपंथी विचारधारा से प्रेरित थे। उनकी अंग्रेजी पत्र पत्रिकाओं में अच्छी दखल थी। लोगों ने मिलकर खत्म होते विवाद को हवा दिया। देखते ही देखते मंदिर मस्जिद विवाद ने जन्म ले लिया। कई मुस्लिम साथियों ने बताया कि सच्चाई सामने है लेकिन वामपंथियों ने विदेशों के इशारे पर इसे विवाद का मुद्दा बना दिया। डॉ.के.के.मोहम्मद ने कहा कि विवाद के मद्देनजर 2003 में सेटेलाइट सर्वे के साथ पुरातत्वविदों ने विवादित स्थल में पचास से अधिक खंभों के बेस तक खुदाई की। तथ्य वही सामने आया जो 1976-17 में था। लेकिन एक बार फिर वामपंथियों ने इसे मुद्दा बनाया। जबकि कोर्ट ने इसी के आधार पर 2008 में तीन भागों में मामले का निराकरण किया। के.के.मोहम्मद ने बताया कि उस समय मैं सरकारी कर्मचारी था। शासकीय सेवा में रहते हुए कुछ शर्तें होती हैं। तात्कालीन समय मैने बी.बी.लाल को बताया कि 1976 में मंदिर होने का प्रमाण मिला था। 2003 में वहीं मिला। लेकिन बी.बी.लाल ने अंग्रेजी पत्रिकाओं में बताया कि मंदिर होने का कोई प्रमाण नहीं मिला है।

एक सवाल के जवाब में के.के.मोहम्मद ने बताया कि मुझे छत्तीसगढ़ में राज्य निर्माण के बाद शुरूआती काल में काम करने का मौका मिला। मैने व्यक्तिगत से लेकर शासन स्तर पर यहां ऐतिहासिक संस्कृति को बचाने का प्रयास किया। रतनपुर और पाली क्षेत्र की मंदिरों को बचाया भी। उन्होने कहा कि छत्तीसगढ़ में समृद्धि ऐतिहासिक संस्कृति का जन्म हुआ है। लेकिन उसे बचाने का पुरजोर तरीके से प्रयास नहीं किया गया। मोहम्मद ने बताया कि मध्यप्रदेश के मंदसौर,भोपाल और चंबल क्षेत्र में भी काम करने का मौका मिला। चंबल में चालिस ईशा पूर्व ऐतिहासिक मंदिरों को बचाने का बीडा उठाया। काफी कुछ हद तक सफल भी रहा।

के.के.मोहम्मद ने बताया कि सरकार ने हमेंशा अयोध्या स्थित विवादास्पद स्थल को गंभीर से लिया। निर्णय लेने का हर संभव कदम उठाया। लेकिन तब तब वामपंथियों ने सोची समझी रणनीति के तहत मामले को विवादित बनाया। मोहम्मद ने कहा कि ऐसा ही एक मामला दिल्ली में एतिहासिक चिन्होने की रिप्लिका बनाते समय हुआ। जबकि यह मेरा व्यक्तिगत प्रयास था। शासन से शुरूआत में मदद भी मिली। लेकिन वामपंथियों ने हल्ला मचाया मामला अधर में लटक गया।

अन्त में उन्होने कहा कि मेरा किसी दल से रिश्ता नहीं है। सच्चाई बताने का मौका मिला वही बता रहा हूं। मैं होश हवास में हूं। और दावा करता हूं कि मेरा राजनीतिक इस्तेमाल भी नहीं हो रहा है। और ना खुद को होने दुूंंगा।

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