MP में अध्यापकों के बीच उठ रही मांग..शिक्षा विभाग मे संविलियन को गंभीरता से ले सरकार

Shri Mi
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भोपाल । मध्यप्रदेश में अध्यापको के संविलियन को लेकर सरकार की नीति आसाराम गयाराम वाली चल रही है।संविलियन की प्रक्रिया को पूरी गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।मीडिया की खबरो के अनुसार संविलियन प्रक्रिया मे अधिकारियो द्वारा ही कई अवरोध खडे किये गये।वे चाहते है कि उनके अनुसार अध्यापको की संविलियन प्रक्रिया हो।वायरल संक्षेपिका से उनकी मंशा भी स्पष्ट हो चुकी है।वे अध्यापको को अधिकार शून्य करना चाहते है।अध्यापको के भविष्य पर कालिख पोतना चाहते है। जबकि  मुख्यमंत्री  की स्पष्ट घोषणा और मंशा है कि अध्यापको का संविलियन “एक ही विभाग एक ही कैडर” के अन्तर्गत हो।अध्यापको की मंशा भी  मुख्यमंत्री  की घोषणा से साम्य रखती है।

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मध्यप्रदेश अध्यापक संघर्ष समिति  के प्रांतीय कार्यकारी संयोजक रमेश पाटिल ने एक बयान में योे बातें कहीं हैं। उन्होने  कहा है कि शिक्षा विभाग मे संविलियन के लिए लम्बा संघर्ष अध्यापको ने किया है ना कि अधिकारी वर्ग ने  । इसलिए संविलियन अध्यापको की मंशानुसार होना चाहिए।यह नैतिकता भी है।इसके लिए अध्यापको को समझा जाना या प्रस्ताव मांगना जरूरी था ।

लेकिन इसकी जरूरत सरकार ने अभी तक महसूस नही की जो दुर्भाग्यपूर्ण है।शोषणकारी व्यवस्था के कारण ही शिक्षा विभाग, अनुसूचित जनजाति विभाग हडताल-आन्दोलन, सभा-सम्मेलन, अनशन, वर्गभेद, आर्थिक शोषण की जन्म भूमि बन गये है।
रमेश पाटिल ने आगे कहा कि शिक्षा विभाग मे संविलियन का कैसा भी आदेश जारी करने से अध्यापको की समस्या ना खत्म होगी ना असंतोष खत्म होगा  । बल्कि और अधिक उग्रता के विरोधी स्वर शिक्षा विभाग और अनुसूचित जनजाति विभाग मे सुनाई देगे।शैक्षणिक संस्थाओ की अनिवार्य ईकाई विद्यार्थियो को अंततः बेगुनाह होने के बावजूद दण्ड भूगतना पडता है।परिणाम ऐन-केन प्रकार से उत्तीर्ण होने वालो की संख्या तो बढ गई लेकिन शैक्षणिक गुणवत्ता धराशायी हो गई।

उन्होने कहा कि मीडिया पर नजर रखने वाले सरकारी तंत्र अच्छी तरह समझ ले कि अध्यापक चाहता क्या है- 1994 के नियमानुसार शिक्षा विभाग मे संविलियन हो।जिसका आधार “एक ही विभाग, एक ही कैडर”,समान सेवाशर्ते एवं समान सुविधाए है ताकि भविष्य मे छोटी-छोटी समस्याओ के आदेश जारी करने के लिए शासन का मुंह ना ताकना पडे़ ।  अध्यापक चाहता है कि उसकी सेवा मे निरन्तरता शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक, गुरूजी नियुक्ति दिनांक से मान्य हो।इसके पिछे उसका मन्तव्य क्रमोन्नति-पदोन्नति मे सही समय पर लाभ प्राप्त हो सके।सेवानिवृत्ति उपरांत के लाभ उपादान (ग्रेच्युटी), पेंशन/पारिवारिक पेंशन का पूरा लाभ मिल सके।प्रथम नियुक्ति दिनांक के आधार नियमित पेंशन/पारिवारिक पेंशन, जीपीएफ, बीमा, उपादान की पात्रता शिक्षक संवर्ग के समान लागू हो।अनुकंपा प्रकरणो का निराकरण भूललक्षी नियमो के प्रभाव से हो ताकि उत्पीडित परिवार मे खुशियो के दीये फिर से जगमगा सके।

मूल नियुक्ति दिनांक से काल्पनिक गणना के आधार पर सितम्बर 2013 से छटवा वेतनमान निर्धारित हो ताकि वेतन निर्धारण की सारी विसंगति दूर हो।शिक्षक संवर्ग के समान जनवरी 2016 से सातवा वेतनमान का लाभ मिले।छटवे और सातवे वेतनमान की अवशेष राशि का नगद या किस्तो मे भूगतान हो ताकि शोषण का मुआवजा के रूप मे इस राशि से छिन्न-भिन्न हो चुके अपने जीवन को सुधार सके।

वर्तमान सत्ताधारी दल ने विपक्ष मे रहते हुए शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक और गुरूजी के रूप मे संघर्षरत शोषित इस वर्ग की हर समस्या को जायज बताया था।आज वे सत्ता मे है तो जायज मांग पूरी हो जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा हुआ नही।जिससे राजनीतिक दलो का चारित्रिक पतन तो स्पष्ट हो ही रहा है, विश्वसनीयता भी खत्म हो रही है। जो शासक वर्ग के लिए खतरे की घण्टी है।अब तो कर्मचारी संगठन कहने भी लगे है “तुम हमारे नही तो हम भी तुम्हारे नही”।

उन्होने कहा कि शासक के दिमाग मे अडचने पैदा करने वाले वर्ग ने भर दिया है कि “एक ही विभाग, एक ही कैडर” को लागू करने से बहुत अधिक आर्थिक भार पडेगा।अभी सरकार की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है।इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि सरकार की आर्थिक स्थिति कभी भी देते समय अच्छी नही होती।यह तो कुप्रचार का एक तरीका मात्र है।जिन सुविधाओ की मांग अध्यापक कर रहा है उनमे क्रमोन्नति-पदोन्नति, छटवे वेतनमान के काल्पनिक गणना के आधार पर निर्धारण और सातवे वेतनमान के निर्धारण से नही के बराबर भार बढेगा।इतना तो 10-20 पैसे टैक्स बढाने से पूर्ति हो सकती है।नियमित पेंशन/पारिवारिक पेंशन, उपादान आदि वर्तमान सरकार की समस्या नही है।पूरे अध्यापक संवर्ग की बडी संख्या 10-15 वर्षो बाद ही सेवानिवृत्त होगी।अभी देना भी कुछ नही है।लेकिन ये सुविधाए लागू करने वाले राजनीतिक दल के भविष्य को सुरक्षित कर देगी।

वैसे भी बडे काम के लिए बडे दिल की आवश्यकता होती है।बडे कामो मे तुच्छ अवरोध कोई मायने नही रखते है।बस देने की ईच्छा शक्ति मजबूत होनी चाहिए। शिक्षा विभाग मे अध्यापको का संविलियन सत्ताधारी दल की परीक्षा भी लेगा की उनमे बडे फैसले पारदर्शी तरीके से लेने की ईच्छा है भी या नही?
अंत मे शिक्षक संवर्ग का धन्यवाद जिन्होंने अध्यापको की मुख्य मांग “एक ही विभाग एक ही कैडर” का पूरजोर समर्थन किया।

 

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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