पी.ओ.पी से बनी मूर्तियों के निर्माण पर रोक

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रायपुर।राज्य सरकार ने सभी जिला कलेक्टरों, नगर निगम आयुक्तों और मुख्य नगर पालिका अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि आगामी गणेश उत्सव और दुर्गा उत्सव में पूजा के लिए कृत्रिम मटेरियल अथवा प्लास्टर ऑफ पेरिस (पी.ओ.पी.) से निर्मित मूर्तियों का उपयोग ना होने पाए। इस प्रकार की मूर्तियों का विसर्जन भी ना हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी इन अधिकारियों को दी गई है। नगरीय प्रशासन और विकास विभाग ने यहां मंत्रालय (महानदी भवन) से जारी अलग-अलग परिपत्रों में इन अधिकारियों को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एन.जी.टी.) और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भोपाल के दिशा-निर्देशों की जानकारी दी है। परिपत्र में अधिकारियों को इन दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करवाने के निर्देश दिए गए हैं।

आदेश में कहा गया है कि प्लास्टर ऑफ पेरिस, प्लास्टिक और हानिकारक रंगों से मूर्तियों के निर्माण, विक्रय और विसर्जन के बारे में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाईड लाईन का पालन किया जाना चाहिए।गाईड लाईन में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भारत में मूर्ति विसर्जन की प्राचीन काल से चली आ रही परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा है कि पहले देवी-देवताओं की पूजा के लिए सिर्फ प्राकृतिक वस्तुओं जैसे दूध, दही, घी, नारियल, पान के पत्ते और नदियों के पानी का उपयोग किया जाता था। चिकनी मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती थी और उन्हें प्राकृतिक रंगोें जैसे हल्दी से रंगा जाता था। धार्मिक ग्रंथों और कर्मकाण्डों में प्रकृति के संरक्षण का महत्व समझाने का भी प्रयास किया गया है। इसलिए वह सदियों से पूजनीय रहा है। आज कल मूर्तियों पर पालिस करने और उनकी सजावट में धातुओं, आभूषणों, तैलीय पदार्थों, सिंथेटिक रंगों तथा रसायनों का उपयोग किया जाता है। जब इन मूर्तियों को विसर्जित किया जाता है, तब हमारा जलीय क्षेत्र और आसपास का पर्यावरण गंभीर रूप से प्रभावित होता है। इसलिए मूर्ति विसर्जन के संबंध में जल्द से जल्द दिशा-निर्देश जारी करने की आवश्यकता है। मूर्ति विसर्जन के संबंध में सामान्य दिशा-निर्देशों में पवित्र गं्रथों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मूर्तियां प्राकृतिक सामग्री से निर्मित होनी चाहिए। मूर्ति निर्माण में परम्परागत मिट्टी को बढ़ावा देना चाहिए, न कि बेक्ड मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस को। यदि मूर्तियों को रंगा जाना हो तो रंगने के लिए पानी में घुलनशील प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जो विषैले न हो।

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