बिलासपुर— पिछले पन्द्रह सालों में भाजपा सरकार ने कानून की जमकर धज्जियां उड़ाई.। जब चाहा कानून की परिभाषा अपने अनुसार गढ़ लिया। यही कारण है कि खुद भाजपा के दिवंगत नेता दिलीप सिंह जू देव को भी कहना पड़ा कि प्रदेश में प्रशासनिक तानाशाही का दौर है। शायद उन्हें पता था कि इस तानाशाही के पीछे कोई और नहीं बल्कि अपने भाजपा नेता ही हैं। कानून का माखौल उड़़ाने का मामला पिछले पन्द्रह सालों में बिलासपुर समेत प्रदेश के कोने कोने में एक बार नहीं बल्कि कई बार देखने को मिला है। अटल श्रीवास्तव ने कहा कि एक बार नहीं बल्कि दो- दो बार भाजपा नेता तोरवा थाने में घुसकर मारपीट की। सुशील पाठक की हत्या हो गयी। बावजूद इसके कहना कि कहीं गुंडागर्दी नहीं है। सोचकर दुख होता है कि आखिर भाजपा नेताओं को इसका अहसा सत्ता में रहते हुए क्यों नहीं है।
अटल श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले पन्द्रह सालों में जमकर गुंडागर्दी, लूटपाट, मारपीट,वसूली की वारदात होती रही। मजाल है कि किसी भाजपा नेताओं को कुछ दिखाई दिया हो। जनता चिल्लाती रही…लेकिन भाजपा नेता रोम जलता रहा और नीरो की तरह चैन की बांसुरी बजाते रहे। पिछले पन्द्रह सालों में हालात कुछ ऐसे थे कि भाजपा नेताओं ने थाने में घुसकर पुलिस से मारपीट की। आज तक किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। सरकारी सहायता राशि के नाम जमकर बंदरबांट हुआ। घर से सम्पन्न भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को इलाज के नाम पर गरीबों का रूपया लुटाया गया। फिर भी कहना कि गुंडागर्दी और लूटपाट करने वालों को पैदा नहीं होने दिया । सच तो यह है कि भाजपा नेताओं ने गरीबों को कदम कदम पर लूटा है।पेंशन, चावल सब कुछ तो लूटा है।
पिछले पन्द्रह सालों में बिलासपुर समेत प्रदेश की कानून व्यवस्था बुरी तरह से चरमरा चुकी है। पुलिस बल का प्रयोग गरीबों, विपक्षी पार्टियों और फरियादियों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। तोरवा थाने में घुसकर भाजपा नेताओं ने एक बार नहीं बल्कि दो तीन बार दोषियोंं को बचाने कानून का माखौल उड़ाया । दिन दहाड़े एक नेता वर्दीधारियों से मारपीट कर लाकअप में बंद अपने खास को बाहर निकाल लिया। लाचार पुलिस अधिकारी चाहकर भी कुछ नहीं कस सके। आज तक ना तो किसी दोषी के खिलाफ कार्रवाई हुई और ना ही थाने में घुसकर मारपीट करने वाले के खिलाफ एक्शन लिया गया।
अटल ने बताया कि 2013 में झीरम नरसंहार किसको याद नहीं है। कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के नेताओं को हमले में चुनचुनकर निशाना बनया गया। पुरी दुनिया नरसंहार की खबर सुनकर दहल गयी। मजाल है कि आज तक किसी को सजा तो दूर आरोपी भी नहीं ठहराया जा सका है। समझ में नहीं आ रहा कि झीरम काण्ड में 31 लोगों की हत्या हुई कैसे। हुई भी या नहीं….सवाल ज्वलंत है। घटना के लिए सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी किसकी थी। कम से कम यह बात भाजपा नेताओं को अच्छी तरह से मालूम है।
प्रदेश कांग्रेस महामंत्री ने कहा कि सरकन्डा में दिसम्बर 2010 में देर रात्रि पत्रकार की बीच सड़क में हत्या हो जाती है।बस्तर क्षेत्र में पत्रकारों को चुनचुन कर निशाना बनाया गया। कांग्रेस भवन में घुसकर लाठीचार्ज किया गया। फिर भी कहना कि पिछले पन्द्रह सालों में कानून व्यवस्था को बिगड़ने नहीं दिया गया। कोई समझे या ना समझे जनता इस बात को अच्छी तरह से समझ रही है। कानून व्यवस्था उन्हें बिगड़ी हुई क्यों नही दिखाई दी..क्योंकि….बिगाड़ने वाले कोई दूसरे नहीं…भाजपा के अपने थे…शायद उन्हें कानून व्यवस्था के साथ मजाक होना कभी नहीं दिखाई दिया।