मेरी नज़र में...

अन्ना जब बिलासपुर आए…….

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(रुद्र अवस्थी )फेद धोती-कुर्ता,सफेद टोपी और चेहरे पर मोहक मुस्कान- छत्तीसगढ़ भवन के आंगन में  बिल्कुल अन्ना की तरह दिखाई दे रहे शख्स को देखकर लगा कि कहीं धोखा तो नहीं हो रहा है. लेकिन नजदीक जाने पर पता चला कि यह धोखा नहीं है। सचमुच अन्ना बिलासपुर आए हैं…..। पत्रकार मन जाग उठा और उनसे खास बातचीत का वक्त भी मुकर्रर हो गया….। अन्ना खुशी – खुशी तैयार हो गए और सवालों का बेबाकी से जवाब दिया..। पेश है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

पहला सवाल यही था कि आपने अपनी यात्रा के लिए बिलासपुर को ही क्यों चुना। जवाब मिला कि  मैने आज तक  कई आंदोलन किए हैं और कुछ समय पहले ऐतिहासिक आंदोलन को देश की जनता ने सफल बनाया है। अब मैं देश के ऐसे स्थानों पर जा रहा हूँ जहां पर ऐतिहासिक आंदोलन हो चुके हैं। मुझे लगा कि बिलासपुर भी ऐसी जगह है जहां पर ऐतिहासिक आंदोलन हो चुके हैं। भले ही इस शहर के लोगों को अब याद न हो लेकिन 15 जनवरी 1996  का रेल्वे जोन आंदोलन आज भी इतिहास में दर्ज है। रेल्वे जोन के लिए इस इलाके के लोगों ने लम्बी लड़ाई लड़ी और जीत भी हासिल की। इस इलाके की यह खासियत है कि यहां के लोगों ने मेडिकल कालेज, एसईसीएल, हाईकोर्ट,सेन्ट्रल युनिवर्सिटी जैसी तमाम चीजें जनआंदोलन के जरिए ही हासिल की हैँ। यह आज भी एक मिसाल है।ऐसे शहर में तो मुझे आना ही चाहिए।

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जब उनसे पूछा गया कि आज के दौर में बिलासपुर आकर वे कैसा महसूस कर रहे हैं…तो बड़ी निराशा के साथ उन्होने जवाब दिया कि आज इस शहर की हालत देखकर बड़ी तकलीफ हुई और सोचना पड़ रहा है कि क्या यह वही शहर है जिसने अपने हक के लिए इतनी लड़ाइयां लड़ी हैं औऱ जीत भी हासिल की है। शहर चारों तरफ से अस्त-व्यस्त है….कोई भी एक सड़क ऐसी नहीं है जिस पर चलना आसान हो। कोई योजना नजर नहीं आती और लगता है हर एक काम में बड़े पैमाने पर भ्रष्ट्राचार हुआ है।  यहां के लोगों ने रेल्वे जोन के लिए लडाई लड़ी थी, कोई भी आज बता दे कि इससे बिलासपुर को क्या फायदा   मिला। न यहां के बेरोजगारों को नौकरी मिली और न यहां के लोगों को किसी काम में हिस्सेदारी मिली। लोग शायद कभी बैठकर इस बारे में सोचते भी नहीं हैं। मेडिकल कालेज के नाम पर सिम्स की क्या हालत है-सभी को मालूम है। आमआदमी को इलाज के लिए ही जहां भटकना पड़े तो फिर काहे का मेडिकल कालेज है। एसईसीएल वगैरह की भी यही हालत है..। लगता है बिलासपुर के लोगों ने अपने शहर में नए-नए चारागाह खोलने के लिए ही जनआंदोलन किए और इन चारागाहों में लोग बैखौफ चर रहे हैं। उनकी तरफ न कोई देखने वाला है और न किसी को उनकी फिकर है।

अन्ना ने एक सवाल के जवाब में कहा कि किसी जनआंदोलन का हश्र क्या होता है और उससे आमआदमी का कितना जुड़ाव रहता है इसे समझने की कोशिश में मैने यहां की यात्रा की। लेकिन  इस दौरान जो कुछ मुझे देखने को मिल रहा है वह काफी भयावह है। लोकपाल आंदोलन के बाद देश भर के लोग उम्मीद लगाए हैं कि इससे देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा……सब सोच रहे हैं ….बड़ी उम्मीदें हैं। लेकिन बिलासपुर की हालत देखकर मुझे भी भय लगने लगा है कि आम लोगों की हिस्सेदारी से जो मुहिम चलाई जाती है क्या सचमुच उससे तस्वीर बदली जा सकती है ?

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इस सवाल पर कि अब इस शहर के लोगों को क्या कदम उठाना चाहिए….अन्ना बोले कि जिस शहर के लोगों ने खुद लड़ाई लड़कर अपना हक हासिल किया है- वहां के लोगों को क्या मशवरा दिया जाए। हैरत होती है देखकर कि लोग सोये हुए हैं। तकलीफ भी उठा रहे हैं औऱ उफ भी नहीं करते । जिस शहर के लोगों ने बड़े-बड़े लोगों को जगाया है भला उन्हे कौन जगा सकता है।इस शहर के लोगों को तस्वीर बदलने का हुनर मालूम है , मगर पता नहीं क्यों उसका इस्तेमाल नहीं करते।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर बिलासपुर के लोगों को क्या करना चाहिए। अन्ना ने कहा कि इस मामले में इस शहर के लोग ही ज्यादा अच्छा सोच सकते हैं। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि वे अपनी ताकत को पहचाने। चाहे सड़क की बात हो या और कोई मामला हो व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों को कटघरे मेँ खड़े करके बेबाकी के साथ सवाल करना चाहिए । सरकारी अमला और जनप्रतिनिधि कोई अपने घर से तो जनसुविधाओँ का इंतजाम नहीं करते , जो कुछ भी होता है वह जनता के ही पैसे से होता है , फिर भय क्यों होना चाहिए। जहाँ तक जनआंदोलन से हासिल किए सरकारी संस्थानों की व्यवस्था का सवाल है- इस मामले में भी गम्भीरता से सोचने की जरूरत है। आम आदमी महज इसके लिए ही नहीं है कि अपने इलाके की बेहतरी के लिए रेलवे जोन, मेडिकल कालेज, या सेन्ट्रल युनिवर्सिटी जैसे संस्थान खोलने के लिए आंदोलन करे और फिर उस संस्थान को चारागाह की तरह चरने के लिए खुला छोड़ दे। इन संस्थानों के मौजूदा हालात को देखकर लगता है कि इनके काम-काज को आम लोगों के हितों के अनुरूप बनाने के लिए एक बार फिर लोगों को पूरी एकजुटता के साथ आंदोलन करना चाहिए।

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अन्ना ने ऑफ द रिकार्ड भी बहुत सी बातें कहीं….। जिसके जरिए वे बताना चाहते थे कि जनआंदोलन को   देश की कोई भी सरकार हल्के में नहीं ले सकती   तो फिर जनआंदोलन के जरिए सबकुछ हासिल करने वाले इस शहर के लोगों को खामोश नहीं बैठना चाहिए……….। लम्बे इन्टरव्यू को समेटने की कोशिश करते-करते मेरी नींद खुल गई………और अन्ना मेरे सपने से जा चुके थे……।सामान्य होने में कुछ वक्त तो लगा लेकिन सपने के इस साक्षात्कार को याद करके अपने – आप से पूछने का मन हुआ कि अन्ना ने बिलासपुर के बारे में जो कुछ कहा उसमें गलत क्या था ?

 

 

 

( यह स्वप्न लेख 2011 में लिखा गया था…। उसके बाद से काफी कुछ बदल चुका है..। अन्ना के आंदोलन के सियासी नतीजे के बतौर दिल्ली में केजरीवाल (आप) की सरकार बन गई…। लेकिन अन्ना की मंशा के अनुरूप क्या सचमुच तस्वीर में कोई बदलाव दिखाई दे रहा है इस पर सबकी नजरें लगी हुई हैं। जहां तक बिलासपुर की तस्वीर का सवाल है ? यहां भी तो लिंक रोड के सारे पेड़ कट गए….. सिवरेज की चाल ने सभी को अपनी चाल बदलने पर मजबूर कर रखा है…….गौरव पथ में लोग गौरव की तलाश कर रहे हैं…… तुरकाडिह पुल से आने – जाने के रास्ते पर दीवार खड़ी हो गई है….. अधूरे सरकारी काम उद्घाटन का न्यौता बंटने का इंतजार कर रहे हैं….। और भी बहुत कुछ है…। जिसे खामोशी से देख रहे हैं । हमारे साथी व्योमकेश आशु त्रिवेदी की प्रतिक्रिया के अनुसार शायद  ‘’मौन सत्याग्रह ‘’ का रास्ता अख्तियार कर  ‘’अच्छे दिनों ‘’ का इंतजार कर रहे हैं ?? )

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