अपने ही घर में गुम हो गया एक इतिहास….

पेंड्रा । आज से करीब एक सौ पन्द्रह साल पहले पेन्ड्रा से छत्तीसगढ़ मित्र नाम की पत्रिका निकालकर छत्तीसगढ़ और पत्रकारिता मे अपना नाम दर्ज करने वाले माधवराव सप्रे को पेण्ड्रा के लोगोँ ने भी भुला दिया और बिलासपुर जिले के लोगों ने भी उन्हे याद नहीं किया। भोपाल में उनके नाम पर संग्रहालय बनाया गया है और छत्तीसगढ़ की राजधानी में उनकी जन्मतिथि 19 जून को एक जलसा भी हुआ। लेकिन उनकी कर्मभूमि में किसी ने भी उन्हे याद नहीं किया। पंडित माधवराव सप्रे द्वारा संपादित छत्तीसगढ़ मित्र की प्रतियां आज भी हैं और पेण्ड्रा में जिस राजमहल में उन्होने तब के राजकुमार को अंग्रेजी पढ़ाई थी, वह महल भी आज अपनी जगह पर खड़ा है। मगर पेण्ड्रा में सप्रेजी की यादों को संजोने की फिकर करने वाला कोई नहीं है। ऐसे में नई पीढ़ी को यह पता भी कैसे चल पाएगा कि अंग्रेजों की गुलामी के दौर में लोकजागरण के लिए माधवराव सप्रे जैसी शख्सियत ने बिलासपुर जिले के पेण्ड्रा को चुना था और तवारीख में अपना नाम दर्ज कर गए।
माधवराव सप्रे (19जून 1871 – 26 अप्रैल 1926) का जन्म दमोह के पथरिया ग्राम में हुआ था। बिलासपुर में मिडिल तक की पढ़ाई के बाद मेट्रिक रायपुर से पास किया। 1899 में कलकत्ता विष्वविद्यालय से बी ए करने के बाद उन्हें तहसीलदार के रुप में शासकीय नौकरी मिली जरूर पर उन्होने भी देश भक्ति प्रदर्शित करते हए अँग्रेजों की शासकीय नौकरी की परवाह नहीं की। सप्रे जी 1899 में छत्तीसगढ़ के पेंड्रा के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक बने। उन्होने यहीं से सन् 1900 में ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का संपादन शुरू किया। उनकी यह पत्रिका देशभर में प्रसिद्ध हो गयी। इसका प्रकाशन सन् 1902 तक चलता रहा। उस दौर में ख्याति तो बहुत मिली, लेकिन तब विज्ञापन देने का रिवाज नहीं था। लागत, वितरण के भी खर्चे बढ़ने लगे। पहले वर्ष में छत्तीसगढ़ मित्र को 175 रुपए और दूसरे वर्श 118 रुपए का घाटा उठाना पड़ा। इस क्षति के एवज में भरसक सहयोग की माँग की जाती रही। लेकिन घाटा बरकरार रहा। लिहाजा छत्तीसगढ़ मित्र बंद हो गया। तब सप्रे जी ने भरे मन से लिखा था कि परमात्मा के अनुग्रह से जब छत्तीसगढ़ मित्र स्वयं सामर्थ्यवान होगा, तब वह फिर कभी लोकसेवा के लिए जन्मधारण करेगा। इस पत्र के बंद होने के बाद भी आगे सप्रे जी ने हिंदी ग्रंथमाला, हिंद केसरी, कर्मवीर इत्यादि का प्रकाशन किया। पत्रिका के संपादन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय श्री रामराव चिंचोलकर उनके सहयोगी थे, जबकि प्रकाशन का दायित्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय पंडित वामन बलीराम लाखे ने सम्हाला था।
स्वर्गीय पंडित माधव राव सप्रे ने रायपुर में राष्ट्रीय चेतना और चिंतन के प्रथम केन्द्र के रूप में आनंद समाज वाचनालय की स्थापना में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने सन् 1905 में नागपुर में हिन्दी ग्रंथ प्रकाशन मण्डली की स्थापना की और सन् 1907 में 13 अप्रैल से हिन्दी केसरी का प्रकाशन शुरू किया। अपनी पत्रकारिता और लेखनी के माध्यम से स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रोत्साहित करने की वजह से पंडित माधव सप्रे को अंग्रेज हुकूमत ने 22 अगस्त 1908 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124-अ के तहत गिरफ्तार भी कर लिया था ।जिसके कुछ महीनों बाद उन्हे रिहा किया गया। सप्रे जी ने रायपुर में ही सन् 1912 में जानकी देवी कन्या पाठशाला की स्थापना करवायी। उन्होंने लोकमान्य पंडित बाल गंगाधर तिलक के मराठी ग्रंथ ‘गीता रहस्य’ का हिन्दी अनुवाद किया, जो सन् 1916 में प्रकाशित हुआ। पंडित माधव सप्रे ने रायपुर में सन् 1920 में राश्ट्रीय विद्यालय और हिन्दु अनाथालय की स्थापना में भी अहम भूमिका निभायी। सप्रे का जी का निधन 23 अप्रैल 1926 को रायपुर में हुआ।
चौथे स्तंभ की बुनियाद के नाम पर एक स्तंभ भी नहीं…?
सप्रे जी का न केवल पेंड्रा में बल्कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में भी गौरवषाली स्थान रहा है पर जहां स्थानीय स्तर पर लोगों ने उनको याद तक करना मुनासिब नही समझा । तभी तो 115 साल बाद भी पेण्ड्रा में उनकी प्रतिमा की तो बात ही दूर है, व्यवस्था के चौथे स्तंभ की बुनियाद समझे जाने वाले सप्रेजी के नाम पर एक स्तंभ भी नहीं है। पेंड्रा के जिस राजमहल में सप्रे जी रोजाना जाकर उस समय के राजकुमार को अंग्रेजी का अध्यापन कराया करते थे ,वह राजमहल वक्त की ठोकरों के साथ आज भी अपनी जगह पर खड़ा है। लेकिन सप्रेजी की यादों को संजोए रखने के नाम पर कुछ भी नहीं है। वे जिस घर में रहा करते थे वहां पर एक सामान्य सी दुकान चल रही है। स्थानीय प्रेस क्लब की ओर से सप्रे जी की यादों को संवारने के लिये पत्रकार भवन सह वाचनालय की मांग कई दफा प्रदेश सरकार से की गई। पर एक ढेला भी सरकार की ओर से अब तक नहीं मिल सका । जबकि समय समय पर सरकारी नुमाईंदों और जनप्रतिनिधियों ने सप्रे जी के नाम पर झूठी घोषणांए कर तालियां जरूर बटोरी पर आज तक एक ईंट भी सप्रे जी के भवन के नाम पर रखी नहीं जा सकी है।
करीब पांच साल पहले प्रदेश सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल जब चुनाव के पहले विकासयात्रा लेकर यहां पहुंचे तो उन्होने हाईस्कूल के मैदान पर पत्रकार भवन के लिये पांच लाख देने की घोषणा की थीं। इसके बाद बिलासपुर जिले के प्रभारी मंत्री हेमचंद यादव ने भी दो साल पहले प्रभारी मंत्री मद से माधवराव सप्रे की स्मृति में पत्रकार भवन के लिये पांच लाख रूपये देने की घोषणा कर गए। इस पर भी नगर पंचायत से पत्राचार भी हुआ पर आज तक वह पैसा भी नहीं आया। इसके अलावा दो साल पहले केन्द्रीय कृषि मंत्री चरणदास महंत ने भी मरवाही दौरे के समय कुछ ऐसी ही घोषणा की थी। लेकिन उनकी राशि भी अब तक नहीं मिली। मुख्यमंत्री जितनी बार आए उनसे स्थानीय पत्रकारों ने माधवराव सप्रे लायब्रेरी और पत्रकार भवन की मांग की। जिस पर भी मौखिक आश्वासन मिलता रहा। वहीं मरवाही के पूर्व विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने भी अपने कार्यकाल में जहां सप्रे जी की यादों को पेंड्रा में संजोने के लिये कोई पहल नहीं की तो उनकी पत्नि तथा कोटा विधायक डा.रेणु जोगी और पुत्र मरवाही विधायक अमित जोगी की ओर से भी सप्रे जी को गौरवान्वित करने के लिये अब तक कोई पहल नहीं की जा सकी है। वहीं नगर पंचायत पेंड्रा की ओर से एक दशक पहले माधवराव सप्रे वाचनालय भवन तो शुरू किया गया था। लेकिन चंद सालों में ही यह लायब्रेरी बंद हो गयी और अब भवन भी जर्जर होते जा रहा है और अब इसे फिर से शुरू करने का कोई लक्षण नजर नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर सरकार और जनता के नुमाइंदो ने सप्रे जी की कर्मभूमि पेंड्रा में उनकी स्मृतियों को संजोने – संवारने के लिये सिर्फ और सिर्फ मजाक ही किया है यह कहना जरा भी गलत नहीं होगा। जिनकी वजह से एक इतिहास अपने ही घर में गुम हो गया ।
सोशल मीडिया ने दिलाई याद….
माधव राव सप्रे की 145वीं जयंती के अवसर पर उनको उनकी कर्मभूमि पेंड्रा गौरेला में भी श्रद्धांजली देने के लिये सोशल मीडिया में भी अपीलें होती रही । फिर भी कोई असर नहीं दिखाई दिया। फेसबुक यूजर शैलेष कुमार मिश्र ने फेसबुक पर पोस्ट कर पेंड्रा और पेंड्रारोड के मित्रों से एक विनम्र अपील करते हुये कहा कि क्या आप जानते है की छत्तीसगढ़ मित्र नामक पत्रिका जिसे छत्तीसगढ़ की पहली पत्रिका होने का गौरव हासिल है, पेंड्रा में छपती थी. इसके संपादक सहकारिता आंदोलन के प्रणेता और साहित्य पुरोधा पं माधवराव सप्रे जी थे। हम पेंड्रा और पेंड्रारोड के लोगों ने हमारे नगर-द्वय की इस गौरव शाली परम्परा को भुला दिया है। आज कितने लोग है जो जानते है की पेंड्रारोड और पेंड्रा की धरती सप्रे जी की कर्मस्थली रही है। आज साहित्य पुरोधा पं माधवराव सप्रे जी की जयंती देश भर में मनाई जा रही है ।लेकिन हम पेंड्रा और पेंड्रारोड के लोग इस बात से बेखबर है। आइये कुछ पहल करें की अगले वर्ष सप्रेजी की जयंती पेंड्रा और पेंड्रारोड में भी मनाई जाये तथा हमें इस बात का गर्व हो की साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में हमारा इतिहास बुलंद रहा है. इस कार्य में जनप्रतिनिधियों और साहित्यप्रेमी जनता को जोड़ना श्रेयष्कर होगा ।