अलविदा …. डॉ व्यास नारायण द्विवेदी…. अबके गए ले कब अइहौ महराज…..

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( रुद्र अवस्थी ) सुबह का वक्त था………. मोबाइल पर अनज़ान नंबर के साथ घंटी बजी …….उठाया तो पथरिया से सुनील यादव ( कल्लू ) का फोन था । फोन उठाते ही उसने यह दुखद खबर बताई कि… “भैया ब्यास महाराज गुजर गए”  ।  व्यास महाराज यानी डॉ व्यास नारायण द्विवेदी….. पथरिया इलाके के लोग उन्हे इस नाम से ही ज़ानते और पुक़ारते थे।  उनके निधन की खबर से मैं स्तब्ध रह गया । कुछ दिन पहले ही उनके कोरोना पॉजिटिव होने की खबर मिली थी । इस बीच उनके इलाज और होम क्वॉरेंटाइन होने के बारे में भी पता चला था । ख़बर यह भी मिली थी कि उनकी रिपोर्ट अब निगेटिव आ गई है। ज़िससे उम्मीद थी कि वे शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएंगे।  लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था और वे दुनिया छोड़कर चले गए ।

डॉ. व्यास नारायण द्विवेदी मेरे गांव पथरिया के ही थे और मैंने उन्हें बचपन से ही देखा था । उन दिनों में हम लोग स्कूल में पढ़ते थे ,जब डॉ व्यास नाराय़ण द्विवेदी रायपुर के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे और उस दौरान वे पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय छात्र संघ  के पहले अध्यक्ष थे ।  कभी-कभी उनका पथरिया आना होता था।  उस दौरान गोल चेहरे, बड़ी आंखें और साफ-सुथरी स्पष्ट आवाज के साथ एक चेहरा उभरता था।  उस समय भी कई बार उनसे बात होती थी । स्कूल में भी कभी – कभी उन्हें बोलने के लिए बुलाया जाता था । तब  उन्हें सुनने का अवसर भी मिला  । इसके बाद करीब चार – पांच दशक तक़ उनके साथ संबंध रहा।   वे पढ़ाई पूरी कर लौटे और उस इलाके की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे । सार्वज़निक जीवन में रहते हुए उनकी सोच बहुत ही अलग थी ।ख़ासकर इलाके की तरक्की को लेकर हमेशा सोचते और कुछ न कुछ करते रहे । तब भी उनसे लगातार बातें होती रही ।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी डॉ व्यास नारायण द्विवेदी एक ऐसे शख्स थे , जिनके अंदर बहुत सी खासियत एक साथ जुड़ी हुई थी । वह ओशो रजनीश के जीवन काल में ही उनके संपर्क में आए और जीवन पर्यंत उनकी विचारधारा से जुड़े रहे । वे नियमित रूप से ध्यान करते थे और जीवन को लेकर उनकी सोच बहुत साफ-सुथरी थी । ज़िसकी झ़लक उनका सियासत में भी मिलती रही । उनका बचपन पथरिया गांव में ही गुजरा और वहां के स्कूल में ही आठवीं तक की पढ़ाई की थी । इसके बाद तखतपुर स्कूल में मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की । वहां से आयुर्वेदिक में पढ़ाई के लिए रायपुर चले गए । जहां छात्र राजनीति में हिस्सा लेते हुए उन्होंने बहुत ऊचाइयाँ हासिल की और पंडित रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के पहले छात्रसंघ अध्यक्ष बने।  वे कबड्डी के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे । उन्होंने यूनिवर्सिटी की टीम से भी कबड्डी में हिस्सा लिया । गांव वापस लौटने के बाद उनका कबड्डी प्रेम हमेशा झलकता रहा ।  गांव में कहीं भी कबड्डी का मैच होता तो वह जरूर पहुंचते । कई बार मैदान में खुद भी खेलने उतर जाते ।  खेल पूरा होने के बाद जीतने वाली टीम के लिए  दूध का इंतजाम करा देते  और खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाते ।  उस दौर में उन्होंने एक बार पथरिया में 5 दिन के बृहत् कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन भी किया।  जिसमें पूरे छत्तीसगढ़ की नामी कबड्डी टीमें शामिल हुई।  इस आयोजन को बरसों तक लोग याद करते रहे ।

सांस्कृतिक और लोक परंपरा के आयोजनों में भी उनकी बड़ी दिलचस्पी रही । फाग गीत के रसिया के रूप में पूरे इलाके के लोग उन्हें जानते हैं । उनके नगाड़े की थाप दूर से ही सुनकर कोई बता सकता था कि नगाड़ा बजाने वाले डॉ व्यास ही हैं ।  हम लोग बचपन में ही दूर से उनका नगाड़ा सुनकर पहुंच जाते थे और घंटों उनका फाग सुनते थे । लोग उन्हें दूर-दूर तक फाग के लिए बुलाते रहे । मूलतः आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में भी उन्होंने पथरिया- पूछेली और दूसरे कई स्थानों में अपनी सेवाएं दी । लेकिन डॉ व्यास दिवेदी का मन तो राजनीति में रमता था । हालांकि यह बदकिस्मती उनके साथ जुड़ी रही कि वह शख्स अपनी योग्यता- काबिलियत की बदौलत जिस स्थान का हकदार था ,उसे वह स्थान नहीं मिल पाया ।  कई बार चर्चाओं में यह बात सामने आई कि रविशंकर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए उनके संपर्क उस समय छत्तीसगढ़ के बड़े नेताओं के साथ रहे । उस दौर में ही कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल और रायपुर के कलेक्टर रहे अजीत जोगी के साथ उनका काफी गहरा नाता था । उन्होंने खुद भी एक बार जिक्र किया था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका मन राजनीति में जाने का था । एक बार विद्याचरण शुक्ल ने उनकी टिकट पक्की भी कर दी थी  । टेलीग्राम के जरिए उन्हें सूचित भी किया था । लेकिन दुर्भाग्य से उसी समय उनकी पत्नी का देहावसान हो गया और उनका बैरागी  मन सब कुछ छोड़ चुका था।  उन्होंने डाकिए से कहकर टेलीग्राम ही लौटा दिया । काफी समय तक वे इस भाव में ही रहे । फिर दूसरा विवाह कर जिंदगी की नई पारी शुरू की । डॉ व्यास द्विवेदी  जनपद पंचायत की राजनीति में उतर कर इलाके की तरक्की के लिए कुछ करना चाहते थे । उस समय पथरिया इलाका जरहागांव विधानसभा क्षेत्र में आता था ।  विधायक का पद रिज़र्व होने के कारण उन्हें लगता था कि जनपद पंचायत के जरिए इलाके की तरक्की के बड़े काम किए जा सकते हैं  । लिहाजा उन्होंने जनपद की राजनीति में भी हिस्सेदारी के लिए अपनी किस्मत आजमाई । लेकिन दुर्भाग्य से वे कामयाब नहीं हो सके।  इस बीच उन्होंने इलाके की सिंचाई, सड़क और दूसरे कामों के लिए अपने संपर्क के जरिए इलाके के लिए कुछ करने का लगातार प्रयास किया ।  वह पूरे समय पथरिया इलाके में ही रमे  रहे और जो कुछ हो सकता था वह किया ।

चुनावी राजनीति की उन्हें बहुत अच्छी समझ थी । वह गांव में रहकर ही पूरे प्रदेश के दौरे पर निकल जाते और उनके पास छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा सीट की पूरी जानकारी रहती थी  । चुनाव के पहले उनका आकलन हमेशा नतीजे से मेल खाता था । दलगत राजनीति के लिहाज से उन्होंने शुरुआत तो कांग्रेस से ही की थी और अविभाजित मध्यप्रदेश में विद्याचरण शुक्ल और अर्जुन सिंह के साथ भी उनके करीबी के संबंध रहे । इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी मैं शामिल होने का फैसला किया और बीजेपी में भी कई पदों पर रहे ।  1990 के बाद उन्होंने एक बार जिला भाजपा अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ा । बाद में वे फिर कांग्रेस में लौट आए ।  उनके संपर्क कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं से भी रहे । जिनमें सीपी जोशी जैसे कई नाम है ।  छत्तीसगढ़ के मौजूदा  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल , स्वास्थ मंत्री टी एस सिंह देव, विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत के साथ भी उनके करीब के संबंध रहे हैं । मुंगेली अलग जिला बनने के बाद उनका संपर्क और भी व्यापक हो गया । वे जिले की राजनीति में प्रमुख आधार स्तंभ माने जाते रहे । पिछले विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने पूरे इलाके का दौरा किया और उनकी पहचान प्रमुख रणनीतिकारों में रही । पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के साथ भी उनके काफी करीबी संबंध रहे । लेकिन वे अपने सिद्धांतों के साथ हमेशा राजनीति करते रहे और “रमता जोगी बहता पानी….” के अंदाज में सियासत में भी उनकी हिस्सेदारी रही ।

डॉ व्यास नारायण द्विवेदी के निधन की खबर से पथरिया इलाके में शोक की लहर है ।  वहां हर कोई उन्हें जानने वाला है और उनका इस तरह जाना सभी को दुखी कर गया । उनके बचपन के साथी हरवंश सिंह हूरा आज भी उन्हें “मितान” कह कर संबोधित करते हैं । उन्होंने डॉ. द्विवेदी  के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया । वे याद करते हैं कि रविशंकर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहते हुए ,उन्होंने रायपुर बुलाया था । तब लगा था कि अपने गांव का साथी आज किस ऊंचाई पर है । हरबंश सिंह को भी इस बात का अफसोस है कि डॉ व्यास नारायण द्विवेदी जिस स्थान के लिए बने थे ,वह स्थान उन्हें जीवन पर्यंत नहीं मिल सका । इसका अफसोस रहेगा….। विधि का विधान सभी को मंजूर है ।  ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दे …….। वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा ने अपनी श्रद्धांजलि इन शब्दों में दी ……मेरे मित्र पथरिया निवासी व्यास नारायण द्विवेदी रविशंकर विवि के पहले छात्रसंघ अध्यक्ष रहे, प्रकाश शुक्ला दूसरे अध्यक्ष बने सकर्रा गांव के भरत गौरहा किंग मेकर थे ।  जिन्होंने चुनाव में बड़ी सांझेदारी निभाई थी। भरत भाई भी रामकृष्ण आश्रम से जुड़े थे। किस्मत के खेल ये तीन दिग्गज अविभाजित बिलासपुर जिले के थे और हमारे बीच अब नहीं रहे।।सबको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि….।

प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने कहा कि व्यास नारायण द्ववेदी, स्वामीजी आज हम सब के बीच से ईस्वर के पास चले गए। छात्र राजनीति से रविशंकर विश्विद्यालय के अध्यक्ष ,जैसे पदों मे रहकर राजनीतिक चेतना,सामाजिक सरोकार , समाज की कुरीतियो के खिलाफ अलग जगाने का काम पूरी तंमान्यता से करने वाले स्वामी जी को भावपूर्ण श्रद्धान्जलि। छत्तीसगढ़ के सामाजिक रचना और चेतना का समझने वाली शख्सियत चली गई। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री अर्जुन तिवारी के साथ भी उनका गहरा नाता रहा । वे भी याद करते हैं कि राज़ीति में डॉ. द्विवेदी जैसे लोग कम ही मिलते हैं। ज़िनके भीतर संवेदना, कुशाग्रता , लगनशीलता , प्रेम – व्यवहार , अपनापन सबकुछ एक साथ हो। पथरिया नगर पंचायत के पहले निर्वाचित अध्यक्ष जसपाल छाबड़ा भी याद करते हैं कि डॉक्टर व्यास नारायण  द्विवेदी के मन में हमेशा पथरिया और इस इलाके की तरक्की की बात घूमती रहती थी । वह अपने संपर्कों का उपयोग कर इस इलाके की तरक्की के लिए प्रयास करते रहे । इस रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा । पथरिया गांव के ही महेतरू राम डड़सेना  ने डॉ. दिवेदी को याद करते हुए बत़ाया  कि वे बच़पन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे । तेज विद्यार्थी के रूप में स्कूल में उनकी पहचान थी । कबड्डी और ऊँची कूद में भी वे हमेशा अव्वल रहे महेतरू लंबे समय तक उनके साथ रहे । उन्हें फाग गीत में जुगलबंदी करने का अवसर मिलता रहा । फ़ाग गीत के एक अँश  को याद कर महेतरू अपने आंसू नहीं रोक सके जिसमे वे गाते थे …. “ फ़ागुन महराज़ अबके गए ले कब अइहौ… । फ़ागुन महराज तो हर साल लौट कर आ आते हैं …. लेकिन अगर मेरे ब्यास महाराज वापस न लौट सकें तो ईश्वर उन्हे अपने चरणों मे ज़गह दीजिएगा…….।”   

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