इस खेल में चकमा दे गई आखिरी गेंद…
(रुद्र अवस्थी) चौसर-पासा,पचीसा,साँप-सीढ़ी,लुडो, शतरंज जैसे खेलों में दोनों तरफ से दाँव पर दाँव चलते-चलते एक ऐसी भी सूरत पेश आती है ,जब आमने –सामने के खिलाड़ियों की जीत-हार का पूरा दारोमदार आखिरी चाल पर टिका होता है…….। ताश के बावन पत्ते भी कभी-कभी बाजी को उस मुकाम पर पहुँचा देते हैं कि जीत-हार का फैसला आखिती पत्ते पर जाकर टिक जाता है…….। यह वो तस्वीर होती है, जिसे देखने वालों की भी साँसे थम जाती हैं।फिर खेल में जिनकी इज्जत दाँव पर लगी हो , उनकी हालत समझी जा सकती है….। छत्तसीगढ़ में काँग्रेस की सियासी विसात भी इन दिनों कुछ इसी तरह बिछी हुई है। इस खेल में भी शह और मात में लगे खिलाड़ियों के साथ ही दर्शकों की धड़कनें भी बढ़ी हुई हैं। छत्तीसगढ़ के नाम के अनुरूप 3 और 6 अंक की तरह एक-दूसरे की तरफ पीठ करके बैठे –आपस में लड़ रहे काँग्रेसियों ने पिछले एक दशक से भी अधिक समय से यह साबित करने में कोई कमी नहीं की है कि विपक्ष में रहकर भी लड़ते रहने के सौ बहाने जुटाए जा सकते हैं….। भले ही इसी की वजह से बार-बार विपक्ष में बैठते रहना पड़े। लेकिन करीब बारह-तेरह साल के “वन-पर्व” के दौरान भी चौसर के दोनों किनारों पर बैठकर खेल-खेल में मनोरंजन कर रहे एक ही परिवार के सगे भाइयों ने अब अपने खेल को इस मुकाम पर पहुँचा दिया है कि आखिरी गोटी को आखिरी फैसला करना है….। छत्तीस के आँकड़े में एक-दूसरे से पीठ कर एक ही घर में बैठे दिग्गज एक- दूसरे के आमने-सामने आकर खड़े हो गए हैं….। घर के अँदर खिंची बंटवारे की हल्की सी लकीर की जगह ऊँची दीवार खड़ी हो सकती है……..। फिर अपने-अपने कुनबे में साफ-सफाई के साथ बैठकर अपनी-अपनी ताकत के हिसाब से सियासत के खेल में अपने हाथ आजमाएंगे…….।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद से काँग्रेस की पटकथा का जो लेखन शुरू हुआ था, उसका अब तक का किस्सा सभी को मालूम है । इस सीरियल के ताजा एपीसोड में टेप काण्ड के बाद प्रदेश काँग्रेस समेटी ने मरवाही विधायक अमित जोगी को पार्टी से निकाल दिया है और उनके पिता प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निष्कासन का प्रस्ताव एआईसीसी को भेज दिया गया है। किसी अंग्रेजी मूव्ही की मानिंद टेप काण्ड में जिस तरह साजिश दर साजिश से जुड़े सीन सामने आते रहे , उसी तरह अब इंटरवेल के बाद यह जानने की दिलचस्पी है कि –आगे क्या होगा? सियासत का खेल भी ट्वेन्टी-ट्वेन्टी फटाफट क्रिक्रेट की तरह दिलचस्प होता है। जिसमें कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। लेकिन इस बार छत्तीसगढ़ कांग्रेस में जो कुछ चल रहा है, उसे देखकर लगता है कि खेल की शुरूआत बड़ी तैयारी के साथ हुई है। बैटिंग-बालिंग और चुस्त फील्डिंग के साथ भूपेश बघेल-टीएस सिंहदेव की टीम इस तैयारी के साथ मैदान में उतरी कि हर बार आखिरी बाल में गेंद को बाउन्ट्री के बाहर ठोंक कर जीत का सेहरा पहनने वाले अजीत जोगी भी यह समझ नहीं पाए कि गेंद किधर से आकर किधर से घूमते हुए उनकी गिल्ली उड़ाते हुए निकल गई। मैच देखकर लगता है कि उन्हे टीम-भूपेश की इस तैयारी का अंदाज नहीं था। और वे हमेशा की तरह हल्के कदमों से खेलते हुए जीत हासिल कर लेने की उम्मीद में थे। जोगी को जोगी के दाँव में मात देने की चाक-चौबंद तैयारी की भनक टीम-अजीत के “सतर्कता विभाग” को नहीं लग पाई। टेप-कांड का शोर उठने के बाद उनकी टीम हमेशा की तरह थाना-कोर्ट-कचहरी के जरिए इसे झूठ करार देने की कोशिश में जुट गई। उन्हे लग रहा था कि अभी तो खेल लम्बा चलेगा और और कमजोर गेंद पाकर बाउन्ड्री पार कर देंगे। लेकिन दूसरी तरफ से बालिंग कुछ इस तरह से हुई कि हर मैच में दो –चार कदम आगे बढ़कर अफेंसिव्ह बैटिंग करने वाले अजीत जोगी को भी डिफेन्सिव्ह अंदाज में खेलना पड़ गया।
कोई भी समझ सकता है कि भूपेश-टीएस बाबा की टीम ने पार्टी हाइकमान को भरोसे में लेकर पहले से ही अपनी जीत की भूमिका बना ली थी। अव्वल तो उन्हे संगठन की सक्रियता का अहसास कराया। फिर नगरीय निकाय चुनावों मे जीत के जरिए जनाधार का सबूत दिया। इस बिना पर फ्री-हैण्ड पहले ही हासिल कर लिया। इस बीच टेप काण्ड का बाउंसर कुछ इस तरह सनसनाता हुआ आया कि टीम-अजीत जोगी बचाव की मुद्रा में आ गई। गेंद टप्पा खाने के बाद कुछ इस तरह घूमी कि टीम भूपेश को मैदान में चल रही सियासी बयार का भी साथ मिल गया। रायपुर के कांग्रेस भवन में पीसीसी की मीटिंग के दौरान निष्कासन के फैसले के बाद पदाधिकारियों के हाथ जिस तरह एक साथ हवा में लहराए, उसकी तस्वीर देखकर मैच के आखिरी गेंद में अपनी टीम की जीत पर जोश के उफान का अदाजा कोई भी लगा सकता है। यह चर्चा काफी पहले से चल रही थी कि अजीत जोगी को तगड़ा झटका देने समय का इंतजार किया जा रहा है। लेकिन ठोस सबूत के बिना निष्कासन से इस बात का खतरा भी था कि उन्हे सहानुभूति मिल सकती थी। टेप काण्ड सामने आने के बाद लगा कि अब उन्हे खुद को “बेचारा” साबित करने का मौका नहीं मिल सकेगा। लिहाजा निष्कासन जैसा बड़ा कदम उठाने में पीसीसी को न कोई संकोच हुआ न डर…..। लोग इसके बाद उम्मीद कर रहे थे कि जोगी अपने अँदाज में आक्रामकता के साथ इसका जवाब देंगे, जिसमें नई पार्टी बनाने या कांग्रेस को नुकसान पहुँचाने का संकेत होगा। लेकिन उन्होने पार्टी हाइकमान पर भरोसा जताते हुए इंसाफ की उम्मीद जताई। खेल का दिलचस्प पहलू यह भी है कि अजीत जोगी बिलासपुर को अपना गृह जिला बताकर यहां के सारे फैसले खुद करते रहे हैं। लेकिन इस बार खुद जोगी के निष्कासन का प्रस्ताव सबसे पहले बिलासपुर सहित मुंगेली और कोरबा जिले से तैयार कराकर संगठन खेमे ने ऊपर तक संदेश भेज दिया कि – कौन किसके साथ है और जिला किसके कब्जे में है ?
एक अरसे से क्रिज पर जमे रहकर लम्बी पारी खेल रहे धुरंधर खिलाड़ी की गल्ली उड़ाने के बाद गेंद अब कन्ट्रोल बोर्ड ( हाइकमान) के हाथों में है। जिसे मैच का आखिरी फैसला करना है। चौसर की इस आखिरी गोटी पर अब लोगों की नजर लगी हुई है। अब आगे की संभावनाओँ पर बात करें तो एक उम्मीद कायम है कि अजीत जोगी के निष्कासन का प्रस्ताव खारिज हो जाए। ऐसा सिर्फ इस आधार पर ही हो सकता है कि आलाकमान इस डर से अपना कदम वापस ले ले कि इससे छत्तीसगढ़ में पार्टी का जनाधार कमजोर हो सकता है। लेकिन हाल के चुनावों में जीत हासिल कर जिस तरह से संगठन खेमे ने जनाधार को लेकर अपना भरोसा जीता है, उससे इसकी संभावना कम ही लगती है। अब अजीत जोगी के बाहर निकलने के बाद की तस्वीर पर गौर करें तो पहली नजर में लगता है कि यदि किसी पार्टी से अजीत जोगी जैसा लीडर बाहर निकले तो उसे नुकसान तो होना चाहिए। वे चुप तो बैठेंगे नहीं…..। उनके साथ कार्यकर्ताओँ की अपनी फौज है और विधायकों का भी साथ है।लेकिन सौ टके का सवाल यह भी है कि हमेशा “सेफ-साइड” खेलने की मानसिकता वाले छत्तीसगढ़ के कितने सियासतदां जोगी के साथ जाने का रिस्क उठाएंगे। अविभाजित मध्यप्रदेश का वह सियासी मंजर आज भी पुराने लोगों के जेहन में है , जब अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज ने तिवारी कांग्रेस बनाई थी। तब दिग्गी राजा सूबे के मुख्यमंत्री थे। और लोगों को लगा था कि पूरी सरकार ही तिंका में समा जाएगी। लेकिन एक अदद इंद्रजीत पटेल को छोड़कर कोई भी विधायक अर्जुन सिंह के साथ नहीं गया था। दिग्गी ने तब काँग्रेस को टूटने से बचा लिया था। उस दौर और आज के दौर में इतना तो फर्क जरूर है कि तब अर्जुन सिंह ने खुद होकर कांग्रेस छोड़ी थी और आज अजीत जोगी को निष्कासित किया जा रहा है। इस फर्क के साथ कांग्रेस एक बार फिर उस मुकाम पर खड़ी है और टीम भूपेश-टीएस बाबा के सामने यह चुनौती है कि वे कांग्रेस को टूटने से बचा सकेंगे या नहीं…..? दूसरी तरफ अब तक अपनी खुद की जिंदगी और सियासी झंझावातों से सकुशल उबरनें मे कामयाब रहे चतुर-सुजान अजीत जोगी के लिए भी मौजूदा हालात से मुकाबला करते हुए अपनी टीम को बरकरार रखना एक चुनौती नजर आ रही है……..।
अवस्थी जी , बधाई। बहुत अच्छा विश्लेषण है।
धन्यवाद
मनुज बली नहीँ होत है ,समय होत बलवान
भिलन लुटी गोपियां ,वही अर्जुन ,वही राम
वक्त बदलते रहता है , आज बुरा है
कल अच्छा होगा ।
आज अच्छा है , कल बुरा होगा
शब्दों की बुनावट ही नहीं ,आतंरिक विश्लेषण ने एक बार फिर साबित किया है की क्यों आपको राजनितिक विश्लेषण का पितामह कहा जाता है।बेहद सटीक लेख और जबरदस्त के साथ दिलचस्प विश्लेषण। साधुवाद।
धन्यवाद
Very good analysis.
nice write up
36 यानी 3 और 6 का शानदार आंकड़ा
Satendra Verma Comment-आदरणीय भैया,
प्रणाम।
सर्व प्रथम सीजी वाॅल की हार्दिक बधाई। सीजी वाॅल में आई खबरें वास्तव में अपने आप में एक पूरी और महत्वपूर्ण खबरे होती है जिसका अध्ययन करनें पर ऐसा लगता है मानों हमनें अपनी खबरों में इन सब बातों का जिक्र ही ना किया मतलब उस ओर हमारा ध्या नही ना गया, और हो भी क्यों ना आप का अनूभव और हुनर से पूरा बिलासपुर मिडिया जगत कायल है । मिडिया में चुनकर खबरे लाने का ये अनूठा प्रयास तारीफ के काबिल है। भैया आपने एक कालम सम्पादकीय का बनाया है वह भी अपने आप में कलम की कारीगिरी का एक नमुना लगता है मानों एक एक षब्द चुनकर बनाये हों कुल मिलाकर माॅ सरस्वती का आर्षीवाद आपके लेखनी में स्पश्ट झलकता है। पत्रकारिता के जगत में सीजी वाॅल एक दर्पण की तरह आलोकित हो रहा है जिसकी आभा से हमें बहुत प्रेरणा मिलती है। आप और आपका सीजी वाॅल परिवार इसी तरह आलोकित होता रहे इन्ही षुभकामनाओं के साथ।
आपका छोटा भाई,,,,,,,,,,
सतेन्द्र वर्मा
सिर्फ चालाकी की राजनीति कब तक? अपनी ही पार्टी को हराने की साजिश को कोई दल कैसे माफ कर सकता है?