छत्तीसगढ़ में रथयात्रा, सुख समृद्धि का प्रतीक

Chief Editor
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बिलासपुर ( प्रकाश निर्मलकर ) – रथयात्रा भगवान श्रीकृष्ण का बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मौसी मां के घर जाने की धार्मिक मान्यता का निर्वहन का प्रतीक है। पूरे भारत में यह पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जगन्नाथ पूरी में भव्य रथों के साथ सवारी निकाली जाती है। छत्तीसगढ़   में भी इस परंपरा का निर्वहन पूरे भक्तिभाव और आस्था के साथ किया जाता है।

शहर, कस्बा और ग्रामीण परिवेश में रथयात्रा के माध्यम से परंपरा के प्रति निष्ठा और अटूट विश्वास  की झलक मिलती  है। लेकिन छत्तीसगढ़  में रथयात्रा का महत्व सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा के मौसी मां के घर जाने तक ही सीमित नहीं है यहां रथयात्रा को वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होने के बाद नव विवाहिता को ससुराल भेजने जिसे गवना कहा जाता है के लिए भी विशेष रूप से जाना जाता है। आज भी ग्रामीण अपनी बेटी को ससुराल भेजने या बहू को मायके से लाने के लिए रथयात्रा के दिन को ही शुभ मानते है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रथयात्रा जिसे ‘‘ रजुतिया ‘‘ भी कहते हैं का विशेष महत्व है। नई नवेली दुल्हन का रथयात्रा यानि रजुतिया के दिन घर में प्रवेश करना सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। हालांकि बदलते वक्त के साथ यह परंपरा अब विलुप्ति के कगार पर है लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में इस परंपरा का विशेष महत्व है।
छत्तीसगढ़ के अधिकतर ग्रामीण रथयात्रा यानि रजुतिया के दिन नव विवाहित युगलों के वैवाहिक जीवन की शुरूवात के लिए उपयुक्त और शुभ मानते हैं। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रथयात्रा के दिन दुल्हा छोटी बारात लेकर आता है और दुल्हन को विदा कराकर अपने घर ले जाता है। पहले तो एक गांव में इस दिन कई बेटियों की विदाई हुआ करती थी  । लेकिन अब यह चलन कम होता जा रहा  है।

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