जंगल में लूटतंत्र (कानून व्यस्था 1)

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प्रेस कांफ्रेस की विफलता से राजा सिंह नाराज हो गया। उसने मंत्री से कहा- शिक्षा के नाम पर डिग्री बेचना घोर अपराध है, अब समझ में आ रहा है, नंदन वन में इतनी घोर अव्यवस्था फैलने का एक कारण यह अनैतिक व्यापार भी है। ऐसा अनैतिक व्यावसाय करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

जामवंत ने कहा- राजन्, धनी वन्यप्राणी ही डिग्रियों की खरीद फरोख्त करते हैं, वे ही डिग्री का दुरुपयोग करते हैं, इससे सभी को लाभ की आशा रहती है, इसलिए इन व्यापारियों की कोई शिकायत नहीं करता है। यदि कोई शिकायत करता भी है, तो भ्रष्ट प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी मामला रफादफा कर देते हैं। सभी के परस्पर सहयोग, समन्वय व भातृभाव से यह काला धंधा चलता रहता है।

उच्च स्तर पर शिकायत नहीं पहुंचने से हमारे अधिकारी हस्तक्षेप नहीं कर पाते हैं। अब स्पष्ट जानकारी मिल गई है, इसलिए इन दुकानों को बंद कराने की पहल की जाएगी। पुलिस का नाम सामने आते ही राजा ने कहा- चलिए इस व्यवस्था का भी निरीक्षण कर लेते हैं।

वह जामवंत के साथ संबंधित जनपद के पुलिस थाने गया। वहां थानेदार की कुर्सी पर एक विशालकाय भैंसा बैठा था। राजा और मंत्री उसके निकट जाकर खड़े हो गए। भैंसे थानेदार ने उन्हें घूरकर ऐसे देखा, जैसे वे कोई अपराधी हों। सिंह ने भी थानेदार को घूरते हुए कहा- हम फलां शिक्षा संस्थान के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं, वहां फर्जी डिग्रियां बेची जाती हैं, इस संस्थान से डिग्री लेने वाले नंदन वन के वन्यप्राणियों को लूट रहे हैं।

सुनते ही थानेदार हंसा, उसने कहा- आपके पास संस्थान से फर्जी डिग्री बेचे जाने का कोई प्रमाण है… जाइए पहले प्रमाण लेकर आइए, उसके बाद शिकायत ली जाएगी। राजा ने कहा- हम शिकायत कर रहे हैं, आप मामले की जांच कीजिए, प्रमाण अपने आप मिल जाएगा। सिंह की तर्कपूर्ण बात सुनकर थानेदार भड़क गया। उसने संस्थान के अधिकारियों को विद्वान बताते हुए सिंह को फटकार लगाई और चुपचाप दफा हो जाने कह दिया।

इसी बीच कई विचित्र रंगों वाले विशालकाय श्वान सिपाही वहां पहुंच गए। श्वानों ने सिंह और जामवंत को घेर लिया। मोटे तगड़े श्वान हवलदार ने भैंसे थानेदार से कहा- इन्हीं ने डाक्टर लकड़बग्घा के हास्पिटल में हंगामा मचाते हुए लूटपाट की है। वारदात के बाद ये फरार हो गए थे, आज स्वयं थाने तक आ पहुंचे हैं।

इतना सुनते ही थानेदार की बांछें खिल गईं। उसने दोनों से पूछताछ आरंभ कर दी। भैंसे ने कड़क आवाज में कहा- बताओ तुम लोगों ने डाक्टर के हास्पिटल में हंगामा क्यों मचाया, डाक्टर से लूटी गई सोने की चेन, हाथ की घड़ी और डेढ़ लाख रुपए तुमने कहां छिपा रखा है? जल्दी बताओ…तुम लोगों ने और कहां कहां लूटपाट की है ? तुम्हारा सरदार कौन है ? तुम लोग रहते कहां हो ?

ताकतवर सिंह को देख भैंसे थानेदार का हृदय कांप रहा था, वह यह भी सोचता जा रहा था कि कहीं यह सिंह भड़क गया तो सिपाही भौंकते हुए भाग जाएंगे, मैं अकेला पड़ जाउंगा, यह सिंह मुझे मारकर भोजन करने लगेगा….

भयभीत होने के बावजूद रौब झाड़ने के लिए वह चीख चीखकर जमीन पर पैर भी पटकता जा रहा था। राजा और मंत्री यह देखना चाह रहे थे कि थानेदार आगे क्या करता है, इसलिए वे शांति से उसका तमाशा देख रहे थे। उन्हें शांत देख भैंसे ने दोनों को दस साल के लिए जेल भेजने की धमकी देनी आरंभ कर दी।

कुछ देर बाद सिंह ने स्वयं को निर्दोष बताते हुए कहा- थानेदार जी, वह डाक्टर लुटेरा है। उसने बीमार बताकर कई वन्यप्राणियों को हास्पिटल में जबरिया भर्ती कर रखा था और उन्हें लूट रहा था। मुझे भी उसने अस्वस्थ बताकर लूटने की कोशिश की। पोल खुलने पर हमने उसे फटकारा, पिटाई के डर से उसने स्वयं सभी वन्यप्राणियों को छोड़ा है….

(क्रमशः)(आगे है थानेदार से सौदेबाजी)

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