जंगल में लूटतंत्र (संस्कृति)

संस्कृति….2
गाय ने कहा -वर्जित वस्तुओं के व्यापार, तस्करी, लूट और डकैती के सहारे कुल दीपक मालामाल हो गए, उन्होंने पुराने घर को तोड़कर नया महलनुमा घर बनाया, उस घर में सर्वप्रथम भगवान श्रीहरि किनारे लगाए गए, हमें भी कोने के कमरे मे पोथी-पत्री के साथ फेंक दिया गया। हम घर के एक कोने में पड़े रहकर भगवान की पूजा करते थे।
दुःस्वप्न की तरह हमारी आंखों के सामने सबकुछ परिवर्तित हो गया, जिस घर में भगवान श्रीहरि का भजन होता था, वही घर श्वानों के कानफोड़ू संगीत के शोर में डूबा रहने लगा, जहां सत्य नारायण की कथा होती थी, वहीं लोमड़ियों की फिल्मों के किस्से चटखारे लेकर कहे सुने जाने लगे। बेटे पारंपरिक वेषभूषा का त्याग कर लोमड़ों की तरह कपड़े पहनने लगे, बहुएं लोमड़ियों की तरह कम से कम कपड़े पहनकर उन्हीं की तरह ही चलने और बोलने लगीं।
अपने तीज त्यौहारों को तिलांजलि दे दी गई, परंपराओं को धूल में मिला दिया गया, आए दिन विचित्र प्रकार के डे, ईयर सेलिब्रेट किए जाने लगे, इन अवसरों पर घर में रंगीन पार्टियां होने लगीं, पार्टियों में न्यूनतम कपड़े पहनने वाली आधुनिक बहुएं खुलकर नाचती गाती नजर आने लगीं।
अनैतिक व्यापार में लिप्त बेटों के नौकर जेल जाते रहे, परन्तु उनका स्वयं का सामाजिक सम्मान बढ़ता रहा, वे विभिन्न कार्यक्रमों में मुख्य वक्ता बनकर दूसरों को नैतिकता की राह पर चलने का उपदेश देते रहे।
हे भाई, कोने में पड़े हम बूढ़े अपसंस्कृति का तांडव देखा करते थे। पुत्रों और पुत्र वधुओं का ही सहारा था, इसलिए हम चाहकर भी विरोध नहीं करते थे। कुछ दिनों बाद मखमल के गद्दे में लगे हम टाट के पैबंद भी उन्हें खटकने लगे।
हमारे भजन पूजन से दोपहर तक सोने वाली गृह लक्ष्मियों की नींद खुल जाती थी। कानों में भगवन्नाम का अमृत पड़ने पर वे डिस्टर्ब हो जाती थीं, इसलिए वे अपने पति देवताओं को भड़काकर हमें वृद्धाश्रम में फेंकने की योजना बनाने लगीं। काले धन से कलुषित कुल दीपक भी इसके लिए तैयार हो गए।
इस साजिश की जानकारी मिलने पर मुझे पहली बार उन नटखट नागर पर क्रोध आया, जिनकी जीवन भर मैंने पूजा की, मन में विचार आया कि अब कभी उनकी मूर्ति की ओर आंख उठाकर नहीं देखुंगी, परन्तु ये भोलेनाथ के वाहन अति प्रसन्न हो गए।
ये कहने लगे देखो, जीवन भर की तपस्या का फल मिलने का समय आ गया है, कृपालु मायापति अब मायाजाल तोड़ रहे हैं, ताकि हम मुक्त हो सकें, वे यही करते हैं, जिसे संसार के जाल में फंसाना रहता है, उसे देते जाते है….और जिसे बाहर निकालना रहता है, उससे धीरे धीरे सब वापस लेते जाते हैं, ताकि भक्त मोह का त्याग कर शांति से उनके पास पहुंच सके…
गाय ने कहा- हे सिंह, मोक्ष का साधन माने जाने वाले कुल दीपक कुसंस्कारी हो गए, बूढ़े माता पिता का त्याग करने की तैयारी करने लगे, परन्तु देखो, जिस कन्या को हमने घर से विदा कर दिया था, उसने अब भी हमारा त्याग नहीं किया है। हमारी दुर्दशा की सूचना पुत्री को मिल गई है, वह हमें अपने घर ले जाने के लिए आ रही है।
भाई, मेरे रोने का कारण यह है कि मैंने जीवन भर भगवान श्रीहरि की पूजा की, परन्तु उनका मायाजाल नहीं तोड़ सकी, क्या करूं, मां हूं, इसलिए यह सब होने के बाद भी पुत्रों के भविष्य की चिंता में आंसू बहा रही हूं……
हमारी तो बेटी है, जो हम निराश्रितों को आश्रय देने के लिए आ रही है, परन्तु हमारे बेटों की एक भी बेटी नहीं है….चिंता यही है कि.भविष्य में जब उनके बेटे उन्हें घर से बाहर निकालेंगे, तो मोह के टनो बोझ तले दबे वे हमारे पुत्र जाएंगे कहां….
उदार हृदया माता की व्यथा सुनकर सिंह की आखों से भी आंसू बहने लगे, वह दुखी हृदय से आगे बढ़ गया….
( क्रमशः )
( आगे है कथावाचक तोतों से भेंट, अति आधुनिक कवि व लेखक चीलों व बगुलों का दर्शन )