बिलासपुर। हमारे सुनहरे भविष्य के लिए राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास की जानकारी होना बेहद आवश्यक है। यह बात गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर अंजिला गुप्ता ने विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय कौशल विकास कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर कही।
गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रबंध अध्ययन विभाग के सभागार में शुक्रवार को प्रात कौशल विकास प्रकोष्ठ एवं इतिहास विभाग के संयुक्त तत्वाधान में “छत्तीसगढ़ में पर्यटन एवं रोजगार के अवसर” विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला के शुभारंभ अवसर पर मुख्य अतिथि प्रोफेसर आर.एन. मिश्र ने कहा कि छत्तसीगढ़ की धरती ऋषि और कृषि से जुड़ी हुई है जिसमें सामाजिक समरसता, गौरवशाली इतिहास एवं संस्कृति का अनुसरण होता है। उन्होंने कहा कि इतिहास के संदर्भ में भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि ‘इतिहास राष्ट्र की स्मरण शक्ति होता है’। प्रोफेसर मिश्र ने कहा कि किसी भी संस्कृति या अंचल की जानकारी के लिए उसके इतिहास की जानकारी परम आवश्यक है।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर आलोक श्रोत्रिय, विभागाध्यक्ष, प्राचीन इतिहास विभाग, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक (म.प्र.) ने कहा कि यह कार्यशाला इतिहास एवं कौशल विकास के बीच सेतु का कार्य कर रही है। उन्होंने अतुल्य भारत के गौरवशाली इतिहास को जानने एवं समझने पर विशेष बल देते हुए इसके जरिये रोजगोन्मुखी आयामों को सृजित किये जाने पर प्रकाश डाला।
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर अंजिला गुप्ता ने कहा कि इतिहास एवं पर्यटन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इतिहास के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन के गौरव को पहचान पाता है। उन्होंने कहा कि पर्यटन के क्षेत्र में असीम संभावनाएं मौजूद हैं जिसका लाभ इतिहास की जानकारी के साथ ज्यादा लिया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ के इतिहास एवं पर्यटक स्थलों को सरकार की विभिन्न योजनाओँ के अंतर्गत आर्थिक रूप से सक्षम बनाने पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि पर्यटन के क्षेत्र में रोजगार के कई अवसर मौजूद हैं एवं इसके माध्यम से विभिन्न दर्शनीय स्थलों का आर्थिक एवं सामाजिक विकास किया जा सकता है। प्रो. गुप्ता ने कहा कि पर्यटन के माध्यम से स्थानीय स्तर पर बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर सृजित किये जा सकते हैं।
इससे पूर्व समाजिक विज्ञान अध्ययनशाला की अधिष्ठाता प्रोफेसर अनुपमा सक्सेना ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए दो दिवसीय कार्यशाला की सफलता हेतु शुभकामनाएं दीं। विश्वविद्यालय कौशल विकास प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी डॉ. राजेश भूषण ने विश्वविद्यालय में कौशल विकास की विभिन्न गतिविधियों एवं कार्यक्रमों के विषय में विस्तार से जानकारी दी। इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष एवं कार्यशाला की संयोजक डॉ. सीमा पांडे ने कार्यशाला की विषयवस्तु एवं तकनीकी सत्रों के विषय के जानकारी प्रदान की।
कार्यशाला के प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ. रमेंद्र नाथ मिश्र ने प्रागैतिहासिक काल से लेकर पर्यटन के महत्व को उजागर करते हुए सारगर्भित वक्तव्य दिये। इस क्रम में उन्होंने मदकूदीप, तालागांव, रामगढ़ की नाट्यशाला, काबरा पहाड़ के भित्ती चित्र एवं रतनपुर के गौरवशाली इतिहास के संदर्भ में जानकारी दी।
दूसरे सत्र में प्रोफेसर आलोक श्रोत्रिय ने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को विश्व एवं भारत के पर्यटन मानचित्र पर उजागर करने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया। उन्होंने इतिहास की प्रामाणिक जानकारी, संस्कृति की समझ एवं अन्य भाषाओं के ज्ञान को विकसित कर छत्तीसगढ़ में पर्यटन रोजगार के अवसरों को सृजित करने का संदेश दिया।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन इतिहास विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं कार्यशाला के समन्वयक डॉ. घनश्याम दुबे ने किया। कार्यक्रम का संचालन इतिहास विभाग के सहायक प्राध्यापक (तदर्थ) श्री विपिन तिर्की ने किया। इस अवसर पर विभिन्न अध्ययनशालाओं के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्षगण, शिक्षकगण, अधिकारी एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।