पढ़िए..लॉकडाउन मे कैसे दिन बिता रहे साहित्यकार द्वारिका अग्रवाल… कहा.. घर पर रहना बड़ी जरूरत..पत्नी से बढ़ा प्यार

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—- लाकडाउन के बाद चैन से घर में ही हूं। पिछले एक साल से उपन्यास अधूरा था..उसे पूरा कर रहा हूं। हां…मित्रों की याद आती है… तो फोन से बात कर लेता हूं। घर में थोड़ा बहुत हाथ भी बटा देता हूं। लाकडाउन के बाद सबसे बड़ा फायदा…पत्नी से प्यार और नजदीकियां…दोनो ही बढ़ी हैं। लाकडाउन का कदम बहुत पहले ही उठा लेना चाहिए था। देरी हो गयी..फिर भी देर आए दुरूस्त आए..क्योंकि कोरोना से मुक्ति के लिए इसके अलावा और कोई दूसरा उपाय भी नहीं है। लेकिन जनता कुछ समझने को तैयार नही है। ऐसे में महसूस  करना वाजिब है कि .. लाकडाउन का दौर लम्बे समय तक चलेगा।सीजीवाडॉटकॉम के व्हाट्सएप NEWS ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए

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                 साहित्याकार और व्यवसायी द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने मजाकिया अंदाज में कहा कि लाकडाउन ने घर बैठने का मौका दिया है। इसका भरपूर फायदा उठा रहा हूं। पत्नी से प्यार और नजदीकियां दोनों ही बढ़ी है। मेरा अधूरा उपन्यास भी पूरा होने वाला है।  पिछले तीन दिन से घर के बाहर नहीं झांका है। झांकने भी नहीं है। इसलिए मेरे पास समय ही समय है। थोड़ा बहुत घर के काम में भी हाथ बंचा देता हूं। ऐसा पहले भी करता था…लेकिन सारा ध्यान उपन्यास पूरी करने में लगाया हूं।

                     द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने बताया कि सच है कि व्यवसायी होने के कारण बाजार में उठना बैठना रहा। लेकिन इस कमी को इस दौरान दोस्त मित्रों से फोन पर बातचीत के बाद पूरा कर लेता हूं। लाकडाउन के दौरान हमारी दिनचर्चा कुछ इसी तरह ही चल रही है।

                                अग्रवाल ने बताया कि लाकडाउन का कदम बहुत पहले उठाना चाहिए था। जब राहुल गांधी ने कोरोना को लेकर गंभीरता जाहिर की थी। यदि ऐसा किया जाता तो आम जनता को इतना कष्ठ नहीं झेलना पड़ता। लाकडाउन से बाजार को बहुत नुकसान हुआ है। देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। हम बहुत पीछे चले गए हैं। लेकिन विश्व भी इससे अछूता नहीं है।

              द्वारिका अग्रवाल ने बताया कि कोरोना से निजात पाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बहुत जरूरी है। सरकार लगातार प्रयास भी कर रही है। लेकिन हाय रे देश की बुद्धिमान जनता..अपनी आदतों से बाज नहीं आ रही है। यदि रविवार की तरह सात दिन भी लाकडाउन हो जाए तो कोरोना की हार निश्चित है। फिलहाल ऐसी परिस्थिति में दावा कर सकता हूं…लाकडाउन की तारीख बढ़ेंगी। इसके बाद भी कोरोना जीवित रहेगा। यदि जनता ने ईमानदारी से लाकडाउन के आदेश का पालन नहीं किया तो।

                             द्वारिका ने कहा कि कोरोना प्रकोप के बाद आज जैसे हालात हैं..ऐसे ही कुछ हालात इंदिरा गांधी की हत्या के बाद थी। आठ दिन कर्फ्यू लगा था। बाजार बैठ गया था। धीरे धीरे खड़ा हूआ। अभी हमने देखा है…कि बाजार की हालत बहुत खराब नाजुक थी। कोरोना ने झकझोर कर रख दिया है। इससे उबरने में समय लगेगा।

                    बातचीत के अन्त में साहित्यकार द्वारिका अग्रवाल ने कहा  कि जान है तो जहान है। जब मालूम है कि कोरोना कोरोना का एक मात्र उपचार सोशल डिस्टेंसिंह है ..तो बनाकर रखना चाहिए । आखिर प्रुलिस और प्रशासन भी तो यही चाहती है। सब लोगों को 14 अप्रैल तक घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। क्योंकि जब आज रहेंगे..तभी तो कल देखेंगेै।   

         

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