पर्यावरण दिवस मनाने का काँग्रेसी अँदाज…

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fixed_sunday“हम लोग 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाते हैं…। इस दिन नए पौधे लगाते हैं…। पेड़-पौधों की हिफाजत करने की कसमें खाते हैं…..।हमारे लिए यह दिन महत्वपूर्ण होता है…। इस बार भी हम यही कर रहे हैंं…।हम सब चाहते हैं कि हमारे आस-पास सब साफ-सुथरा रहे…। हमारे आस-पास का पर्यावरण हमारे अनुकूल रहे…।हम जिस पेड़ या पौधे को अपना समझते हैं, वह फले-फूले…। और हमारी आने वाली पीढी को भी फल-फूल, छाया प्रदान करे…।पर्यावरण पृथ्वी का भी होता है……। पर्यावरण देश का भी होता है…..। पर्यावरण प्रदेश का भी होता है……..। पर्यावरण समाज का भी होता है……।पर्यावरण परिवार का भी होता है…..।पर्यावरण घर का भी होता है…..।ऐसे ही पर्यावरण किसी पार्टी का भी होता है……। जिसे शुद्ध और साफ-सुथरा रखने का संदेश पर्यावरण दिवस देता है…..।” किसी स्कूली बच्चे के हिंदी निबंध के इस हिस्से को अगर छत्तीसगढ़ काँग्रेस की मौजूदा स्थिति से “मेच” करने की कोशिश करें,तो लगता है कि बहुत सी बातें मिलती-जुलती नजर आ जाएंगी…।अपने अंदर के पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने की कशम-कश कांग्रेस में भी है…।अपने अनुकूल पार्टी का पर्यावरण बनाने की जुगत में लोग तब से ही लगे हैं, जब से यह राज्य बना है। किसी गाँव में तालाब के किनारे खड़े बूढ़े बरगद की तरह खड़ी काँग्रेस पार्टी के छाँव तले सभी अपने-अपने हिस्से का शुकून खोज रहे हैं। यह अलग बात है कि शुकून पाने की जुगत में सभी का शुकून छिन गया है।

                                      env_congressअपने-अपने लिए छाँव तलाशते सभी इतने मशगूल हो गए कि उन्हे यह भी पता नहीं लग पाया कि कब एक-दूसरे के साथ छीना-झपटी में उतर आए…। हर एक साख और पत्ती-पत्ती पर अपना -अपना हक जताते हुए एक ऐसे दौर में पहुँच गए कि पेड़ के खड़े रहने की भी चिंता नहीं रही। यह भी एक इत्तफाक है कि देश की सबसे पुरानी इस पार्टी के लोगों के लिए पर्यावरण दिवस यानी 5जून की बजाय- उसके ठीक दूसरे दिन यानी 6 जून की तारीख अहम् हो गई है। जिस दिन अपनी छाँव के लिए एक नया पौधा रोपने की तैयारी है। इस तैयारी पर सभी की नजरे लगी हुई हैं। पौधा रोपा जाएगा या इसके लिए गड्ढा खोदकर सिर्फ माहौल बनाया जाएगा…यह पर्यावरण दिवस के दूसरे दिन ही पता लग सकेगा।

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                                      हम लोग बरसों से देखते आ रहे हैं कि पर्यावरण को बेहतर रखने की फिकर में लगे लोग दो बातों पर खास तौर से जोर देते हैं। एक तो मौजूदा पेड़-पौधे बरकरार रहें और दूसरा यह कि नए पौधे भी लगते रहें…। इसी के साथ कचरे की सफाई, धूल-धुएं को रोकते रहने की बातें भी होती रहती है। छत्तीसगढ़ में देश की पुरानी पार्टी के लोग भी अपने घर का पर्य़ावरण दुरुस्त रखने के मामले में इन नसीहतों का पूरा पालन कर रहे हैं। देखिए ना,पार्टी का एक तबका “कचरा” साफ करने की कोशिश में लगा है…। तो दूसरा नया पौधा रोपने की तैयारी में है…। कचरा कहां पर यह बताने वाले ऊपर बैठे हैं और नीचे वाले एर-दूसरे को कचरा समझ रहे हैं…। इसमें से कौन किसे साफ करेगा यह बाद में ही पता चलेगा। वैसे भी तो पर्वयारण दिवस के दिन तो सिर्फ जलसे होते हैं…भाषण होते हैं…बयानबाजी होती है…और एक- दूसरे को पर्यावरण सुधारने की नसीहतें दी जाती हैं…।फिर क्या होता है हम सभी को पता है।

                                   जो पार्टी अपना पर्यावरण सुधारने के नाम पर आपस में सर-फुटौव्वल कर रही है। वह कभी इस इलाके में राज करती थी। उसका पर्यावरण यहा के अनुसूचित जाति.-जनजाति – पिछड़े-अगड़े सभी को पसंद था। अविभाजित मध्यप्रदेश में सब दूर इस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा हो। मगर छत्तीसगढ़ नें हमेशा इसका साथ दिया। फिर अलग राज्य बनने के बाद ऐसा क्या हो गया कि लोगों ने तीन चुनावों में लगातार इसे नकार दिया ? और एक-दूसरे को सुधारने के नाम पर ऐसे भिड़े कि उन्हे यही  समझ नहीं आ रहा हा कि आखिर सुधारना क्या है…? पर्यावरण सुधारने के नाम पर अच्छे-भले दरख्त को ठूँठ में बदलने का अजूबा खेल यहीं देखा जा सकता है। सियासत की आबो-हवा, जोड़-तोड़ से जुड़ती नहीं । अलबत्ता औऱ टूट जाती है। यह भी अजब इत्तफाक है कि पार्टी के  “एनवायरमेंटल डे”  पर मरवाही के जंगल का गाँव फोकस में है। पौधा लगाने वाले भी खुश हैं और नया पौधा लगते हुए देख रहे लोग भी उतने ही खुश हैं। मजेदार बात यह है कि भविष्य के त्रिकोणीय मुकाबले के तीसरे कोण पर बैठकर सूबे में सरकार चला रहे लोग भी पर्यावरण सुधार का यह तमाशा देखकर उतने ही खुश हैं। इस अँदाज में एनवायरमेंटल डे “सेलिब्रेट” करने के बाद पुराना पेड़ बच पाएगा..?.नये पौधे का रोपण हो पाएगा..?.यह पौधा बड़ा पेड़ बन पाएगा…? किसे इसकी छाँव मिलेगी…? किसे फल खाने को मिलेगा…? इन सवालों के साथ आने वाले वक्त का इँतजार करना हम सब दर्शकों की नियति है। ठीक उसी तरह जैसे हर बार पर्यावरण दिवस पर पेड़-पौधों को बचाने और नए-नए पौधे रोपने की बड़ी-बड़ी बातों के साथ हम पर्यावरण सुधरने का इंतजार करते रहते हैं।

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