प्रस्ताव पलट गया

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SUNDAY_FILE_SDएसपी के लिए पीएचक्यू और गृह विभाग के प्रपोजल कुछ और थे। बिलासपुर में अमरेश मिश्रा, जांजगीर मयंक श्रीवास्तव और दुर्ग अजय यादव। लेकिन, सीएम हाउस में प्रस्ताव पलट गया। सरकार ने अमरेश मिश्रा को दुर्ग, मयंक श्रीवास्तव को बिलासपुर और अजय यादव को जांजगीर का कप्तान बना दिया। बताते हैं, सरकार को प्रपोजल जमा नहीं। खासकर अमरेश को लेकर। सीएम के रणनीतिकारों का मानना था कि अमरेश का जब ट्रांसफर हो ही रहा है है तो फिर सेम रेंज में क्यों। और, उन्हें दुर्ग शिफ्थ कर दिया गया। और, दुर्ग वाले मयंक को बिलासपुर। इस चक्कर में अजय यादव का मामला जरा गड़बड़ा गया। बिलासपुर, बस्तर जैसे बड़े जिले में एसपी रह चुके अजय को जांजगीर से संतोष करना पड़ा। हालांकि, जांजगीर में ला एंड आर्डर का प्राब्लम काफी है। मगर ये अजय के मन में यह कसक तो रहेगी ही कि सीनियर एसपी और जांजगीर में। वे 2004 बैच के आईपीएस हैं। उनसे पहले जांजगीर एसपी प्रशांत अग्रवाल 2008 बैच के थे। याने चार साल जूनियर। बिलासपुर एसपी मयंक भी 2006 बैच के हैं। कहीं, ज्यादा जैक अजय के लिए नुकसान तो नहीं हो गया।

2003 बैच क्लोज

आईएएस, आईपीएस दोनों में सरकार 2003 बैच को कलेक्टर, एसपी के लिए क्लोज करने जा रही है। इस बैच के आखिरी आईपीएस पी सुंदरराज राजनांदगांव के एसपी थे। शुक्रवार को हुए फेरबदल में उन्हें हटाया गया है। आईएएस में रीतू सेन लास्ट बैट्समैन हैं। मगर लगता है, वो भी अब चंद दिनों की ही मेहमान हैं। किसी भी वक्त उनकी रायपुर वापसी हो सकती है।

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कलेक्टरों से खुश

पता चला है, लोक सुराज में अधिकांश कलेक्टरों के पारफारमेंस से चीफ मिनिस्टर खुश हैं। वे चाहते हैं कि कलेक्टरों के पास जो वर्क है, उसे पूरा करने के लिए उन्हें मौका देना चाहिए। सो, कलेक्टरों की दूसरी बहुप्रतीक्षित लिस्ट बहुत छोटी होगी। दो-से-तीन नाम हो गए, तो बहुत है। वरना, कलेक्टरों की बड़ी सूची अब बरसात के बाद ही मानकर चलिये।

महापौर नम्बर वन

कांग्रेस के संगठन खेमे का सरकार से भले ही छत्तीस के संबंध हों मगर उसके एक महापौर के तो मत पूछिए। पांचों उंगली….। उनके मुताबिक अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग हो रही है। हो सकता है, आप इस पर विश्वास ना करें, लेकिन यह सच है कि महापौर के मोबाइल पर तीन दिन पहले मैसेज आ गया था कि उनके अफसर को 26 मई को चेंज कर दिया जाएगा। मेयर ने इसे खुद ही सबको दिखाया। और, वैसा ही हुआ। सत्ताधारी पार्टी के महापौर तो सपना भी नहीं देख सकते कि वे कमिश्नर बदलवा सकते हैं।

शेरों के लिए शेर

भिलाई इलाके में कई शेर हैं। मैत्री बाग जू में चार पैर वाले। और, खुले में घूमने वाले दो पैर वाले भी। दो पैर वाले ज्यादा डेंजरस हैं। चार पैर वाले बेचारे दहाड़कर अपने पिंजरे में शांत हो जाते हैं। मगर दो पैर वाले कुछ ज्यादा ही तंगा रहे हैं। जब देखो तो दिल्ली। नजर सिर्फ तख्त पर। कब पलट दें! वैसे भी, भिलाई में सरकार की कम शेरों की ज्यादा चलती है। मगर सरकार ने अबकी सोच-समझ कर वहां एक सवा शेर भेज दिया है। उन्नत नस्ल का। इस नस्ल के दो-एक शेर ही होंगे छत्तीसगढ़ में। उसे कोरबा से शिफ्थ किया गया है। है ठेठ बिहारी। अपनी भी नहीं सुनता। अपराधी तो कांपते ही हैं, गंगाजल-2 टाईप के एसबी सिंह जैसे पुलिस वाले भी पानी मांगते हैं। अब, देखना दिलचस्प होगा, सवा शेर, शेरों को कितना काबू में रख पाता है।

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जूते की धमक कहां गई?

पिछले एसपी कांफ्रेंस में सीएम को कहना पड़ा था कि एसपी तो ऐसे होने चाहिए, जिसके जूते की धमक से अपराधियों के रोंगटे खड़े हो जाए…..मैं मान ही नहीं सकता कि एसपी की सहमति के बिना जिले में जुआ, सट्टा चल जाए। रमन सिंह जैसे सीएम अगर ऐसी कड़वीं बातें कह रहे हों तो मामला जरा गंभीर हो जाता है। मगर वस्तुस्थिति यही है कि सूबे की पोलिसिंग का बुरा हाल है। एसपी और थानेदार से अपराधियों के कांपने की बात तो दूर अपराधियों से एसपी के गठजोड़ मजबूत होते जा रहे हैं। दरअसल, डाक्टर साब आप तो 60-70 हजार पगार देकर निश्चिंत हो जाते हैं, अधिकांश एसपी महीने में 50 लाख अंदर कर रहे हैं। अब, आप ही बताइये, अपराधियों से गठजोड़ के बिना ये संभव है क्या। ये भी जान लीजिए, 50 लाख वाली बात हम नहीं कर रहे हैं। बल्कि, पुलिस के एक बड़े अफसर ने ही बताया। तरकश के एक कालम में एक सवाल था, एक पुलिस वाला 50 लाख रुपए हर महीने हवाला से यूपी भेजता है। बड़े साब ने इसका उत्तर पूछा। मैंने कहा, आपके महकमे में एक-दो पोस्टिंग ही ऐसी है, जहां यह संभव है। उन्होंने कहा, गलत बोल रहे हो। हमारे कई एसपी भी इससे अधिक भेज रहे हैं। ये तो हाल है पुलिस का। डाक्टर साब अब तो आप समझ गए होंगे कि अपने एसपी के जूते की धमक क्यों नहीं होती। खैर, उम्मीद करते हैं, एक साथ 10 कप्तानों की आपने अलटी-पलटी की है, उससे स्थिति कुछ सुधरे। एसपी में भी अपने कलेक्टरों की तरह कुछ नया करने, नाम कमाने की स्पर्धा विकसित हो।

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हनीमून डेस्टिनेशन….

सरकारी निवासों में देश में सिर्फ तीन जगह ही स्वीमिंग पुल है। राष्ट्रपति भवन, पीएम हाउस और छत्तीसगढ़ का डीएफओ बंगला। डीएफओ ने छत्तीसगढ़ का इतना नाम उंचा कर दिया। इसके बावजूद उस पर एक्शन के बजाए नोटिस-नोटिस का खेल क्यों खेला जा रहा है, आपने सोचा है। वह इसलिए कि कार्रवाई हुई तो उपर तक फंस जाएंगे। क्योंकि, स्वीमिंग पुल में कलेक्टर से लेकर एसपी और उनकी घरवालियां भी रोज डूबकी लगाती थीं। सीएम रायपुर में पानी के एक-एक बूंद बचाने के लिए अफसरों के साथ मंथन कर रहे हैं और डीएफओ हाउस में रोज आला अफसरों के लिए स्वीमिंग पुल का पानी बदला जाता था। बस्तर को वैसे भी नौकरशाहों के लिए हनीमून डेस्टीनेशन माना जाता है। काम कुछ रहता नहीं। भारत सरकार के फंड को हवाला के जरिये ठिकाने लगाते जाओ और पारिवारिक लाइफ का भरपूर आनंद लो। बहरहाल, उपर के स्मार्ट अफसरों ने कम से कम इतना तो लिहाज किया कि अपने बंगले में स्वीमिंग पुल बनाने के बजाए डीएफओ बंगले में बनवाया। इसलिए, नरमी दिखाकर सरकार ठीक भी कर रही है। हनीमून में इतना तो बनता ही है।

चालान की इजाजत नहीं

और सुनिये। एसआईबी को खुफिया जानकारी मिली थी कि स्वीमिंग पुल वाले डीएफओ के नक्सलियों से सांठगांठ हैं। एसआईबी के इनपुट पर जिला पुलिस ने उनके घर पर 2013 में छापा मारा था। तब नक्सलियों से संबंधित कोई सामान तो नहीं मिले थे मगर काला धन के कागजात जरूर मिले। इसके बाद एसीबी ने छापा मारा। एसीबी ने 7 अप्रैल 2015 को जीएडी से डीएफओ के खिलाफ चलान पेश करने की अनुमति मांगी। लेकिन, मंत्रालय के खटराल अफसरों ने फाइल ही दबा दी। आप अंदाज लगा सकते हैं, ऐसे अफसरों के हाथ कितने लंबे हैं।

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अंत में दो सवाल आपसे

1. एक महिला कलेक्टर और वहां के सहायक वन संरक्षक के बीच आजकल किन बातों की चर्चा हो रही है?
2. क्या डीएस मिश्रा और ठाकुर राम सिंह की ताजपोशी का आर्डर एक साथ ही निकलेगा?