बाघों को मौत के मुँह में ढकेलता आहार

Shri Mi

15300751_1203594263042398_479401583_n15293279_1203594259709065_1306724863_o(सत्यप्रकाश पाण्डेय)वन्य जीवन के साथ पशुवत आचरण की ये तस्वीरें ना सिर्फ हमारी मानसिक संवेदना से परिचय करवाती है बल्कि हम वन्य प्राणियों के प्रति कितने संवेदनशील है ये भी बताती हैं । खासकर बाघों को लेकर, तब जब बाघ संकट के दौर से गुजर रहें हैं । भारत के अलग अलग वन क्षेत्रों के अलावा जू में बाघों की होती मौत यक़ीनन लापरवाहियों का सच हैं जो सरकारी लीपापोती में कहीं नज़र नही आती । हम छत्तीसगढ़ राज्य में बाघों की संख्या को लेकर पहले ही सुर्ख़ियों में रहें है, अचानकमार टाईगर रिजर्व में आज तक बाघों की असल संख्या सरकारी फाइलों से बाहर नहीं निकली । राज्य के अलग अलग जू में वन्य जीव खासकर बाघ संरक्षण के दावे करने वाले अमले ने बाघ को लेकर संवेदना नही दिखाई । कई प्रमाण और घटनाक्रम हैं जो जू प्रबन्धन को सवालों के कटघरे में खड़ा करते हैं।

                                                                15281972_1203594129709078_1147210212_nइस पोस्ट में दिखाई पड़ती तस्वीर राज्य के भिलाई स्थित मैत्री उद्यान की है जो जानवरों के प्रति मित्रवत नही नज़र आता । तमाम अव्यवस्थाओं के बीच से निकलकर सामने आई इस तस्वीर ने ये तो साफ़ कर दिया कि मैत्री बाग़ जू प्रबंधन जानवरों खासकर बाघों की सेहत को लेकर गंभीर नही है । चिड़ियाघरों में दिए जाने वाले आहार और प्रति पशु की खुराक का निर्धारण जू अथॉरिटी आफ इण्डिया करती है । इसके अलावा पशु पक्षियों के आहार की गुणवत्ता का मापदंड भी तय होता है लेकिन तस्वीर को देखकर लगता है जू अथॉरिटी ऑफ़ इण्डिया के सारे मापदंड सिर्फ कागजो में हैं जिन्हें जू प्रबन्धन फाइलों से बाहर नही आने देता ।

                                                                             यहां बाघों को दिए जा रहे आहार पर और उसकी असल सूरत पर मेरी नज़र पड़ी । हजारों कीट पतिंगों और मख्खी-मच्छरों से अटा पड़ा मांस किस जानवर का और कितना पुराना है कुछ कह पाना मुश्किल है जबकि बाघों को बकरे का ताज़ा मांस निर्धारित मात्रा में दिया जाना है लेकिन तस्वीर में दिखाई पड़ता मांस पुराना और बकरे का नही हो सकता । गर्म गोस्त खाने की आनुवांशिक परम्परा का आदि बाघ इस आहार से कितना स्वस्थ्य और फुर्तीला होगा समझा जा सकता है । चिड़ियाघरों में जानवरों की सेहत से खिलवाड़ फिर उनकी मौत पर कारणों की बयानबाजी करने वाले अफसर भूल जाते हैं बाघ धीरे धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुँच रहे हैं ।
प्रदेश में सभी चिड़ियाघरों के लिए सालाना मांस पूर्ति के लिए निविदा बुलाकर ठेका दिया जाता है । ठेके में वन्य जीव को दिए जाने वाले आहार का उल्लेख होता है मगर प्रक्रिया पूरी होने के बाद ठेकेदार मांस के नाम पर क्या कुछ सप्लाई करता है और जू प्रबंधन क्या कुछ खिला रहा है शायद तस्वीर देखने के बाद कहने की जरूरत ना पड़े ।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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