हमार छ्त्तीसगढ़

बिना आँखों के सुई-धागे से खेलती एक जिंदगी….

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पेण्ड्रा ।   हमारेसभी अंगों में ईष्वर की दी हुई दो आँखे वो नेमत है जिसके बगैर हम जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकते, लेकिन जरा सोचिए उन लोगों का जीवन कैसा होता होगा जिनकी आँखे नहीं है। समाज में ऐसे लोग अक्सर लाचारी और दूसरों के सहारे जीते दिखाई देते हैं। लेकिन यह कहानी उस शख्स की हैं । जिन्होंने दृष्टिहीनता को पीछे छोड़ जिंदगी को इस कदर जीया कि मानो आँख ना होना इनकी कभी मजबूरी ही ना रही हो….।

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किसी सामान्य इंसान की तरह सिलाई मशीन को चलाते ठीक करते दिख रहे इस इंसान को देखकर कोई भी यह जानकर हैरान रह जाएंगा कि यह दोनों आंखों से अंधा शख्स है। ये जनाब हैं मुहम्मद इस्माइल। पेंड्रा के एक गरीब परिवार में जन्मे इस्माइल साहब महज दो साल की उम्र में ही चेचक के चपेट में आकर अपनी दोनों आँख गवा बैठे। उनके अंधे होने का मलाल उनके मां बाप को हुआ और वे भी इसी चिंता में काफी कम उम्र में चल बसे। इस्माइल तब अंधे होने के साथ ही साथ अब अकेले भी हो गये थे। लेकिन इस्माइल साहब को लाचारी और दूसरों के रहमोकरम पर जीना कतई मंजूर नहीं था। उन्होने जब होश संभाला तो सिलाई मशीन को ठीक करने का हुनर सीख लिया। उस मशीन को जिसे उन्होंने कभी देखा भी नहीं था आज दूर-दूर से लोग मैकेनिक इस्माइल से मशीन ठीक करवाने आते हैं…..  इस्माईल को शहर की सड़कें अब अजनबी नहीं लगती लिहाजा पूरे शहर में खुद वह अकेले ही आवाजाही कर लिया करते हैं। कभी किसी ने उनकी मदद करने की पहल भी किया तो ठीक वर्ना अपने अंदाज से ईस्माईल अपना सफर तय करते है।

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मजबूर होने के बावजूद इस्माईल स्वाभिमानी भी हैं। उनके पारिवारिक विरासत में सिर्फ कुछ डिसमिल जमीन थी जिसको भी उन्होने मस्जिद के लिये दान में दे दी । सिर्फ इसलिये कि पहले कभी उन्होने प्रशासन से अपने लिये मकान के लिये मदद की गुहार की थी। आज इस्माइल साहब का काम करने का ढंग और मिनटों में मशीन ठीक करने का हुनर  देखकर लोग हैरत में रह जाते हैं। मशीन को बनाने के पूरे काम वे खुद ही अपने हाथ से करते हैं यहां तक कि सुई में धागा तक वो खुद डाला करते हैं….आँखों के बगैर जिंदगी को एक खास तरीके से जीने वाले इस्माइल भाईजान आज सचमुच समाज में एक उदाहरण बन चुके हैं…उन आँख वालों के लिये भी जो आँख रहते भी जिंदगी की राह पर भटके हुये हैं,और उन दृष्टिहीनों के लिये भी जो मजबूरी की जिंदगी जी रहे हैं। ईस्माईल की आंखों में भले ही नूर नहीं हो पर वो किसी कोहिनूर से भी कम नहीं।

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