माइनिंग कम्पनी के एजेंट की भाषा बोल गए जावड़ेकरः कांग्रेस

Chief Editor
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               रायपुर ।  जंगलों पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के बयान की कड़ी निंदा करते हुये प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री शैलेष नितिन त्रिवेदी ने कांग्रेस विधायक दल के नेता टीएस सिंहदेव के बयान का पुरजोर समर्थन  किया है। उन्होने कहा है कि  दुर्भाग्यजनक है कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जिन पर देश के पर्यावरण के देखरेख की जिम्मेदारी है वहीं प्रकाश जावड़ेकर बड़ी माइनिंग कंपनियों के एजेंट की भाषा बोल रहे है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री  का बयान ग्राम सभाओं के अधिकारों पर अतिक्रमण है। पेसा कानून का उल्लंघन है। जब जनवरी 15 में 18 ग्राम पंचायतों की ग्राम सभाओं ने अपना फैसला दे दिया है तो लोकतंत्र में सरकार को उनके अधिकारों का सम्मान करना चाहिये।
                     श्री त्रिवेदी ने आगे कहा कि  केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री  के बयान से छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार के गलत कथन की वास्तविकता उजागर हो गयी है। देश की कोयले की जरूरत का सही आंकलन होना चाहिये। सभी 204 कोल ब्लाक्स की खनन की आवश्यकता है या नहीं यह भी तय होना चाहिये। हसदेव बांगो बांध का कैचमेंट एरिया ही मदनपुर का जंगल है। चंद चहेते उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिये जांजगीर, चांपा और रायगढ़-खरसिया क्षेत्र के किसानों की खेती और सिंचाई को खतरे में डालने की साजिश भाजपा की सरकारें कर रही है। हसदेव बांगो अभ्यारण्य को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने नो गो एरिया कहा था। छत्तीसगढ़ विधानसभा में इस बारे में अशासकीय संकल्प पारित किया।
                 4 प्रतिशत वनक्षेत्र कम करने वाली भाजपा सरकार का ‘‘हरियर छत्तीसगढ़’’ बनाने का दावा खोखला है। जंगलों के विकास के लिये उद्योगों से लिया जाने वाला कैम्पा फंड का पैसा छत्तीसगढ़ में व्याप्त भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। एक ही जमीन में पेड़ लगायें जाते हैं, और फिर से बार बार लगाये जाते है। वृक्ष बढ़ गये और लोग काट ले गये यह कहकर पुनः वृक्षारोपण को उचित ठहराने वाली भाजपा सरकार के बस में नये जंगल लगाना नहीं है। बस्तर में सैकड़ों एकड़ जमीन में यही हुआ। कोरबा में कलेक्टर के निर्देश से वन विभाग द्वारा लगाये गये पौधे उखाड़ लिये गये। बस्तर में डिलमिली में अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डिलमिली वासियों की इच्छा जानने की भूमि अधिग्रहण कानून के अनुसार अनिवार्य जरूरत की परवाह नहीं की।

 

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