आग का फिर तीर आया,
वज्र भी बेपीर आया- कब रुका इसका वचन है!
यह पपीहे की रटन है!
यह न पानी से बुझेगी,
यह न पत्थर से दबेगी,
यह न शोलों से डरेगी, यह वियोगी की लगन है!
यह पपीहे की रटन है!
[हरिवंश राय बच्चन]
कहते हैं पपीहे की स्वाति बूंद की आस,मानसून के आगमन के पहले दूर देश से आने वाला पपीहा मुझे अपने गाँव मंगला में दिखा,बीते साल कुछ देर से दिखा था,,आज एक जोड़ा पपीहा मेरी परिचित ‘रट पी पी पियू पियू लगता’ हुआ तेज उड़ान भरते निकला, कैमरा पास था पर फोटो रिकार्ड करने का मौका न मिला,{फ़ाइल् फोटो बीते साल की लगा रहा हूँ,},सलीम अली की किताब के मुताबिक इसकी एक प्रजाति आफ्रीका से भारत आती है,,इसका अंग्रेजी नाम है,’पाईड कस्टड कूक्कू ,ये कोयल प्रजाति का है,,ये अपने अंडे आम तौर पर बेब्लर पंछी के घोंसले में देता है और वो इसके बच्चे भी पालती है,,!
चौमासा खत्म होने तक बच्चे बड़े होते हैं और वो अपने माता पिता के साथ ऊँची उड़ान भरते हुए वापस चले जाते है। बीते दो दशक से पपीहे के आने के बाद सात से दस दिन में बारिश होती देख रहा हूँ, इस बार मानसून को छह दिन विळंब बताया गया है, अब देखना ये होगा की सुपर कम्प्यूटर कौन है,,ये पंछी ये हमारा बनाया हुआ,,जिसके बूते पर मानसून की भविष्यवाणी की जाती है ।