मुंगेली (आकाश दत्त मिश्रा) ।य़हाँ के तहसील कार्यालय के पंजीयन कार्य को लेकर भयँकर अव्यवस्थाओं का आलम है। ई- स्टाम्प के साथ बायोमेट्रिक तरीके से की जाने वाली रजिस्ट्री ग्रामीण क्षेत्रो से आने वाले लोगो के लिए परेशानियों का सबब बनती जा रही है। हालांकि इस जरिये दस्तावेजो को सुरक्षित और गड़बड़ियों से बचाने में मदद मिल रही है। लेकिन पहले के मुकाबले पंजीयन कार्य की प्रक्रिया लम्बी होने से प्रतिदिन में होने वाली रजिस्ट्री संख्या में भारी कमी आ गयी है। जिस वजह से दस्तावेज लेखकों और पक्षकारों के बीच के तनाव का प्रभाव अब पंजीयक कार्यालय तक पहुचने लगा है।
इस मसले पर अधिकारियो से चर्चा करने पर इस समस्या की मुख्य वजह इंटरनेट और शाम चार बजे के बाद टोकन नम्बर मिलना बंद बताया गया। बीएसएनएल के इंटरनेट की हालत हर बार की तरह खस्ता है। ऐसे में अधिकारी कर्मचारी जैसे तैसे व्यवस्थाओं को स्वयं दुरुस्त करने में लगे रहते है ।सुबह से दूर ग्रामीण अंचलों से पंजीयन कराने आने वाले ग्रामीणों को अक्सर सुबह से शाम तक इंतज़ार करना ही पड़ता है कभी कभी उन्हें एक रात रुककर दूसरे दिन अपना काम कराकर वापस अपने घर जाने मजबूर होना पड़ता है ।
इस मसले पर अधिकारियो से चर्चा करने पर इस समस्या की मुख्य वजह इंटरनेट और शाम चार बजे के बाद टोकन नम्बर मिलना बंद बताया गया। बीएसएनएल के इंटरनेट की हालत हर बार की तरह खस्ता है। ऐसे में अधिकारी कर्मचारी जैसे तैसे व्यवस्थाओं को स्वयं दुरुस्त करने में लगे रहते है ।सुबह से दूर ग्रामीण अंचलों से पंजीयन कराने आने वाले ग्रामीणों को अक्सर सुबह से शाम तक इंतज़ार करना ही पड़ता है कभी कभी उन्हें एक रात रुककर दूसरे दिन अपना काम कराकर वापस अपने घर जाने मजबूर होना पड़ता है ।
पंजीयन कराने ई – स्टाम्प प्राप्त करना भी संजीवनी बूटी लाने जैसा काम साबित हो रहा है। क्योंकि प्रशासन के द्वारा स्टाम्प जारी करने जिस बैंक को जिम्मेदारी दी है वो बैंक तहसील से 2 किलोमीटर की दूरी पर शहर के भीतर बस स्टेंड रोड पर स्थित है। स्टाम्प पाने के लिए लोगो की कतार सड़कों तक लगी रहती है। जिला प्रशासन ने ई स्टाम्प तासील कार्यालय में उपलब्ध कराने की व्यवस्था कराई। लेकिन लिमिट स्टॉक होने के बहाने के साथ कालाबाजारी ने धीरे धीरे यहाँ भी अपने पैर पसारने शुरू कर दिए है। भीड़ और कतार से बचने लोग ज्यादा रकम देकर स्टाम्प खरीदना शुरू कर चुके है। फलस्वरूप अतिरिक्त पैसे नहीं देने वालों के लिए स्टाम्प का स्टॉक खत्म होने की बात कहना आम है। प्रशासन को इस ओर गम्भीरता बरतते हुए ठोस कदम उठाना पड़ेगा। जिससे पंजीयन कराने आने वाले लोगो का समय पैसा और भविष्य सुरक्षित हो सके।
पक्षकारों से वसूला जा रहा अतिरिक्त पंजीयन शुल्क………
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दिनभर की भागदौड़ के बाद आखिरकार जब पक्षकार का पंजीयन कार्य पूरा हो जाता है तो उसे पंजीयन शुल्क पटाने के लिए कहा जाता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की पंजीयन शुल्क ,पंजीयक कार्यालय या उप पंजीयक कार्यालय में नहीं बल्कि दस्तावेज लेखकों को दिया जाता है ।जो की दस्तावेज लेखकों के मेहनताने से अलग पंजीयन शुल्क के साथ ऊपरी रकम होती है। इस दौरान की जाने वाली बंदरबाट का शिकार पक्षकार जानबूझकर होता है ।लेकिन विवशता में वह चुप रह जाता है क्योंकि उसे अपना काम पूरा होना ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है। सिर्फ इतना ही नहीं पक्षकारों को उनके द्वारा अदा किये गए पंजीयन शुल्क की रसीदे भी नहीं दी जाती है।
बड़े पैमाने ओर चल रहे इस गोलमाल के पीछे कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा सिस्टम इसे सरंक्षण प्रदान कर रहा हो ऐसा प्रतीत होता है।