हर आने वाले को जाना होता है।यही दस्तूर है। अभी एक बड़े साहब जाने किस सजा मे दंडाकारणय जा रहे हैं। ये शायद उनको भी पता नही होगा। समझ नहीं आता वो क्या करने आये थे और क्या कर गए। न तो सड़क हटी और न कोई गांव। गाँव क्या एक बन्दा भी न हटा। फिर भी जंगल मे चार पांच बच्चे वाली बाघिन को मिला कर 18 के करीब बाघ हो ये। ये तो कमाल हो हो गया । दरअसल साहेब जी कमाल के हैं । वो ददरिया सुने या गाये, फोटो खिंचाये,कुछ को छोटे मामले मे जेल दाखिल किया पर जब नेताजी का मामला आया हाथ पाँव फूल गए। ये खूबी आज के नौकरशाही की सर्वत्र है।
जाते तो सभी पर ये क्या हुआ फेसबुक में अपना यशोगान और मीडिया और जंगल और जीवों से प्रेम करने वालों की खूब खबर लेने की सूझी । जंगल को उनकी खानदानी जागीर बनने का तंज भी कसा। अरे भाई जंगल तो किसी का नहीं खुद जा रहे हैं तो दूजे का जंगल कैसा ?
वो सब यही रह गए जिन्होंने ने इस आला अफसर की घेराबन्दी की।इनमे उनके साथी और उनसे उल्लू सीधा करने वाले लोग है। वो तारीफ कर रहे और जार -जार आँसू बह रहे है। कुछ दिन बाद वो नए अधिकारी के इर्द गिर्द होगें। यकीन न हो देख लें। अधिकारियो का तबादला होता है। कभी इनका नहीं।
मुझे तरस आ रहा है वो हाथी जो पांव खराब करते बचा। मीडिया ने जेल से खबर निकली और संवेदनशील हाईकोर्ट के कदम से अब वो चंगा हो रहा होगा। उसके साथी कल रतनपुर तक मिलने आये थे। हाथ वाला जानवर, हाथी गणपति का अंशावतार है। उसकी हाय से दंडाकरणय जाना ही पड़ेगा।
जी हजूरी करने वाले कोई नहीं जाते।
सुर,नर, मुनि,सबकी ये रीति।
स्वार्थ लागि करहि,सब प्रीति ।।
जो मीडिया जंगल को अपना समझ अंचल की हरीतिमा का रक्षक है उसको पर भड़ास निकलने का कोई लाभ नहीं हुज़ूर।
जिंदगी भर एक भूल करता रहा ।।
धूल चेहरे पर थी,आइना साफ करता रहा।
कोई किसी का दुश्मन नहीं होता आदमी स्वयं अपना दुश्मन और दोस्त होता है। अपने फैसले का वो जवाबदार होता है। हाथी तो निमित्त मात्र है और मीडिया यथार्थ का चाकर।।
मेरा क्या में तो अमरकंटक की घाटी का बूढ़ा सरई का पेड़ मेड्री सराई हूँ। पूजित न होता, तो जो बचा है, वो भी काट दिया गया होता।