यहां पढ़िए लफ्जों के जादूगर अटल बिहारी वाजपेयी की 3 मशहूर कविताएं

Shri Mi
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Atal Bihari Vajpayee, Poem,नई दिल्ली-लफ्जों के जादूगर का सालों से खामोश रहना कितने दुख की बात है ये कोई अटल बिहारी वाजपेयी के प्रशंसकों से पूछे। राजनेता, कवि और सबसे ज्यादा एक बेहतर इंसान वाजपेयी का फैन हर कोई है चाहे वह बीजेपी का हो या गैरी बीजेपी दल का।जब-जब अटल जी बोलते थे हर कोई बस उन्हें सुनता और सुनता रह जाता था। उनकी जादुई शब्दों से वह ताकत है कि विरोधी को भी कायल कर दे। आइए जानते हैं अलग-अलग मुद्दों पर लिखी उनकी कुछ कविताओं के बारे में जो अक्सर लोग पढ़ते हैं।जिंदगी कभी धूप है तो कभी छांव और इसी धूप-छांव में जिंदगी से कदम मिलाकर चलने की प्रेरणा देती है अटल जी की ये पंक्तियां

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कदम मिलाकर चलना होगा

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

पाकिस्तान और भारत के बीच 1947 में जो लकीर खींची गई उसके बाद दोनों देशों के बीच कभी राजनीतिक संबंध बेहतर नहीं हो पाए। पाकिस्तान की तरफ से लगातार पीठ पीछे वार होता रहा। अटल जी ने कविता ‘पड़ोसी से’ में पाकिस्तान को आइना दिखाने का काम किया।

पाकिस्तान पर लिखी गयी उनकी ये कविता खासा पॉपुलर हैं। इस कविता में अटलजी ने जिस ओजस्वी भाषा में पाकिस्तान की बदनीयती को उभारा है वो काफी जोशीला है।

पड़ोसी से

अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो
आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ।

पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है
तुम्हें मुफ्‍त में मिली न कीमत गई चुकाई
अंगरेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं
मां को खंडित करते तुमको लाज न आई।

जीवन है तो मृत्यू भी है और इस सच को कवि स्वीकार करता है। अटल जी की कविता ‘यक्ष प्रश्न’ में वह जिंदगी के इसी यथार्थ को उजागर करते हैं।

‘यक्ष प्रश्न’ 

जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।

अटल विहारी वाजपेयी का हिन्दी भाषा को लेकर प्यार उनके व्यक्तित्व में दिखता है। साल 1977 में केंद्र में जनता दल की सरकार बनी तो अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। तब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण दिया था। ये पहला मौका था जब संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी नेता ने हिंदी में भाषण दिया था। पहली बार इतने बड़े मंच से विश्व का हिंदी से परिचय हुआ था।

वाजपेयी की पहचान एक प्रख्यात कवि, पत्रकार और लेखक की है। अटल की भाषण शैली इतनी प्रसिद्ध रही है कि उनका आज भी भारतीय राजनीति में डंका बजता है।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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