वेन्टिलेटर पर है शहर की सीवरेज परियोजना

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IMG-20160204-WA0035♦♦ मौत कब की हो चुकी, लेकिन घोषणा करने से डर रहे हैं अधिकारी ♦♦

(शशिकांत कोंहेर)बिलासपुर।शहर कि सीवरेज परियोजना की हालत,जबरिया वेन्टिलेटर पर रखे, उस मरीज की तरह हो गई है, जिसकी सांसे, पता नहीं कब की थम चुकी हैं,लेकिन अस्पताल के डाक्टर उसकी मौत की घोषणा करने से डर रहे हैं, वे लोगों को बेवजह दिलासा दिये जा रहे हैं, मरीज की हालत अभी स्टेबल है और हम अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे है, दरअसल अस्पताल के डाक्टरों को डर है कि मरीज के मरने की घोषणा करते ही लाखों रूपयों का बिल पटा चुके उसके परिजन अस्पताल में कहीं बखेड़ा न खडा कर दें, या फिर उसके इलाज में हुई गड़बडी लो लेकर ही कहीं हंगामा न कर दें, इसलिये वे वेन्टिलेटर पर पड़े मरीज को लेकर झूठी दिलासा दे रहे हैं, उसकी हालत अभी भले ही स्थिर है लेकिन उसमें सुधार की उम्मीद बनी हुई है कुछ ऐसा ही हाल, बिलासपुर के सीवरेज परियोजना का हो चुका है, अरपा पार सरकण्डा से राजकिशोर नगर तक जोन टू में एक साल पहले खुद मुख्यमंत्री डा रमनसिंह ने इस सीवरेज का लोकार्पण कर दिया था। इसके सालभर बाद , आज तक वहां,एक भी घर में न तो सीवरेज का कनेक्शन है, और न कहीं यह चालू है।

                       sivraje_bsp_featureजिन कुछ लोगों ने इसे लगाया भी था,उन्होने भी उसे खुद ही काट दिया है। वहंा इस योजना की ऐसी गईयागति होने की सुध लेने वाला भीकोई नहीं है। वहीं उस्लापुर से लाख खदान फाटक तक बिलासपुर के सभी वार्डों में सीवरेज की हालत अब उस मरीज सी हो गयी है, जिसके विशेषज्ञं डाक्टर मरीज को उसके हाल पर छोड कर भाग चुके हैं। और अब वेन्टिलेटर पर पडे मरीज का इलाज झोला छाप डाक्टरों के भरोसे हैं। ठीक इसी तरह सीवरेज परियोजना की कंसल्टेंट कंपनी भी गायब हो चुकी है,  और अब उसकी जगह भूमिगत नाली योजना के काम को उन नाकारा इंजीनियरों के रहमोकरम पर छोड दिया गया है जिन्हे शहर में खुली नालियों तक के निर्माण की भी तमीज नहीं है। हमें तो लगता है कि प्रदेश के मुखयमंत्री से भी यह बात छुपाकर रखी जा रही है कि उन्होने एक साल पहले अरपापार क्षेत्र के जिस हिस्से की सीवरेज परियोजना का लोकार्पण किया था वो आज भी न केवल मृतप्राय और बंद पडी है, वरन एक तरह से फेल ही हो चुकी है।

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                  sivraje_3सैकडों करोड रूपये बरबाद करने के बाद शहर के अधिकारी अब इस परियोजना को फेल बताने से डर रहे हैं, क्योंकि इस सचाई को उजागर करते ही उन्हे शासन स्तर से लताड़ पड सकती है, वहीं उन्हे इसकी अंधाधुंध खुदाई से आक्रोशित जनता को भी कोप का भाजन बनना पड सकता है। इन्ही सबसे बचने के लिये सीवरेज के मौत की घोषणा को प्रदेश शासन और मुख्यमंत्री से छुपाकर रखा जा रहा है, और शहर में छह आठ जगह गड्ढे खोदकर काम की रस्म अदायगी का नखरा भर किया जा रहा है। वहीं निगम अधिकारियों की एक तिकडम यह है कि शासन से काम पूरा करने के नाम पर बार-बार अतिरिक्त रूप से दो चार सौ करोड रूपये के मांग की जाती रहे।

                इससे एक समय ऐसा आयेगा कि शासन का वित्त विभाग इसके लिये और रकम देने से इं·ार कर देगा ,और तब निगम के अधिकारियों को  सीवरेज का आम अधबीच में ही बंद करने का बहाना मिल जायेगा और वे कह सकेगे कि चूंकि शासन ने अतिरिक्त बजट देने से इंकार कर दिया। इसलिये अब हमें इस योजना पर काम बंद करना पड़ रहा है ।

               निजी अस्पताल और वहां के डाक्टर भी ऐसा ही किया करते हैं, जब किसी मरीज का इलाज उनके बूते से बाहर जाते ही तो वे उसके इलाज डीके इतना लम्बा खर्चा बता दिया करते हैं कि परिजन खुद ही कह उठते हैं कि बस-बस रहने दीजिये,  अब हमें नहीं कराना इलाज, और ठीक इसी तरह सैकडों करोड़ रूपये व दस साल का लम्बा समय खर्च कर चुकी बिलासपुर की सीवरेज परियोजना के लिये प्रदेश शासन व बिलासपुर की जनता भी एक दिन यहीं कहने पर मजबूर हो जायेगी कि बस- बस, अब रहने दीजिये, हमें नहीं बनाना सीवरेज, और तब यह परियोजना भी 1982-83 में शहर की सड़को के नीचे दफन की गई पूरानी सीवरेज परियोजना की तरह ही दफन कर दी जायेगी।

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