शिक्षाकर्मियों के संविलयन में सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति ही बाधक…अपने ही वादे से मुकर रही सरकार

Chief Editor
बिलासपुर ।राज्य में   भाजपा सरकार की कमजोर इच्छा शक्ति के चलते प्रदेश के 1 लाख 80 हजार शिक्षाकर्मीयो का शिक्षा विभाग में संविलियन/शासकीयकरण नही हो पा रहा है  ।  जबकि अन्य प्रदेश चाहे वह राजस्थान हो,दिल्ली हो उत्तर प्रदेश या फिर वर्तमान में मध्यप्रदेश  अपने शिक्षको का शासकीयकरण करके बेहतर जिंदगी दी है  ।  साथ ही वहाँ के शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाये है ।  पर छत्तीसगढ़  के मुख्यमंत्री  डॉ.रमन सिंह की इच्छाशक्ति की कमी ही है कि प्रदेश के शिक्षक पँचायत संवर्ग अभाव की जिंदगी जीने को मजबूर है  और इसी मजबूरी के चलते हम लोग अपना काम बेहतर ढंग से नही कर पा रहे है।शिक्षक पँचायत/ननि एम्पलाईज एसोसिएशन के प्रदेश सचिव शिव सारथी ने ये बातें एक बयान में कहीं  है। उन्होने कहा  कि लगातार 15 वर्षो से भाजपा की  सरकार अपने वादे से मुकरते हुए प्रदेश के शिक्षाकर्मीयो को झूठ ही बोला हैं  । कभी 20-20 प्रतिशत संविलिन के नाम पर तो कभी प्रधान पाठक भर्ती के माध्यम  से शासकीयकरण,तो कभी क्रमोन्नत वेतनमान के लाभ के नाम पर राज्य शासन सिर्फ घोषणा ही करती आई है  ।

             
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इस पर कभी अमल नही किया और तो और नियमित रूप से न तो वेतन दे पाते न पदोन्नति न ही एरियर्स, भत्ता और न वार्षिक इंक्रीमेंट …….। ऐसे में हम लोगो से बेहतर काम की परिकल्पना बेईमानी ही है ।  इसके बावजूद हम लोग पूरे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर ढंग से सम्भाले हुए है ।  यही कारण है कि प्रतिवर्ष सरकारी स्कूल के विद्यार्थी मेरिट सूची में स्थान बना रहे और शिक्षक एवार्ड में ज्यादा से ज्यादा शिक्षाकर्मी ही नवाजे जा रहे।सचिव शिव सारथी का कहना है कि किसी भी देश या प्रदेश के विकास की मूल ढाँचा वहाँ की शिक्षा, स्वाथ्य और कृषि होता है ।  जिस को हमारी सरकारें लगातार जानबूझकर नजरअंदाज किये हुए है  ।

यही कारण है कि प्रदेश में किसानों के साथ शिक्षा और शिक्षको की हालत बद से बदतर है ।  जबकि अच्छी शिक्षा व्यवस्था और खुशहाल शिक्षक पूरी व्यवस्था को बेहतर बनाते है ।  जैसे नागरिकों में नैतिक मूल्य,बेहतर सामाजिक पर्यावरण की समझ, संशाधनों का बेहतर उपयोग,स्वच्छता के प्रति जागरूकता, देशप्रेम ये सभी अच्छी शिक्षा के ही माध्यम से विकसित किया जाता है  ।  जिसे शासन और प्रशासन जानबूझकर नजरअंदाज कर रही है  ।  यही कारण है कि शिक्षको की खस्ताहाल परिस्थिति के साथ प्रदेश की शिक्षा भी पिछड़ गई। जिसकी सम्पूर्ण जवाबदेही सरकार की बनती है  ….। कारण भूखे शिक्षक से गुणवत्तायुक्त शिक्षा की उम्मीद करना बेईमानी ही होगा।
यकीन न हो तो दिल्ली की आम आदमी की सरकार को देखे वहाँ के मुख्यमंत्री अरविंद  केजरीवाल के द्वारा शिक्षको को दिए जाने वाले सही सम्मान और वेतन भत्तों के कारण वहां की  शासकीय स्कूली शिक्षा प्राइवेट से भी बेहतर हो गई है  । जिसे छत्तीसगढ़  की सरकार को भी समझना होगा ।  वरना हम शिक्षको के साथ राज्य की जनता के साथ भी अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के वादे को लेकर बेईमान साबित होगा।शिव सारथी ने आगे कहा कि  ऐसा नही है कि शिक्षाकर्मी अपने शासकीयकरण या संविलिन के लिए आंदोलन नही किये । बल्कि हमारा स्कूल के बाद का सारा समय अपनी दुविधा प्राप्ति की लड़ाई में ही व्यतीत होता है ।  हमारे कई बड़े और महत्वपूर्ण आंदोलन को सरकार दामदण्ड भेद की नीति अपनाकर दमन कर दिया   । फिर भी शासरीय नौकरों की सबसे बड़ी आबादी आज भी आंदोलन के लिए सड़क पर खड़ी हुई है ।  कारण अपने हक और अधिकार की प्राप्ति और रक्षा है,जिसे शायद सत्ता का परिवर्तन ही हल कर सकता है  ।जिसके लिए 1 लाख 80 हजार शिक्षाकर्मी और उनके रिश्तेनाते कृतसंकल्प होते दिख रहे है।
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