

मातृ और शिशु दर मृत्यु पर नकेल कसने अनेक योजनाएं चल रही हैं। लोगो को जागरूक करने विज्ञापनों का सहारा लिया जा रहा है। मोहल्लों में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका और मितानिनों की फौज तैनात है। गर्भवती महिलाओं को संस्थागत प्रसव के लिए जागरूक करने, मंथली जांच और प्रसव पूर्व में होने वाली परेशानियो की मानिटरिंग की जिम्मेदारी मितानिनों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को है। सरकार से मितानिनो और आंगनबाड़ी सहायिकाओं और कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन राशि मिलती है। बावजूद इसके योजनाएं चिंगराजपारा में योजना फ्लाप साबित हुई है। सतरूपा पटेल ने एक दिन पहले शाम चार बजे नवजात को जन्म दिया। पानी गिरने के कारण सतरूपा को चिकित्सालय नही पहुंचाया जा सका। अपोलो हॉस्पिटल से कुछ दूर ही पर 24*7 की व्यवस्था है। सूचना दिये जाने के बाद मितानिन और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने सतरूपा की गुहार को नजरअंदाज किया। नतीजन आस पास की महिलाओ ने सतरूपा का घर में ही प्रसव कराया। स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के बाद अधिक रक्तस्राव के चलते सतरूपा ने दम तोड़ दिया।
सूचना मिलने के बाद मितानिन ने बताया कि सतरूपा की मौत हो चुकी है। इसे कहीं ले जाने का कोई अर्थ भी नहीं है। जल्द से जल्द सतरूपा का अंतिम संस्कार कर दो । दो टूक जवाब सुनने के बाद सास ने पडोसियो के साथ सतरूपा को उपचार के लिए सिम्स में भर्ती कराया। परीक्षण के बाद डॉक्टरो ने सतरूपा को मृत घोषित कर दिया।
सास ने बताया कि यदि महतारी एक्सप्रेस या संजीवनी को मितानिन ने जानकारी दी होती तो शायद सतरूपा हमारे बीच होती। सात से बताया कि सतरूपा के पति की मौत की तीन महीने पहले ही हुई है। बहू को पहले से ही तीन साल का बच्चा है। दूसरे बच्चे को जन्म देने बाद साथ छोड़ कर चली गयी। सतरूपा की सास ने बताया कि उसकी उम्र बहुत हो चुकी है। बेटे और बहू ने साथ छोड़ दिया। अब दोनों बच्चों को किस तरह पालूंगी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
शहरी क्षेत्र चिंगराजपारा में सरकारी योजनाओ का जब यह हाल है तो ग्रामीण क्षेत्रो में क्या स्थिति होगी। इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने एक माह पूर्व शत प्रतिशत संस्थागत प्रसव होने की जानकारी दी थी। उन्होने अपने बयान में कहा था कि संस्थागत प्रसव पर सौ प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है। आज घटना के बाद जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने किसी प्रकार का बयान नहीं दिया। फोन भी उठाना मुनासिब नहीं समझा।