(गिरिजेय)मौसम की तपिश है….भीषण गरमी है…..उमस है….बेचैनी है….।घर में बिजली है….पंखा है….कूलर है…. एसी है लेकिन कुछ भी चलता नहीं है… चूँकि बिजली नहीं है….। इस लिए गरमी है….. बेचैनी है..। बैरन बिजली कभी भी गुल हो जाती है…या बिजली रहती भी है तो वोल्टेज इतना कम रहता है कि चाहकर भी कुछ चला नहीं सकते…..जैसे नदी किनारे बैठकर भी प्यासे रहना पडे। हमारे बिलासपुर शहर में बिजली का गजब का इंतजाम है। बिजली विभाग सरकारी है और सरकार में यह विभाग खुद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के पास है। जो बिजली के मामले में छत्तीसगढ़ को सरप्लस – आत्मनिर्भर- सर्वश्रेष्ठ..ना जाने क्या-क्या दावे करते हैं।. लेकिन बिजली विभाग का काम-काज , बिजली का इँतजाम और बिलासपुर जैसे बड़े शहर में रोज ,दिन – रात हो रही दिक्कतों को देखते हुए अपने आप से पूछने का मन करता है कि जब सबकुछ बढ़िया है तो फिर दिक्कत कहां पर है….? क्या बिजली वाले खुद अपने मंत्री को हराने का पुख्ता इँतजाम कर रहे हैं …? या फिर विभाग के मंत्री ने ही अपने विभाग का कबाड़ा कर रखा है…..?इस सवाल का जवाब चाहे कुछ भी हो,लेकिन इतना तो तय है कि हर हाल में निशाने पर आम आदमी ही है.. जो बिजली का उपभोक्ता भी है।
इन दिनों अपने बिलासपुर शहर में बिजली के जो हालात हैं, उसे लेकर अगर किसी बच्चे को ESSAY ( निबंध ) लिखने कहा जाए तो वह ऐसा ही कुछ लिखेगा। कोई भी अगर इधर उस्लापुर से लेकर देवरीखुर्द और उधर सरकंडा से व्यापार विहार तक घूम के देख ले… कहीं भी – कोई भी बिजली के इंतजाम से संतुष्ट नहीं मिलेगा । कहीं अकसर बिजली गोल होने की शिकायत सुनने को मिलेगी तो कहीं पर लो-वोल्टेज की समस्या……। किसी से भी आप सुन लीजिए कि भीषण गरमी है….मौसम का पारा रिकार्ड मोड पर है। लेकिन कभी बिजली चली जाती है तो कभी वोल्टेज कम हो जाता है। ऐसे में पंखा-कूलर-एसी क्या काम करेगा..। कई बार तो बिजली वाले मेंटनेंस के नाम पर कई-कई घंटे तक बिजली बंद कर देते हैं। इसके बावजूद वोल्टेज का उतार-चढ़ाव ऐसा होता है कि घर में बिजली के कई सामान उड़ जाते हैं। इसकी वजह से विभाग और सरकार से नाराजगी तो होगी ही।
किसी भी कन्जूमर से यह सुनने को मिल जाएगा कि हम इसके पीछे की वजह को लेकर अधिक तो छानबीन नहीं कर सकते । लेकिन इतना पता है कि बिजली विभाग के मंत्री खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं । फिर भी अगर समस्या है तो क्यो…..? क्या विभाग को जरूरी सामान ही नहीं मिल पा रहे हैं….. या फिर सामानों की घटिया सप्लाई हो रही है…. ? क्या विभाग को जितने काम करने वाले लोगों की जरूरत है, उतने लोग विभाग में नहीं हैं….? सामान्य आदमी तो यही समझ पाता है कि मुख्यमंत्री के विभाग के पास सारी सुविधाएं चुस्त-दुरुस्त हीं होंगी।वे अपने विभाग को बदहाल थोड़े ना होने देंगे…। फिर भी अगर प्राब्लम है…. तो आम आदमी इसी सवाल पर अटक जाता है कि – क्या इसका मतलब बिजली विभाग ही अपने मंत्री से नाराज है औऱ चुनाव के साल अपने मंत्री को हराने के लिए पक्का इंतजाम कर रहे है … ? बिजली विभाग के इंतजाम की एक दिलचस्प बानगी यह भी है कि उपभोक्ताओँ की शिकायत के लिए कॉल- सेंटर बने हैं। जहाँ का फोन या तो व्यस्त रहता है…. या फिर कोई फोन उठाता ही नहीं है…..। एक ,सेन्ट्रल कम्पलेंट का सिस्टम रायपुर में है। जहाँ पर ठीक उसी तरह का अदृष्य इंतजाम है, जैसे कि टेलीफोन-मोबाइल कम्पनी वालों का होता है…। शिकायत के लिए फोन कीजिए … हिंदी के लिए 1 दबाइए…. छत्तीसगढ़ी के लिए 2 दबाइए……..। फिर शिकायत दर्ज होगी….। आईडी नंबर मिलेगा…। बिजली कब ठीक होगी ठीक से पता नहीं…? लेकिन एक समय के बाद एसएमएस या ई-मेल के जरिए मैसेज मिल जाएगा कि आपकी समस्या का समाधान कर दिया गया है। अब आप उस संदेश को देखते हुए अपने मोबाइल के स्क्रिन पर ही ठंडी हवा लेते रहिए। कुछ समझ नहीं आएगा कि माजरा क्या है….?
हमने इसकी तह तक जाने की कोशिश की तो समझ में आया कि बिजली के इंतजाम के मामले में सरकार का दावा खोखला है और ठोल के अंदर पोल ही पोल है। बिलासपुर शहर में 15 से अधिक ट्रांसफार्मर ऐसे हैं, जहां पर न्यूट्रल की समस्या है। जिससे बार-बार वोल्टेज में उतार-चढ़ाव होता रहता है और झटके की वजह से बिजली के उपकरण या तो काम नहीं करते या फिर जल जाते हैं। समस्या की जड़ यहां पर है। लेकिन ट्रांसफार्मर में निचले स्तर तक सुधार के लिए न किसी के पास समय है और कोई यह काम करता है। शिकायत मिली – किसी तरह काम करो और पल्ला झाड़कर निकल लो….। बिजली विभाग के लोग मेंटनेंस के नाम पर आस-पास पेड़ की डगालियां काटकर अपनी रस्मअदायगी कर लेते हैं। कभी समस्या की जड़ तक पहुंचने की कोशिश नहीं होती। जानकारी यह भी मिली कि एक तो मेनपावर की भारी कमी है। सारा काम ठेके पर है । जो लोग काम कर हे हैं उन्हे कलेक्टर रेट पर पगार भी नहीं मिल पाती । जरूरी सामान भी नहीं मिलता । एक तरफ मोटी तनख्वाह लेने वाले साहबान ऑफिस की ठंडी हवा छोड़कर बाहर नहीं निकलते और दूसरी तरफ लम्बी सीढ़ियों के सहारे खम्भों पर चढ़कर लाइन सुधारने वाले स्टाफ को महीने में 5 हजार रुपए भी नसीब नहीं होते। ऐसे में मुख्यमंत्री के विभाग का सिस्टम कैसे यह गारंटी दे सकता है कि बिजली के उपभोक्ताओँ को किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी।तब लोगों को सोचना पड़ता है कि शायद गड़बड़ी नीचे से नहीं ऊपर से ही है। लेकिन सिस्टम कुछ ऐसा ही है कि जैसे बिजली के तार में बिजली नजर नहीं आती ….. वैसे ही इस सिस्टम में यह देखना मुमकिन नहीं है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है…..? इसलिए ठीकरा बिजली वालों पर ही फूट जाता है कि वे अपने विभाग के मंत्री – मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह को हराने का पक्का इंतजाम करने में लगे हैं…..।