सीजेआई का आदेश..आगामी आदेश तक तीनों कानून निलंबित..समिति के सामने रखें अपनी बात

BHASKAR MISHRA
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नई दिल्ली…हम अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित कर रहे हैं। हम एक समिति का गठन भी करेंगे। समिति के सामने किसान और सरकार के लोग अपनी बातों को रखेंगे। यह बातें सुप्रीम कोर्ट ने आज फार्म कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कही।
 
            सुप्रीम कोर्ट ने आज कृषि के तीनों कानून और किसान आंदोलन को लेकर फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्यंयाधीश बोबडे ने कहा कि हम एक समिति का गठन करने जा रहे हैं। समिति में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, भूपिंदर सिंह मान, अध्यक्ष बीकेयू, अखिल भारतीय समन्वय समिति, प्रमोद कुमार जोशी निदेशक दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति, अनिल घणावत शेकरी संगठन होंगे। उम्मीद है कि समिति के माध्यम से सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच गतिरोध का समाधान हो जाएगा।
 
            देश के शीर्ष अदालत ने कहा, “हम समिति में विश्वास करते हैं।  समिति न्यायिक कार्यवाही का हिस्सा होगी। हर वह व्यक्ति समिति के सामने अपनी बातों को रख सकता है तो समस्या को हल करने में रुचि रखता है। समिति किसी को ना तो दंडित करेगी और कोई आदेश पारित करेगी। समिति सुप्रीम कोर्ट के सामने रिपोर्ट पेश करेंगी। 
 
                  सुप्रीम कोर्ट ने बैंच में जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन को शामिल करते हुए कहा कि  तर्क नहीं सुना जाएगा कि किसान समिति में जाने के लिए तैयार नहीं हैं। बताते चलें कि वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा और दुष्यंत दवे ने कृषकों की तरफ से किसान कानून के खिलाफ पक्ष रखा था। सुप्रीम न्यायालय ने कहा कि  हम समस्या को हल करने के लिए देख रहे हैं। यदि किसान अनिश्चित काल के लिए आंदोलन करना चाहते हैं, तो कर सकते हैं। समस्या को हल करने में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति से समिति के समक्ष जाएं।  सीजेआई ने कहा समिति  संगठनों से चर्चा करेगी। ताकि हमारे सामने तस्वीर स्पष्ट हो सके। 
 
            किसानों की तरफ से वकीलों का तर्क सुनने के बाद सीजेआई ने आश्वासन दिया कि न्यायालय कानून के क्रियान्वयन पर कायम रहेगा। किसानों की भूमि की रक्षा करेगा। यदि किसान स्वतंत्र समिति के समक्ष भाग लेने के लिए सहमत हो तो भी ऐसा ही किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि हम एक अंतरिम आदेश पारित करेंगे जिसमें किसान की जमीन नुबंधित खेती के लिए नहीं बेची जा सकती है। हम केवल कानूनों की वैधता के बारे में चिंतित हैं। विरोध से प्रभावित नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा के बारे में भी सोचते हैं। हम समस्या हल करने की कोशिश कर रहे हैं। 
 
          कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हमारे पास कानून को निलंबित करने की शक्ति है। लेकिन कानून का निलंबन एक खाली उद्देश्य के लिए नहीं होना चाहिए। किसानों की चिंता पर सीजेआई को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि किसानों के उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम की धारा 8 में प्रावधान है । हस्तांतरण, बिक्री, बंधक आदि के उद्देश्य से कोई भी कृषि समझौता नहीं किया जाएगा। अनुबंध खेती का होगा। कोई संरचना खड़ी नहीं होगी।
 
                 इसके अलावा, अधिनियम की धारा 15 में प्रावधान है कि कृषि भूमि के खिलाफ किसी भी राशि की वसूली के लिए कोई कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी। कृषि भूमि लगाव से पूरी तरह से प्रतिरक्षा है। सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि कानून में किसानों की जमीन बेचने का प्रावधान नहीं है। किसानों में जमीन बेचने की आशंका में कोई दम नहीं है।
 
             सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम प्रधानमंत्री से किसानों के पास जाने के लिए नहीं कह सकते। क्योंकि हम पार्टी नहीं है। कृषि मंत्री पहले ही किसानों के साथ बातचीत कर चुके हैं, लेकिन व्यर्थ साबित हुआ है।

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