बिलासपर। डाॅ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय में प्रतिमाह 180 मैट्रिक क्यूब बायो गैस उत्पादित किया जाएगा। इससे 828 किलोवाट बिजली के बराबर उर्जा की बचत होगी। इसके लिए विश्वविद्यालय में 6 मैट्रिक क्यूब का बायो गैस प्लांट बनाया गया है। विश्वविद्यालयय में सौर उर्जा और वाटर हार्वेस्टिंग के बाद यह तीसरा प्लांट स्थापति किया गया है। डाॅ.सी.वी.रामन् विष्वविद्यालय अब पंरपरागत उर्जा के साधनों की सीमितता एवं पर्यावरण के दुशप्रभाव को देखते अब उर्जा के वैकल्पिक साधनों का भी उपयोग कर रहा है। इसके लिए सबसे पहले विश्वविद्यालय के रिसर्च सेंटर और लायब्रेरी के उपर 10 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाया गया है। इस सोलर प्लांट से एक माह में 1500 यूनिट बिजली उत्पादित की जा रही है। यह सबसे आधुनिक तकनीक का सौर प्लांट है,जिसमें बिजली स्टोरेज और सीधी खपत दोनों की सुविधा है। विश्वविद्यालय में दुनिया की सबसे बड़ी एसएमए जर्मनी की कंपनी ने इसमे उपकरण लगाए हैं।
अब उर्जा के पारंपरिक संसाधनों की कमी और जरूरत के बढ़ते दबाव के कारण पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए विश्वविद्यालय परिसर में 6 मैट्रिक क्यूब का बायो गैस संयंत्र बनाया किया गया है। यह प्लांट रासायनिक प्रयोगशाला के पास बनाया गया है। यह बायो गैस प्लांट तीन भाग में काम करता है। तकनीकी विशेषज्ञों के द्वारा इसे तैयार किया गया है। पहले भाग में गोबर डाला जाता है, इसके बाद दूसरे भाग में गोबर पानी के साथ मिलकर गैस उत्पादित करता है। इसके बाद विशेष पाइप के माध्यम से यह बायो गैस लैब में सप्लाई की जाती है। जिससे जरूरत के अनुसार उपयोग किया जाता है। तीसरे भाग में अपशिषट पदार्थ बनाए गए स्थान में स्वतः ही निकल जाता है। सभी विभाग के विद्यार्थियों को इस संबंध में जानकारी दी जा रही है, ताकि वे इस क्षेत्र में भी कार्य करें।
उर्जा का विकल्प नहीं, बनेगा विकास में रोड़ा-कुलसचिव इस संबंध में जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के कुलसचिव शैलेष पाण्डेय ने बताया कि प्रदेश ही नहीं वरन् पूरे देश में उर्जा के पांरपरिक संसाधन जैसे कोयला,लकड़ी,कैरोसिन व पेट्रोल सहित सभी संसाधन सीमित है। इसके उपयोग से पर्यावरण में दुष्प्रभाव भी है, जबकि प्रदेश में विकास की गति तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में हमें इसके बीच में सामंजस्य बैठना होगा, नहीं तो विकास की गति रूक जाएगी। दूसरे ओर यह बात भी है कि उर्जा के पांरपरिक संसाधन जो सीमित ही है इनका खत्म होना भी तय है। इसी बात को समझकर वैकल्पिक उर्जा के स्त्रोत बनाने और उसका उपयोग करने की पहल विश्वविद्यालय में कर दी गई है। जो लगातार जारी रहेगी।
पर्यावरण संरक्षण में योगदान का संदेश-कुलपति विष्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. आर.पी.दुबे ने बताया कि उच्च शिक्षण संस्थानों की पहली जिम्मेदारी है कि वे उर्जा के विकल्पों की खोज करें और उसका अधिक से अधिक उपयोग करे। इसी क्रम में सीवीआरयू में यह प्लांट तैयार किया गया है। डाॅ.दुबे ने बताया कि लकड़ी और कोयला जैसे उर्जा के अन्य साधनों को उपयोग करने से पर्यावरण प्रदूशित होता है। जो काफी हानिकारक है। धुएं की अधिक मात्रा से प्रकृति को नुकसान होता है साथ ही मनुश्य के लगातार ज्यादा धुएं में रहने के कारण विभिन्न प्रकार के बीमारी होने की आशंका बनी रहती है। इस तरह से उर्जा के सुरक्षित संसाधनों के उपयोग से हम हर क्षेत्र में बेहतर काम करते हैं।
गैस उत्पादिक होने के बाद जो अपशिष्ट पदार्थ हमें उच्च कोटि खाद के रूप में तैयार मिलेगा। इस को सबसे बेहतर खाद माना जाता है। इस खाद का उपयोग विष्वविद्यालय में तैयार किए गए मेडिशनल गार्डन में किया जाएगा। इससे यहां लगाए गए दुलर्भ प्राजतियों के पौधों को संरक्षित करने में बल मिलेगा।