सेवा और सहयोग से मिलती है परमशांति…

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—तेरा तुझको अर्पण…बहुत सरल पंक्ति है…जीवन का मंत्र भी। जब जानने समझने लायक हुए…तब से आज तक इस मंत्र को पढ़ते और सुनते आ रहे हैं…जिसने इसे गुना…उसको परम शांति मिली…आरती की थाल उठाकर जब कहते हैं कि…प्रभु तेरा तुझको अर्पण…सुनने वाले का मन असीम आनंद में डूब जाता है। मन गर्व से भर जाता हैं..चेहरे पर विनम्रता के भाव झलकने लगता हैं। सही मायनों तभी अर्पण की परिभाषा पूरी होती है। हिन्दू धर्म में पितृमोक्ष का अपना महत्व है। इस समय पितरों का विशेष आशीर्वाद साथ रहता है। मौका होता है…पितरों के बहाने पर्यावरण के घटकों के प्रति सम्मान और अपनी निष्ठा प्रकट करने का।

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                       परम्परा के सच्चे पोषक और पाणिनी शोध संस्थान की संचालिका संस्कृत की विदुषी पुष्पा दीक्षित कहती हैं कि सच्चे मन से भूखे को खाना और अज्ञानी को ज्ञान देना..अभिलाषाओं को तुष्ट करना सच्चा तर्पण है। लेकिन वैदिक परम्परा को बनाकर रखना भी हमारी जिम्मेदारी है। तर्पण में अर्पण का ही भाव छिपा है। जाने अंजाने में जो कुछ अर्पित किया जाता है…घूम फिर कर हमें ही हासिल होता है।

                          सीजी वाल को पुष्पा दीक्षइति ने बताया कि सीवीआरयू रजिस्ट्रार शैलेश पाण्डेय का प्रयास सराहनीय है। उन्होंने बताया कि कौवा प्रकृति का संरक्षक जीव है। पितर पक्ष के बहाने हम प्रकृति के सभी जीवों को संरक्षण और स्नेह देते हैं। देखने में आया है कि तर्णण के बाद हम उसी जीव का दुश्मन बन जाते हैं…ऐसा हरगिज नहीं होना चाहिए…स्नेह और त्याग का भाव हमेशा बना रहना चाहिए…शैलेश पाण्डेय के…जरूरत मंदों के प्रति तर्पण पर अर्पण के प्रयास को साधुवाद देती हूं।

                       सीजी वाल को पुष्पा दीक्षित ने बताया कि देश में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। कई कारणों में से एक कारण गरीबी भी है। शैलेश पाण्डय..पितृ पक्ष में गरीबों के लिए शिक्षा और भूखों के लिए भोजन की बात करते है तो इसे हम हरि प्रेरणा कहेंगे। चारो तरफ भूख से हाहाकार मचा हुआ है..किसी के कोष में अकूत धन है..तो किसी के पास फूटी कौड़ी भी नहीं..कोई छप्पन भोग का आनंद ले रहा है…तो किसी के नसीब में एक जून की रोटी नहीं। पितर पक्ष में जरूरत मंदो को मन, वचन और कर्म से कुछ अर्पित किया जाता है…तो इससे बड़ा तर्पण क्या हो सकता है। तर्पण का अर्थ ही है…तृप्त होना।

                                          पुष्पा दीक्षित ने बताया कि लोग भक्ति भावना जाहिर करने के लिए मंदिरों में चढ़ावा खूब चढ़ाते हैं…देवता को रिझाते हैं। क्या नहीं करते लोग…। लेकिन बाहर बैठे दरिद्र नारायण को हर चीज फेंककर देते हैं..इसमें अभिमान झलकता है। ईश्वर सबसे कमजोर लोगों के साथ होता है…जिसे आज तक हमने नहीं समझा। सीवीआरयू ने जरूरत मंदों को सहायता पहुंचाने का वीड़ा उठाया है…,, इससे बड़ा नेक काम कुछ हो ही नहीं सकता। पुष्पा दीक्षित ने कहा कि समर्थवानों को ऐसे पुनीत कार्य में सहयोग करना चाहिए। परम्परा के बहाने ही सही कम से कम जरूरतमंदों को मजबूत हाथ तो मिलेगा।

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