”सेहत ” की सियासत …..!

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(रुद्र अवस्थी)

प्रदेश के मंत्रिमंडल मं बहुत पहले से प्रतिक्षित फेरबदल के बाद आखिर इस सूबे को तीन मंत्री और आठ की गिनती में संसदीय सचिव मिल गए।प्रदेश की सत्ता में तीसरी बार काबिज होने के बाद मौजूदा बीजेपी सरकार के पहले फेरबदल को लेकर मौसम की तपिश के साथ कदमताल मिला रही सियासी सरगरमी की आँच भी थोड़ी बढ़ी है। चूंकि इस फेरबदल की बजह से ही लम्बे अरसे के बाद लोगों को अपने नुमाइंदों का  ‘वजन ‘ नापने का मौका मिल गया है।….और लोग कहीं तराजू के पसंगे में किलो-बाट धरने में लगे हैं, तो कहीं टेप-फीता के नम्बरों पर उंगलियां फेर रहे हैं। मीडिया भी बोल रहा है….। सोशल मीडिया भी बोल रहा है और सियासी हलकों में भी लोग इस पर बतिया रहे हैं। फेरबदल के इस पत्थर से सूबे के सियासी  ‘’ पोखर’’ के पानी में जो हल्की-फुल्की सी लहरें उठीं है – उनकी हल्की थाप बिलासपुर तक भी पहुंचीं हैं।

सियासी लहरों की थाप यहां तक सुनाई देने की एक बड़ी वजह तो यही है कि सेहत से जुड़े महकमें का जिम्मा संभाल रहे बिलासपुर शहर के मंत्री अमर अग्रवाल को स्वास्थ की जगह उद्योग विभाग की जिम्मेदारी दी गई है।सेहत ( महकमे ) के इस बदलाव को तराजू के पासंगे में और मीटर स्केल पर रखकर लोग वजन का हिसाब निकालने में लगे हैं। चिकित्सा विज्ञान में कई जगह वजन के उतार – चढ़ाव से सेहत का अंदाजा लगाया जाता है..। मगर सियासत की इस साइंस और तकनालॉजी में सेहत से वजन मापने का ‘’ हुनर ‘’ भी मौजूद है…।

हालांकि अरपा की माफिक भीतर – ही – भीतर बहता हुआ सा दिखने वाला शहर इस तरह की नाप – जोख के तजुर्बे का पुराना खजाना रखे हुए है…। चूंकि इस शहर को वो किस्मत और शोहरत हासिल है कि कभी अविभाजित मध्यप्रदेश के कबीना में इस एक ही शहर से तीन – तीन मंत्री हुआ करते थे। तब भी सरकार के गठन और फेरबदल के समय मंत्रियों के विभाग के हिसाब से उनके वजन और सेहत का मुआयना करने का रिवाज रहा है। अब वो जमाना नहीं रहा….। फिर भी सेहत और वजन नापने – जोखने के रिवाज पर अमल तो जारी ही रहना चाहिए…। शायद इसी वजह से यह फेरबदल चर्चाओं में है।

चर्चा में यह सवाल भी अहम् है कि इस फेरबदल से शहर के विधायक अमर अग्रवाल के वजन पर क्या असर हुआ है। कांग्रेसियों की राय है कि स्वास्थ विभाग का मंत्री बदलकर प्रदेश सरकार ने कुछ हद तक नसबंदी कांड का प्रायश्चित कर लिया है।लेकिन पूर्ण प्रायश्चित तब कहलाता ,जब अमर अग्रवाल को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा जाता। इस हिसाब से शहर विधायक के वजन में गिरावट मानी जा रही है। कुछ लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में इस तरह के सवाल भी उठाए हैं कि मंत्री को विभाग चाहे जो भी मिले – इससे शहर को फायदा क्या है…? इस तरह का सवाल खड़ा करने वाले पिछले विभागों के कार्यकाल को भी सामने रखकर अपने सवाल को वजनदार बता रहे हैं…।

लेकिन विरोध के इन स्वरों के उलट ऐसे भी स्वर हैं, जिन्हे सुनकर कहा जा सकता है कि कई लोग अमर अग्रवाल को पहले से भी अधिक वजनदार मानते हैं या  ‘’ जस – के- तस  ‘’ मानने वाले भी हैं…। दलील है कि वाणिज्यिक कर और नगरीय प्रशासन जैसा अहम् विभाग तो बरकरार है ही , उस पर उद्योग जैसा महकमा भी मिल गया.। अपने सूत्रों पर भरोसा करने वाले यह भी मान रहे हैं कि उद्योग विभाग  ‘ऊपर ‘ के इशारे पर सौंपा गया है। जिस दौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  ‘ मेक इन इंडिया ‘ और छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने का नारा दे रहे हों – ऐसे समय में यदि छत्तीसगढ़ जैसे असीम संभावनाओँ वाले प्रदेश के उद्योग मंत्री का फैसला ‘ ऊपर ‘ के इशारे पर हुआ हो , तो यकीनन यह अमर अग्रवाल को अधिक वजनदार और कद्दावर मानने का पैमाना हो सकता है।

फेरबदल के मामले में नसबंदी काँड को घसीटने वाले कांग्रेसियों के जवाब बतौर अमर समर्थक यह भी कह रहे हैं नसबँदी काँड से इसका कोई नाता नहीं है……। नसबंदी काँड के तुरत बाद हुए नगर – निगम  चुनाव में शानदार जीत से तो सब कुछ आइने की तरह साफ हो गया…..। अमर अग्रवाल पहले ही स्वास्थ विभाग छोड़ने की पेशकस कर चुके थे…….। इस तरह की बातों का जिक्र भी चर्चाओँ में है।

यह तो हुई सियासत और इससे जुड़ी खुसफुसाहट की बात…….। इन बातों की उमर बहुत अधिक नहीं होती….। शबनमी सतह पर टिके इन जुमलों के ऊपर कब नई बतकही – चर्चाएं अपनी परत बिछा देंगी – इसकी कोई समय – सीमा नहीं है…। लेकिन  ‘ सीमा ‘ तो है…। जहां तक शहर के अवाम का सवाल है – वह तो चाहेगा कि उसका नुमाइंदा सेहतमंद और वजनदार भी हो…..। और उसकी धमक शहर की तरक्की और उसकी जरूरतों को पूरा करने में भी सुनाई देती रहे…..। इस लिहाज से धमक के साथ अपना ‘ वजन ‘ साबित करने की बारी अब अमर अग्रवाल की है…. जो नई चुनौतियों के साथ एक बार फिर से शुरू हो चुकी है……….।

 

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