अजीत जोगी की कांग्रेस में वापसी का ‘चेप्टर क्लोज’ राहुल गाँधी लगा गए आखिरी मुहर

Chief Editor
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(गिरिजेय)“अजीत जोगी लड़ाई के के बीच में कांग्रेस छोड़कर गए है….. जैसे बाघेला जी गुजरात में लड़ाई के बीच में कांग्रेस छोड़कर गए थे ……हम इस चीज को रिवर्ट तो करेंगे नहीं….. क्योंकि हम कांग्रेस को बना रहे हैं ….. और हमें इस तरह के मौका परस्त नेताओँ की जरूरत नहीं है…..। ” यह बात अगर पूरी साफगोई के साथ  कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी कहते हैं , तो यह मान लेने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि अब छत्तसीगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की कांग्रेस में वापसी के रास्ते पूरी तरह से बंद हो चुके हैं और अब यह चेप्टर क्लोज हो गया हौ….। और इस पर खुद कांग्रेस संगठन की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने अपनी आखिरी मुहर लगा दी है…।कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार दो दिन के छत्तीसगढ़ दौरे पर आए राहुल गाँधी अपनी सभाओँ- सीधा संवाद और प्रेस से बातचीत में कई सवालों के जवाब दे गए । उसमें एक अहम् सवाल यह भी था कि क्या चुनाव से पहले  अजीत जोगी की कांग्रेस में वापसी हो सकती है…?

वैसे तो यह सवाल उस समय से ही छत्तीसगढ़ के सियासी फिजाओँ में तैर रहा है, जब से जोगी कांग्रेस पार्टी  से अलग हुए हैं। समय – समय पर सियासी अठखेलियों के बीच यह सवाल फिर से हवा में तैर जाता है। फिर राहुल गाँधी  के दौरे में तो इसे उठना ही था। इस बार इस सवाल ने उस समय से अपनी जगह बना ली थी, जब राहुल के कोटमी ( मरवाही )  दौरे के साथ ही अजीत जोगी की पार्टी ने ठीक उसी दिन पेण्ड्रा में रैली करने का एलान कर दिया। दोनों कार्यक्रमों की तैयारियों के साथ यह सवाल भी उठने लगा कि राहुल गाँधी की सभा के महज 15-20 किलोमीटर दूरी पर अपनी सभा में ताकत की नुमाइश कर जोगी आखिर क्या दिखाना चाह रहे हैं ….?

राजनीति के जानकारों ने मान लिया कि इसके जरिए खुद को राहुल के सामने खड़े करने की रणनीति के तहत जोगी ने यह दाँव खेला था। और खुद को  बराबरी पर लाने के लिए पूरी ताकत झोक दी थी। उनका टारगेट  था कि राहुल के कार्यक्रम से अधिक भीड़ जोगी कांग्रेस के कार्यक्रम में जुटे और यह संदेश जाए कि एक राष्ट्रीय पार्टी का जलसा एक क्षेत्रीय पार्टी के मुकाबले कमजोर रहा।जोगी अपने को छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल,डॉ.चरण दास महंत और टी.एस. सिंहदेव जैसे नेताओँ के मुकाबले खुद को अधिक ताकतवर दिखाकर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने उन्हे बौना साबित करना चाहते थे।  दोनों कार्यक्रमों में कितनी और कैसी भीड़ जुटी यह सबके सामने है। इस दौरान कोटा एमएलए डॉ. रेणु जोगी का कोटमी की सभा में जाना और राहुल का स्वागत करना भी सियासी हलकों में चर्चा का विषय रहा। इसे लोगों ने कुछ इस नजरिए से देखा कि  कांग्रेस के साथ तालमेल का रास्ता खुला रखने की गरज  से भी यह रणनीति अपनाई गई होगी।यह भी सच है कि राहुल गाँधी ने कोटमी के अपने भाषण में अजीत जोगी का कहीं जिक्र नहीं किया। लेकिन इस सचाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि उन्हे महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर चल रहे अजीत जोगी के  ‘ जवाबी – शो ‘ के बारे में पता न चला हो। कांग्रेस के प्रभारी पी.एल.पुनिया, चंदन यादव, अरुण उराँव सहित तमाम नेता पिछले कई दिनों से उस इलाके में डेरा जमाए थे और उन्हे अपनी पार्टी के साथ ही जोगी कांग्रेस की पल-पल की गतिविधियों की खबर मिल रही थी। कांग्रेस के नेताओँ को यह भी पता चल ही गया होगा कि जिस फिजिकल कॉलेज ग्राउन्ड में जोगी की सभा हो रही है, वह रेवेन्यू रिकार्ड के हिसाब से कितना बड़ा है।
वहां पर कितनी कुर्सिया लगी हैं और कितने लोग जमा हो रहे हैं। कोटमी के सभास्थल पर कब्रस्तान की खबर भी  सुर्खियां बनीं। कार्यक्रम खतम होने के बाद काग्रंस नेताओँ के कानों तक जोगी के साथ  वालों का यह दावा भी पहुंच ही गया होगा कि कोतमी के मुकाबले पेण्ड्रा की सभा में तीन गुना अधिक भीड़ जुटी, एक क्षेत्रीय पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी से कहीं अधिक समर्थन मिला , जोगी ने विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिहाज से एक मील का पत्थर गड़ा दिया है …और अब जोगी सरकार बनना तय है…   …. वगैरह…. वगैरह…। जब इतना कुछ पता चल गया तो कांग्रेस के शीर्ष नेता यह भी जान गए होंगे कि आखिर इस कवायद के पीछे अजीत जोगी का मकसद क्या रहा होगा …. ?  आखिर कई दिनों से चल रहे इस एक्ससाइज का यही लब्बोलुआब सामने आया कि इसके पीछे कांग्रेस में वापसी के लिए रास्ता तलाशने का मकसद हो सकता है।

राहुल गाँधी छत्तीसगढ़ में दो दिन रुके और इतने समय में सूबे की सियासी फिंजा में यही सवाल लोगों को बेचैन करता रहा कि जोगी के मामले में आखिर राहुल खुद क्या सोच रहे होंगे…..? और शायद लोगों की यह बेचैनी शायद दूर ही नहीं हो पाती और यह सवाल बिना जवाब के मुकाम तक पहुंचे मंडराता ही रह जाता…..( चूंकि राहुल की ओर से सार्वजनिक रूप से यह बात सामने नहीं आई थी ) । लेकिल बिलासपुर में संपादकों के बीच बातो ही बातों में जोगी के मुद्दे पर राहुल गाँधी ने जो कुछ कहा उससे तसवीर पूरी तरह से साफ दिखाई देने लगी है। उन्होने दो टुक कह दिया कि अजीत जोगी लड़ाई के बीच में कांग्रेस छोड़कर गए हैं….. इस चीज को रिवर्ट तो करेंगे नहीं। राहुल नें अपनी बात में गुजरात के नेता शंकर सिंह बाघेला का भी जिक्र किया और बोल गए कि …. जब बाघेला काग्रँस छोड़कर गए थे तो उन्हे सीनियर- हैवीवेट और जाने क्या-क्या कहा जा रहा था। लेकिन राहुल बोले कि कांग्रेस ने इस मामले अपना रास्ता साफ रखा है कि मौकापरस्त नेताओँ की पार्टी को कोई जरूरत नहीं है। राहुल ने छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल, डॉ.चरण दास महंत और टी.एस.सिंहदेव जैसे नेताओँ का नाम लेकर उन्हे मजबूत करने के लिए हर तरह से  मदद करने  की भी बात कही।

संपादकों के सामने राहुल गाँधी की इस साफगोई का इसके अलावा और क्या मतलब निकाला जा सकता है कि अजीत जोगी की कांग्रेस में वापसी का चेप्टर अब पूरी तरह से क्लोज  हो गया है और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उस पर अपनी आखिरी मुहर लगा दी है। जिसे देखने- सुनने के बाद शायद अब यह मान लेना पड़ेगा कि राहुल गाँधी की छत्तीसगढ़ से वापसी के साथ  यह सवाल भी जहाँ से आया था वहीं वापस लौट गया है ….. और राहुल गाँधी अजीत जोगी की कांग्रेस में वापसी का रास्ता खुद अपने हाथों से बंद कर गए हैं। इस कमेंट के साथ कि सियासत में  कभी भी- कुछ भी हो सकता है…..।

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