अलग – अलग ब्लॅड ग्रुप ….. फिर भी माँ ने दी बेटे को किडनी…… अपोलो अस्पताल में सफल रहा अनूठा ऑपरेशन

Chief Editor
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बिलासपुर। अपोलो हाॅस्पिटल बिलासपुर में गुर्दा प्रत्यारोपण की दिशा में एक नया प्रयोग सफल हा। जिसमें ग्राही और दाता के ब्लड ग्रुप अलग-अलग होने के बावजूद  प्रत्यारोपण किया गया । यह ऑपरेशन सफल रहा और दोनों अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं। । यह मध्यभारत में किया गया अपने तरह का यह पहला किडनी प्रत्यारोपण है।
डाॅ सजल सेन सी ओ ओ अपोलो बिलासपुर की अध्यक्षता में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेस में  विशिष्ट गुर्दा प्रत्यारोपण की जानकारी साझा  की गई। डाॅ सजल सेन ने बताया की भारत वर्ष में किडनी फेलियर की स्थिति काफी चिंताजनक है, पहले किडनी फेलियर का कारण गम्भीर संक्रमण एवं ब्लडप्रेशर आदि हुआ करता था। किंतु आज इसमें एक कारण और जुड़ गया है और वो है मधुमेह का बढ़ता हुआ ग्राफ….।  पहले जहाॅ 50 और 60 वर्ष के लोगों की किडनी फेलियर हुआ करती थी एवं 90 के दशक में एक सर्वे के अनुसार 45 से 50 वर्ष एक औसत आयु मानी गयी थी। वहीं आज मधुमेह एवं अन्य कारणों से यह आयु काफी घट गई है। युवाओं में भी सामान्यतः किडनी फेलियर देखने को मिलता है । अब बात करें इसके इलाज की तो अस्थायी रूप से जैसा की जन सामान्य को मालूम है डायलिसिस की प्रक्रिया द्वारा इस प्रकार के मरीजों को जीवित रखा जा सकता है। किन्तु यह कोई स्थायी निदान नहीं हैं। इस बारे में हमारा यह मानना है की किडनी फेलियर के मरीजों को स्थायी निदान हेतु किडनी प्रत्यारोपण ही एकमात्र कारगर एवं सर्वोत्तम विकल्प है। जिसकी सुविधा विगत कई वर्षों सेअपोले  हाॅस्पिटल में उपलब्ध है एवं सफलतापूर्वक अनुभवी किडनी रोग विशेषज्ञ, सर्जन एवं टीम द्वारा यह किया जा रहा है।

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उन्होंने बताया कि यह प्रत्यारोपण अपने आप में अनूठा है, सामान्यतः दाता एवं ग्राही का रक्त समूह एक होना आवश्यक होता है। किन्तु यह प्रत्यारोपण भिन्न-भिन्न रक्त समूह वाले ग्राही एवं दाता के बीच हुआ। यह अपने तरह का पूरे मध्यभारत में पहला किडनी प्रत्यारोपण है। इस प्रत्यारोपण को हमारे वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ डाॅ जिगनेश पंड्या एवं वरिष्ठ सर्जन डाॅ जयंत कानस्कर एवं उनकी टीम ने बखूबी अंजाम दिया। प्रत्यारोपण को 5 सप्ताह हो चुके है ग्राही एवं दाता दोनो पूर्णतः स्वस्थ्य है।
डाॅ जिगनेश पंड्या, वरिष्ठ किडनी रोग विशेषज्ञ ने बताया कि किडनी की बिमारी दो प्रकार के की होती है, पहली अस्थायी जिसे समय के साथ उचित इलाज मिलने पर ठीक किया जा सकता है। दूसरी स्थायी , यह  एक गम्भीर समस्या होती है ।  जिसमें नियमित रूप से डायलिसिस द्वारा मरीज को अस्थायी रूप से आराम मिलता है एवं उसे जीवित रखा जा सकता है। किंतु यह इस बिमारी का स्थायी ईलाज नहीं है। किडनी प्रत्यारोपण ही इसका स्थायी इलाज होता है ।  जिससे मरीज पूर्णतः सामान्य हो जाता है। अति नजदीकी रक्तसंबंधी जैसे माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, पिता-पुत्रध – पुत्री, माता-पुत्र – पुत्री जिनके रक्त समूह समान हो किडनी ग्राही एवं दाता बन सकते है।
इस अतिविशिष्ट किडनी प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में माता द्वारा पुत्र को किडनी दान की गई है। मध्यभारत में अपने तरह का यह पहला प्रत्यारोपण  है । जिसमें माता  ( दाता )  का रक्त समूह एबी पाॅजिटिव है एवं पुत्र ( ग्राही )  का रक्त समूह ए पाॅजिटिव है। माता की ये इच्छा थी कि वह अपने पुत्र को गुर्दा दान करें। सफलतापूर्वक आॅपरेशन के पश्चात् आंखों में खुशी के आंसू लिए वह अपने पुत्र को अपलक निहारती रही एवं उन्होंने सभी को आर्शीवाद दिया।
डाॅ जयंत कानस्कर वरिष्ठ किडनी प्रत्यारोपण सर्जन, ने बताया की अभी तक हम 32 गुर्दा प्रत्यारोपण कर चुके है और ये सारे प्रत्यारोपण दूरबीन पद्धति से ही किये गये है। उन्होंने बताया दूरबीन पद्धति से गुर्दा निकालने की प्रक्रिया पूरे मध्यभारत में सिर्फ अपोलो हाॅस्पिटल बिलासपुर द्वारा की जा रही है। यह सुविधा कहीं और उपलब्ध नहीं है। दूसरे अस्पतालों में ओपन सर्जरी के द्वारा गुर्दा निकालने की प्रक्रिया की जाती है। दूरबीन पद्धति से प्रत्यारोपण करना कठिन होता है, किन्तु मरीज के लिये यह काफी फायदेमंद होता है और यह प्रत्यारोपण भिन्न-भिन्न रक्त समूह के दाता एवं ग्राही होने के कारण विशिष्ट श्रेणी में आता है।
डाॅ सजल सेन  ने खुशी जाहिर करते हुए बताया कि हमारी संस्था शुरू से ही गुर्दा प्रत्यारोपण में अग्रणी रही है और अब भिन्न-भिन्न रक्त समूह का होना गुर्दा प्रत्यारोपण में कोई बाध्यता नहीं है।
जब पुत्र मरीज से पूछा गया कि  वे अपने माता-पिता के बारे में कुछ बताएं तो सहसा उसकी आंखे डबडबा गई और उसने कहा भगवान ऐसे माता-पिता सभी को दे।

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