अलविदा अजीत जोगी: अपने खेल का मैदान खुद बनाने की कला में माहिर खिलाड़ी को नहीं भूलेगा छत्तीसगढ़…

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(रुद्र अवस्थी)यह खबर लिखते हुए कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर उंगलियां थरथरा रही हैं कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अब नहीं रहे………। जिंदादिल राजनेता को स्वर्गीय लिखना वाकई तकलीफ़देह है…..। चूंकि ज़िंदादिल नायक हमेशा लोगों के दिलों में ज़िंदा रहते हैं….। जिस तरह उन्होंने अपनी 74 साल की जिंदगी में लंबा संघर्ष किया । उसी तरह कोमा में रहते हुए 20 दिन लंबी जद्दोजहद की । अपनी जिंदगी के तमाम संघर्षों में जीत हासिल करने वाले अजीत जोगी यह लड़ाई नहीं जीत सके और अलविदा कह गए……। एक कुशल प्रशासक और लोकप्रिय राजनेता के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा और छत्तीसगढ़ के तमाम लोगों के ज़ेहन में वे हमेशा जिंदा रहेंगे । प्रशासनिक अफसर और राजनेता के रूप में कई उपलब्धियां – ऊंचाइयां उनके नाम पर दर्ज हैं । लेकिन उनकी शख्सियत की एक बड़ी खासियत यह रही कि वे सियासी मैदान के ऐसे खिलाड़ी थे , जो अपने खेल का मैदान खुद बनाने की कला में भी माहिर थे। तभी वह छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से अब तक इस सूबे की सियासत के “फ़ोकल प्वाइंट” बने रहे.सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप NEWS ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

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संघर्ष अजीत जोगी की जिंदगी का पर्याय था । कई बार लगता है कि जिंदगी ने जो संघर्ष उन्हे दिया उसके साथ पूरी शिद्दत से ज़ूझते रहे …….। और खुद भी संघर्ष की दुनिया में कदम रखने में उन्हे कोई हिच़क नहीं हुई । ज़ीत – हार तो खेल के मैदान का शास्वत और अंतिम सत्य है। लेकिन हर हाल में मैदान में डटे रहने औऱ ज़ूझ़ते रहने का सत्य भी अज़ीत ज़ोगी के नाम के साथ ताउम्र ज़ुड़ा रहा। उनकी ज़िंदगी के सफर की यही ख़ासियत रही एक छोटे से गांव में बचपन बिताते हुए गांव के स्कूल में पढ़ाई की । लेकिन ऊँचाइयों तक पहुंचने की ललक को हमेशा अपने साथ रखा । काबिलियत की ताकत से आगे निकलने की सोच उनके अंदर पढ़ाई लिखाई के जमाने से रहीं । जिसके दम पर छोटे से गाँव से निकलकर इंज़ीनियरिंग कॉलेज़ तक पहुंचे।

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उनका नाम भोपाल के मौलाना आजाद टेक्निकल इंस्टिट्यूट( एमएसीटी ) में सबसे अधिक नंबर लेकर पास होने वाले छात्र के रूप में आज भी दर्ज है। इसके बाद आईपीएस और फिर आईएस की परीक्षा पास कर अपनी काबिलियत के बल पर ही उन्होंने लगातार एक दशक से अधिक समय तक कई जिलों में कलेक्टर की जिम्मेदारी निभाई । फिर राजनीति की दुनिया में कदम रखने के बाद उनकी काबिलियत की ही ताकत थी कि कांग्रेस ने उन्हें लगातार 12 साल तक राज्यसभा का सदस्य बनाया । वे रायगढ़ लोकसभा सीट से सांसद भी रहे । इस दौरान उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी भी मिली । छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद उन्होंने पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और तब से छत्तीसगढ़ की राजनीति के केंद्र बिंदु बने रहे ।2003 में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान गंभीर हादसे का शिकार होने के बाद भी महासमुंद सीट से चुनाव जीतकर उन्होने अपनी काब़िलियत साबित की । इसके बाद से करीब सोलह साल तक वे व्हीलचेयर पर रहे । फिर भी छत्तीसगढ़ में सत्ता और विपक्ष दोनों की राजनीति उनके ईर्द – गिर्द ही घूमती रही ।

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पत्रकारिता में रहते हुए अजीत जोगी से मुलाकात का बहुत मौका मिला । वे अक्सर अपनी बात कहने के बाद ऑफ दी रिकार्ड भी लंबी बातचीत किया करते थे और दिल्ली- भोपाल -रायपुर तक चल रही राजनीतिक गतिविधियों के बारे में बहुत सी जानकारी देते थे ।उस समय के राजनीतिक किस्से साझ़ा करने में उनकी बड़ी दिलचस्पी रहती थी। वह शायद 1987 का साल था , जब राज्यसभा सदस्य बनने के बाद वे बिलासपुर आए थे और सीएमडी कॉलेज में एक आयोजन में शामिल हुए थे । तब उनसे मिलने का मौका मिला । फिर अक्सर बिलासपुर में विपिन मेहता या अनिल टाह के निवास पर उनसे बातचीत होती थी । 1987 के खरसिया उपचुनाव में भी मुलाकात के दौरान लम्बी बातचीत का मौक़ा मिला था। उस दौरान वे जब भी पेण्ड्रा – मरवाही इलाक़े के दौरे पर होते तब भी क़वरेज़ के सिलसिले में जाना होता था।

1990 के आसपास अजीत जोगी ने दंतेश्वरी से महामाया तक पदयात्रा की थी ।तब भी रास्ते में कई बार उनकी पदयात्रा में शामिल होकर कवरेज करने का मौका मिला । मुख्यमंत्री रहते हुए भी वे हफ्ते में एक-दो दिन बिलासपुर रुकते थे । तब सर्किट हाउस और छत्तीसगढ़ भवन में उनसे बातचीत होती थी । उस समय अक्सर उनका दौरा मरवाही – पेण्ड्रा इलाक़े में होता , तब भी कवरेज़ के दौरान मुलाकात का मौक़ा मिलता रहा। मरवाही उपचुनाव में जब पहली बार उन्होने विधायक का चुनाव लड़ा , तब भी इलेक्शन क़वर करते हुए उनकी रणनीति को नज़दीक से देखने का मौक़ा मिलता रहा। 2003 के विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति की तस्वीर बदल गई । इसके बाद भी बिलासपुर से उनका नाता बना रहा और उनसे कई ब़ार मुलाकात होती रही । जब उन्होंने नई पार्टी बनाई उसके पहले मरवाही इलाके के कोटमी में बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया । इसमें भी कवरेज का मौका मिला । इस दौरान जिस दिन कांग्रेस ने मरवाही में एक बड़ा जलसा किया , उसी दिन अज़ीत ज़ोगी ने तब के मुख़्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के गाँव ठाठापुर मे एक कार्यक्रम किया था। तब भी उनके संघर्ष और चुनौती को अँदाज को समझने का मौक़ा मिला।

क्लियरवीजन , वक्त की पाबंदी और विकास का एक अपना मॉडल था । जो उनकी बातचीत में हमेशा झलकता था । राजनीति में उन्होने ऐसे लोगों को भी आगे लाने की पहल की , जो अंतिम पंक़्ति में गिने जाते थे। उन्होने कई नए चेहरे सामने किए। सभाओँ में उनके भाषण का अँदाज और ठेठ छत्तीसगढ़िया लहज़ा लोगों को आकर्षित करता था। गाँव को लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता की एक वज़ह यह भी थी । विवादों से नज़दीक़ी रिश्तेदारी रखने की वज़ह से भी वे अक्सर सुर्खियों में रहे। उनकी कही यह बात अब भी याद आती है कि … “मेरी जाति का विवाद …मेरे जाने के बाद ही ख़त्म होगा…..।”

यह इत्तफ़ाक की बात है कि छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना और उसमें बिलासपुर से जुड़े अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने । इस पद पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने बिलासपुर को हमेशा अहमियत दी । अपने राज्य में अपने मुख्यमंत्री से आसान मुलाकात की वजह थी कि हर एक स्तर की गतिविधियों से रूबरू होने का मौका मिल जाता था । जहां तक सियासत की बात है कांग्रेस में रहते हुए मुख्यमंत्री के रूप में और फिर उसके बाद तक उनकी राजनीति का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि अजीत जोगी के ज़िक़्र के बिना सियासत पर बहस पूरी नहीं होती थी। इसके बाद छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के उनके सियासी सफर में एक बात निर्विवाद रूप से झलकती है कि चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष छत्तीसगढ़ की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूमती रही । अजीत जोगी के लिए यह बात कही जा सकती है कि अपने खेल का दांव तो बहुत़ से लोग जानते हैं । मगर अपने खेल का मैदान खुद बनाने वाले गिनती के लोग होते हैं । यही बात अजीत जोगी को बाकी राजनीतिज्ञों से अलग करती है ।

संघर्ष के साथ लम्बा सफ़र तय कर चुके अज़ीत जोगी ने कई मुकाम पर जीत हासिल की । महासमुंद मे चुनाव के दौरान हादसे के बाद मिली ज़िंदगी में उन्हे पल –पल चुनौतियां मिलती रहीं और व्हील चेयर पर उनके सोलह साल इस बात के प्रमाण हैं कि उन्होने इन चुनौतियों का किस तरह से मुक़ाबला किया .? इस बीच उन्होने कई आघात सहे और हर बार मात देकर जीत हासिल की । यही वज़ह है कि इस बार 9 मई को जब उनकी तबीयत बिगड़ी तो लोगों को उम्मीद थी कि इस बार भी वे सकुशल वापस लौटेंगे। लेकिन अजीत जोगी यह ज़ंग हार गए और बीस दिन कोमा में रहने के बाद अपने चाहने वालों को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। एक कुशल प्रशासक और लोकप्रिय राजनेता के रूप में उन्होंने जो सफर तय किया उसे हमेशा याद रखा जाएगा …….. अलविदा अजीत जोगी……।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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