आईबोक सहायक महासचिव ने कहा….बिगड़ते हालात के लिए सरकार जिम्मेदार..कारपोरेटरों को लाभ पहुंंचाने बन रही नीतियां

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—-बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 50 साल पूरे होने पर स्वर्ण जयंति कार्यक्रम का आयोजन किया गया। स्टेट बैंक लखराम शाखा प्रबंधक रामनारायण आर्मो की आकस्मिक निधन की वजह से  पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में कार्यक्रमों में संशोधन करते हुए बैंकरो ने एक दूसरे को बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बधाई दी। कमोबेश सभी बैंक शाखाओं में बृहद मानव श्रंखला की जगह छोटी छोटी श्रृखंला बनाकर बैंकरों ने अपनी खुशियों को जाहिर किया।
                        बैंकर्स क्लब समन्वयक और आईबोक छत्तीसगढ़ सहायक महासचिव ललित अग्रवाल ने बताया कि19 जुलाई को बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पूरे  पचास साल हो गए। पचास साल की यात्रा को बैंकों ने तय किया था कि वृहद स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन कर लोगों को राष्ट्रीयकरण के बारे में जानकारी दी जाएगी। लेकिन स्टेट बैंक लखराम शाखा प्रबंधक रामनारायण आर्मो की आकस्मिक निधन से कार्यक्रम में आंशिक संशोधन किया गया। हमे दुख है कि हमारे बीच का एक साथी हमेशा के लिए हमसे दूर चला गया। दुख की इस घड़ी में पूरा बैंक परिवार रामनारायण आर्मों के परिवार के साथ है। इस दुखद घटना के चलते हमने बैंकों के सामने बृहद मानव श्रृंखला की जगह छोटी छोटी मानव श्रृंखला बनाकर अपनी भावनाओं को जाहिर किया है।
                            राजकिशोर नगर में बैंकर्स और आमजनता को सम्बोधित किया गया। बैंकर्स क्लब समन्वयक और आइबोक छत्तीसगढ़ सहायक महासचिव ललित अग्रवाल ने बताया कि 19 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीजी ने देश के 14 प्रमुख बैंकों का पहली बार राष्ट्रीयकरण किया। 1980 में छह बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ। इंदिरा गांधी की गरीबी हटाओ योजना से लेकर नरेन्द्र मोदीजी  महत्त्वाकांक्षी योजना मुद्रा लोन तक सभी योजनाओं का क्रियान्वयन सरकारी बैंकों ने उत्साह से किया है। सबसे अभूतपूर्व कार्य नोटबन्दी के 54 दिनों में बैंकों और कर्मचारियों  ने करके दिखाया।
                ललित ने कहा कि बैंक कर्मचारी होने के नाते हमें गर्व है कि बिना किसी भेदभाव समाज के हर कोने, हर वर्ग के लोगों को आर्थिक मजबूती प्रदान करने की कोशिश की है। लोगों के भविष्य को सुरक्षित करने का प्रयास किया है। किसान हो या छात्र…व्यापारी हो या गृहणी…पेंशनर्स हो या कोई अन्य…, सभी को एक साथ एक छत के नीचे सेवा देकर सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है।
                                     ललित ने बताया कि बैंकों का काम तो बड़ा है…कर्मचारी अपने घर से दूर होकर भी ईमानदारी से सरकार की सभी योजनाओं को लागू करने में पूरी ताकत को झोंक देता है। कितनी भी बड़ी चुनौती क्यों ना हो…दबाव के बीच आम जनता की सेवा में लगा रहता है। आज बैंक शाखाओं में जरूरत से बहुत कम कर्मचारी हैं। काम के  दबाव के बाद भी उन्हें सही वेतन और सुविधाएं नहीं दी जा रही है। एक तरफ बैंको का विलय और निजीकरण कर सरकारी बैंकों को आम जनता की पहुंच से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। निजी कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने का हर संभव प्रयास हो रहा है।
                 दूसरी तरफ, बैंक लोन डिफाल्टर के नाम सार्वजनिक नहीं करके उन्हें बचाने का प्रयास किया जा रहा है। सरकारी बैंकों की वित्तीय हालत और कर्मचारियों की स्थिति यदि खराब है तो, इसके लिए केवल और केवल सरकार की गलत नीतियां जिम्मेदार हैं। सच्चाई यह है कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं होकर सरकारीकरण ज्यादा हुआ है।
                              ललित ने दुख जाहिर करते हुए कहा कि सरकारी बैंकों और कर्मचारियों की अच्छे कामों की चर्चा और प्रशंसा से ज्यादा कमियों को सुर्खियों में रखा जाता है।  लोगों को समझना होगा कि जितनी अपेक्षा सरकारी बैंकों से करते हैं… उतना ही उनके लोगों को समझना होगा। उनकी लड़ाई और आंदोलन में साथ देना होगा। देश का विकास तभी संभव है जब बैंकों और उनके माध्यम से सभी वर्गों का विकास होगा।
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