आज भी याद है आपातकाल की वो खौफनाक् काली रात…….

Chief Editor
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shashi (शशिकांत कोन्हेर) चालीस साल पहले  पचीस जून १९७५ की वह रात,  विपक्षी दलों और आरएसएस के हजारों स्वयंसेवकों सहित हम सरीखे युवाओं के साथ ही पूरे देश की किस्मत में भी बहुत बडा उलटफेर करने वाली साबित होने जा रही थी । चुनाव जीतने के लिये सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तब की प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध करार कर दिया था । इस फैसले के बाद महंगाई, भ्रष्टाचार और ,कांग्रेस की केन्द्र सरकार के खिलाफ देश में सुलग रहा आक्रोश दावानल बन कर भडकने लगा । गुजरात से महंगाई के विरोध में शुरू हुए आदोलन की मशाल थामने के लिये सामने आये लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आहवान पर पूरा देश कांग्रेस के खिलाफ लामबंद होने लगा था । ऐन इसी समय इंदिरा जी के खिलाफ आये आलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने आग में घी का काम किया किया? पूरे देश की तरह मध्यप्रदेश और रायपुर बिलासपुर में भी सनसनी फेल चुकी थी । पचीस जून 1975 की रात सात बजे बिलासपुर के राघवेन्द्रराव सभा भवन में प्रख्यात समाजवादी चिंतक और लोहियावादी समाजवादी नेता स्वर्गीय मधु लिमये की सभा होनी थी । वे संविधान के विशेषज्ञं भी माने जाते थे । हम सब विद्यार्थी परिषद के मरजीवड़े और बिलासपुर के तमाम जाने माने माने लोग याने जनसंघ, समाजवादी पार्टी सहित लोकतंत्र समर्थक बुद्धिजीवियों से राघवेन्द्र राव सभा भवन बाहर-भीतर तक खचाखच भरा था । ठीक समय पर मधु लिमये पहुंचे और उनकी सभा भी हुई । उन्होने इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित किये जाने से उत्पन्न परिस्थितियों की ऐसी मीमांसा की जिससे पूरी सभा  उनकी कायल हो गयी । हम सरीखे कम पढे लिखे और अगंभीर लोगों को भी उन्होने समझा दिया कि अब देश के सामने प्रधानमंत्री पद से इंदिरा जी के इस्तीफे के अलावा कोई और विकल्प ही नहीं रह गया है । उनके संबोधन ने सभी श्रोताओं को भीतर तक झकझोर दिया । इसके बाद जैसे- तैसे भाषण समाप्त हुआ और स्वर्गीय मधु लिमये रायपुर के लिये रवाना हुए । तब पचीस जून की उस काली रात के लगभग साढे नौ बज रहे थे । इसके ठीक एक घण्टे बाद शहर की सडकों पर पसरने की कोशिश करते सन्नाटे को, सरपट आती-जाती पुलिस की गाडिय़ां और उनके सायरन की आवाज परे धकेलती रही । आधी रात होते होते पूरा शहर अपने घरों में दुबक सा गया था । लोग धडक़ते दिलों से बाहर सडक पर तेजी से दौडती भागती पुलिस की गाडियों की आवाज सुनते रहे । तब तक सभी तक उडती उडती सी यह खबर लोगों के कानों तक पहुंच चुकी थी कि देश में इमरजेन्सी लगा दी गई है ।लोगों के संविधान प्रदत्त सभी नागरिक अधिकार रद्द कर दिये गये है् । और  ,मेन्टेनेन्स आफ इन्टरनल सिक्योरिटी एक्ट अर्थात(,मीसा,) नाम का एक काला कानून आर्डिनेन्स के जरिये देश पर थोप दिया गया था । जिसके तहत सभी देशवासियों के संविधान प्रदत्त तमाम नागरिक अधिकार अनिश्चितकाल के लिये सस्पेण्ड कर दिये गये थे ।सरकार किसी भी नागरिक को बिना कोई कारण बताये तीन माह के लिये नजरबंद कर सकती थी ।

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इसके लिये सरकार को गिरफ्तार व्यक्ति को किसी कोर्ट में भी पेश नहीं करना पडता था ।इतना ही नहीं वरन सरकार ने बकायदा देश भर में विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया । पूरे देश से छन-छन कर खबरें आने लगीं । जयप्रकाश नारायण गिरफ्तार कर लिये गये, अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, चंद्रशेखर, भी गिरफ्तार हो गये ।उसी काली रात बिलासपुर से भाषण देकर रायपुर गये मधु लिमये भी धर लिये गये । बिलासपुर रायपुर में भी गिरफ्तारियों का नंगा नाच शुरू हो गया,। ब्रदीधर दीवान, जमुना प्रसाद वर्मा, बबन राव शेष, मदनलाल शुक्ला, निरंजन केशरवारी, बनवारी लाल अग्रवाल, हरिश केडिया, आनंद मिश्रा, रिषीकेश शेन्डे, गणपतराव सप्रे, शंकरराव बापते, अण्णा जी गोरे माधवराव कोन्हेर, रहंदोमल पमणानी प्रेमशंकर पाटनवार, सदानंद गोडबोले और उनकी माता सुधाताई गोडबोले व शैलजा तामस्कर रविन्द्र मिश्रा, सुरेन्द्र झा, सहित तीन सौ पचास लोग तो बिलासपुर, अम्बिकापुर, जांजगीर-चांपा और मुंगेली कोरबा से गिरफतार कर जेलों में ठूंस दिये गये । मुंगेली से डा भानुगुप्ता, द्वारका जायसवाल, अनिल गुप्ता, तुलाराम स्वर्णकार, जांजगीर से चंदीराम सक्ती चांपा हर कहीं गिरफतारियां हुईँ । बिलासपुर के चाटापारा में तो जैसे घरों-घर गिरफ्तारियां की गई । पूरा मोहल्ला सूना हो गया था । इंदिरा जी की सरकार नपे आपतकाल जैसे रात को बारह बजे लगाया गया था, वैसे ही अधिकांश गिरफ्तारियां भी रात के समय और आमतौर पर बारह बजे के बाद ही होती रहीं।  इसी डर से रात होते ही डर के मारे घरों में दुबके लोगों को जैसे ही तेजी से आती किसी जीप के रूकने की आवाज आती वो समझ जाते कि पुलिस आज किस विपक्षी नेता या कार्यकर्ता को पकडकर ले गई होगी । लोगों में इतना डर समा गया था कि वो घरों के भीतर, यारों-दोस्तों व परिवार के बीच भी कांग्रेस सरकार, इंदिरा जी और तो और कलेक्टर व तहसीलदार के खिलाफ तक कुछ भी बोलने से डरने लगे । क्योंकि इसका सीधा मतलब होता कि उन्हे देशद्रोही और राष्ट्रविरोधी समझकर गिरफ्तार कर लिया जाता । अखबारों में सेन्सरशिप लागू हो गई, सरकार और प्रशासन , यहां तक कि थानेदार और हवलदार के खिलाफ भी कुछ नहीं छापा जा सकता था । उसे भी एक तरह से देशद्रोह मानकर ऐसा करने वाले को मीसा कानून के तहत अनिश्चितकाल के लिये जेल भेज दिया जाता था। सो लोगों ने अपने मुंह में ताले लगाने शुरू कर दिये । वहीं प्रशासन भी  विपक्ष के नेताओं से माफीनाम अण्डरटेकिंग लिखवाने लग गया कि अब वे कभी भूलकर भी सरकार का विरोध नहीं करेंगे। ऐसा माफीनामा नहीं देने वालों को गिरफ्तार कर लिया जाता । उधर जेलों में बंद लोगों को भी माफीनामा भरने पर रिहाई का लालच दिया जाने लगा । इन सबके बाद भी आपातकाल लगने के एक साल बाद पूरे देश की तरह बिलासपुर रायपुर में भी उसका जमकर भूमिगत विरोध शुरू होने लगा । उसके खिलाफ प्रदर्शन कर बिलासपुर में ही चालीस से अधिक लोग जेल गये । दत्ता त्रिपुरवार, महेश तामस्कर, गजानन दिघ्रसकर, भास्कर वर्तक, शैलजा तामस्कर, नेताराम विश्वकर्मा, जांजगीर जिले के जावलपुर नाम के अकेले गांव से बारह तेरह लोग विरोध प्रदर्शन कर जेल को गले लगा चुके थे …। इसी दौरान बिलासपुर में नेहरू चौक के लोकार्पण समारोह में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय प्रकाशचद्र सेठी की सभा में आपातकाल विरोधी प्रदर्शन करने की योजना बनाने वाले डा डीपी अग्रवाल,कृपाराम कौशिक सहित दस लोगों को ऐसा करने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया  । उधर हम लोगों के लिये वहां जेल के भीतर सुबह से शाम तक कार्यक्रम तय थे । सुबह आसन प्राणयाम, सुर्य नमस्कार, बौध्दिक, वाद-विवाद, यात्रा संस्मरण, और आखिर में रात को सोने से पहले कहानी सुनने-सुनाने के आयोजन …..। मेरी जगह दिवंगत मनोहर राव जी सहस्त्रबुध्दे के बाजू में नियत की गई  थी । बैरक नम्बर दो, इसमें हम पछत्तर लोग रहते थे । बैरक नम्बर दो में अण्णा जी गोरे कपिल देवांगन अम्बिकापुर के रामगोपाल चोपडा आदि रहते थे, बारह नम्बर में भी कई राजनीतिक बंदी थे । आनंद मिश्रा, एस सी मोईत्रा बैरक सेल में रहा करते थे । अठारह माह बाद  सन्  1977 में पूरे देश में आम चुनावों की घोषणा होते ही बिलासपुर जेल में बंद  हम तेरह लोगों के अलावा सभी मीसा बंदियों को छोड दिया गया । और जब इन चुनावों में पूरे देश में कांग्रेस का सूपडा साफ हो गय ।, इंदिरा जी, संजय गांधी समेत अधिकांश कांग्रेसी चुनाव हार गये और केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उस सरकार के द्वारा जारी आदेश से जेल में बंद हम तेरह लोगों की भी समारोहपूर्वक विदाई हुई । मुझे आज भी याद है । उस दिन हमें जेल से लेने पंद्रह हजार से भी अधिक शहरवासी पहुंचे हुए थे, जो हमें जुलूस के रूप में गोलबाजार की चितानी मितानी धर्मशाला तक ले गये और वहां एक सभा में हमारा सम्मान भी किया गया । हमे आज भी याद है उस दिन आपातकाल की समाप्ति और केन्द्र से कांग्रेस सरकार के सफाये की खुशी पूरा देश मना रहा था ।

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