आज से ठीक 34 साल पहले दुगली आए थे राजीव गांधी..चरौटा भाजी का चखा था स्वाद…गांव वालों को आज भी याद है एक PM का दौरा

Shri Mi
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धमतरी।वक्त आता है, गुज़र जाता है, लेकिन कुछ लम्हे ऐसे होते हैं जिनकी गहरी छाप इतिहास के गर्भ में बन जाती है और हमेशा के लिए धुंधली सी यादें जेहन में पैवस्त हो जाती हैं। नगरी विकासखण्ड के ग्राम दुगली के इतिहास में भी एक ऐसा पल आया था, जो वहां बुजुर्गों के स्मृति पटल में अब भी अविस्मरणीय बना हुआ है।

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आज से ठीक 34 साल पहले देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी का आगमन दुगली में हुआ था, जहां पर उन्होंने लगभग ढाई घण्टे बिताए। यह महज इत्तेफाक था या कुछ और, कि उन्होंने आदिवासी संस्कृति और जीवन शैली को करीब से परखने ग्राम पंचायत दुगली को चुना था।

14 जुलाई 1985 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का भारतीय सेना का विशेष विमान दुगली के कौहाबाहरा मंे अस्थायी तौर पर बनाए गए हेलीपैड में सुबह लगभग 10.30 बजे उतरा, जहां पर आज पुलिस थाना भवन बनाया गया है।

इस प्रवास के दौरान उनके साथ उनकी पत्नी सोनिया गांधी, अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, अविभाजित रायपुर जिले के प्रभारी मंत्री एवं कसडोल विधायक डाॅ. कन्हैयालाल शर्मा और सांसद एवं संत कवि पवन दीवान, तत्कालीन अविभाजित रायपुर जिले के कलेक्टर श्री रणवीर सिंह भी थे।

इसके अलावा सिहावा विधानसभा क्षेत्र के तत्कालीन विधायक और सबसे युवा विधायक अशोक सोम उनके दुगली प्रवास के दौरान साथ-साथ रहे। हेलीकाॅप्टर से उतरने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री गांधी खुली जीप में सवार होकर नगरी मुख्यमार्ग में दुगली के तिराहे पर पहुंचे, जहां पर सड़क किनारे एक घर में गए, जहां हितग्राही द्वारा बाॅयोगैस प्लांट से खाना पकाया जा रहा था।

उस समय गोबर गैस संयंत्र की योजना प्रारम्भ हुई थी। इसके बाद वे बाजार तिराहे पर पहुंचे। यहां पर ग्रामीण देवसिंह सिन्हा सायकल रिपेयरिंग दुकान में मौजूद थे और बगल में कमलाबाई विश्वकर्मा ने अपनी टोकरियों में सब्जी-भाजी का पसरा लगाया था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री की एक झलक देखने धमतरी क्षेत्र ही नहीं बल्कि सुदूर क्षेत्र के ग्रामीण हजारों नहीं, लाखों की तादाद में मौजूद रहे। यहां तक कि सड़क के दोनों किनारों के खेतों में लगी धान की फसलों को रौंदकर अपने युवा प्रधानमंत्री के दर्शन के लिए हाईप्रोफाइल सिक्योरिटी के बावजूद जनसैलाब उमड़ पड़ा।

जीप में श्री गांधी, सोनिया गांधी के साथ स्थानीय विधायक सोम भी सवार थे। राजीव गांधी ने जीप से ही ग्रामीणों का अभिवादन स्वीकार किया। सुरक्षा व्यवस्था के चलते देवसिंह व कमला बाई ने भी सिर्फ दूर से हाथ हिलाकर अभिवादन किया, जिसका श्री राजीव ने मुस्कराते हुए अपनी भावमुद्रा से प्रत्युत्तर भी दिया। देवसिंह तो अब दुनिया से विदा हो गए, अलबत्ता 72 वर्ष की आयु में कमला बाई ने उस ऐतिहासिक दिन को याद कर बताया कि वह दिन रविवार था और उस दिन उन्होंने अपनी टोकरी में लाल भाजी, टमाटर, करेला और मिर्च धनिया लेकर पसरा लगा रखा था। दुगली के उक्त तिराहे पर वे करीब 10 मिनट रूके होंगे। इसके बाद वे कार में सवार होकर सीधे शासकीय वन प्राथमिक शाला भवन में चले गए।

जब प्रायमरी स्कूल के बच्चों से हुए रू-ब-रू:- उन्होंने स्कूल के प्रधानपाठक रतीराम नाग से औपचारिक चर्चा की, तदुपरांत कक्षा दूसरी और चैथी के क्लासरूम का अवलोकन किया और नौनिहाल बच्चों को चाॅकलेट का एक-एक पैकेट बांटा। इसी दौरान कक्षा दूसरी के विद्यार्थी बलिहार सिंह सोरी के पास जाकर उनसे उनका नाम, कक्षा का नाम और गांव का नाम पूछा, जिस पर बालक ने तीनों सवालों का एक ही जवाब दिया- ‘दूसरी‘…!

इस अबोध बालक का ‘लाजवाब‘ जवाब सुनकर  राजीव अपने आप को ठहाके मारने से रोक नहीं पाए। अन्य बच्चों की तरह इस बालक को चाॅकलेट का पैकेट थमाया। इस स्कूल में राजीव गांधी ने लगभग 15 मिनट व्यतीत किए।

विशेष पिछड़ी जनजाति की संस्कृति की जिज्ञासा ने आकृष्ट किया युवा प्रधानमंत्री को- 14 जुलाई 1985 के पहले ग्राम दुगली के किसी भी ग्रामीण ने यह कल्पना नहीं की रही होगी कि देश के प्रधानमंत्री का आगमन उनके गांव में होगा।

दुगली के बुजुर्गों ने यह मानना है कि राजीव जी का दुगली आगमन का सबसे बड़ा कारण विशेष पिछड़ी जनजाति कमार की संस्कृति, रहन-सहन, खानपान, वेशभूषा से परिचित होना था। उनकी इस जिज्ञासा ने ही उन्हें दुगली खींच लाया। वहीं कुछ ग्रामीणों का यह भी मानना है कि कमार जनजाति के साथ-साथ आदिवासी संस्कृति, वनों पर उनकी निर्भरता और बिना किसी बाह्य सहयोग के जीवन यापन के तरीकों से प्रत्यक्षतः अवगत होना चाहते थे।

जब कमारपारा में सुकालूराम, सोनाराम से की भेंट:-

स्कूल से निकलकर प्रधानमंत्री का काफिला 15 फीट चैड़े पगडण्डीनुमा कच्चे रास्ते से गुजरकर वनग्राम जबर्रा की ओर गया, फिर वहां से सीधे कमारपारा पहुंचा। यहां पर श्री गांधी ने जीप से उतरकर कमारों के मुखिया श्री सुकालू और सोनाराम कमार से सपत्नीक मिले। तब कमारपारा में एक बड़े कुएं का निर्माण तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन द्वारा कराया गया था, जो स्थानीय कमारों के पेयजल और निस्तारी का साधन था, का अवलोकन राजीव गांधी ने किया। यह कुआं आज भी राजीव गांधी के कमारपारा प्रवास की कहानी बयां कर रहा है। इस कुएं की मुंडेर पर तिथि और नाम भी अंकित किए गए हैं, जो राजीव जी के प्रवास के जीते-जागते साक्ष्य हैं।

कडूकंद, मड़िया पेज, कुल्थी बीज की दाल और चरोटा भाजी का स्वाद चखा-

कमारपारा के वयोवृद्ध श्री मैतूराम और उनकी पत्नी मोतिम बाई ने बताया कि कुएं का निरीक्षण करने के पश्चात् श्री गांधी ने सियान (सुकालूराम व सोनाराम) से कुछ पूछना चाहा, लेकिन वे समझ नहीं पाए। इस पर स्थानीय विधायक श्री सोम में उनकी संस्कृति, जीवनशैली और अन्य जरूरी बातें बताई। इस दौरान उन्होंने पलाश के पत्ते से बनाए गए दोने में मड़िया पेज, कडू कंद, कुल्थी बीज की दाल और चरोटा भाजी का स्वाद भी चखा।

साथ ही महुए के एक फूल को लेकर उसके रस का भी स्वाद लिया। फिर यहां से बीरनपारा में बने गौरा चबूतरे के पास कुछ समय बिताए। गांव के 65 वर्षीय बुजुर्ग और तत्कालीन ग्राम पटेल श्री भुवालराम नेताम ने बताया कि यहीं पर श्री गांधी ने विशेष पिछड़ी जनजाति कमार को संरक्षित करने के उद्देश्य से ग्राम को गोद लेने की मंशा जाहिर की थी। इसके बाद वे पुरानी बस्ती (बीरनपारा) में मिट्टी से बने कुछ घरों में जाकर अवलोकन भी किया। इससे थोड़ी दूर पर बनाई गई घासफूस की झोपड़ी में उन्होंने लंच किया।

तत्कालीन विधायक श्री सोम ने बताया कि दुगली प्रवास के बाद ही विशेष पिछड़ी जनजाति कमार के संरक्षण के लिए कमार विकास प्राधिकरण का गठन किया। तदुपरांत हेलीकाप्टर से ग्राम कुल्हाड़ीघाट (वर्तमान जिला गरियाबंद) के लिए हेलीकाॅप्टर से रवाना हो गए।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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