‘आमचो बस्तर’ प्रदर्शनी में बस्तर की आदिवासी संस्कृति

Shri Mi
4 Min Read

cm photocc(24)रायपुर। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने आज नया रायपुर स्थित पुरखौती मुक्तांगन परिसर में ‘आमचो बस्तर’ नवीन मुक्ताकाश प्रदर्शनी का लोकार्पण और आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान तथा आदिवासी संग्रहालय का भूमिपूजन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के संस्कृति विभाग का पुरखौती मुक्तांगन देश और दुनिया के लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनेगा। पुरखौती मुक्तांगन में बस्तर और सरगुजा की प्राचीन आदिवासी संस्कृति सहित छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों में रहने वाली जनजातियों की संस्कृति और परम्परा को प्रदर्शित किया गया है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि ‘आमचो बस्तर’ प्रदर्शनी में बस्तर की आदिवासी संस्कृति को दर्शाया गया है। आमचो बस्तर से लोगों को बस्तर को जानने और समझने का अवसर मिलेगा। कार्यक्रम में केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि पुरखौती मुक्तांगन और आमचो बस्तर मुक्ताकाश प्रदर्शनी में समृद्ध आदिवासी संस्कृति को कलात्मक रूप से प्रदर्शित किया गया है। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में पर्यटकों के लिए ‘आमचो बस्तर’ शीर्षक से प्रकाशित मार्गदर्शिका का विमोचन भी किया। मार्गदर्शिका का प्रकाशन राज्य सरकार के संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय द्वारा किया गया है।

Join Our WhatsApp Group Join Now

                                          लोकार्पण समारोह में छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्षगौरीशंकर अग्रवाल, प्रदेश के पर्यटन और संस्कृति मंत्री दयालदास बघेल, गृह, जेल और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री रामसेवक पैकरा, स्कूल शिक्षा और आदिम जाति विकास मंत्री केदार कश्यप, श्रम तथा खेल और युवा कल्याण मंत्र भईयालाल राजवाड़े, राज्य युवा आयोग के अध्यक्ष कमलचंद्र भंजदेव, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, छत्तीसगढ़ राज्य अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष निर्मल सिन्हा सहित अनेक जनप्रतिनिधि और विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारी उपस्थित थे।

                                   मुक्ताकाश प्रदर्शनी आमचो बस्तर में बस्तर अंचल के जनजातीय लोक शिल्पकारों और कलाकारों के सहयोग से वहां की पुरातात्विक और सांस्कृतिक विशेषताओं को दर्शाने वाले मॉडल बनाये गए हैं। प्रदर्शनी में जनजातीय आवास, घोटुल और देवालय के मॉडल बनाये गए हैं। प्रदर्शनी का प्रवेश द्वार जगदलपुर राजमहल के सिंग-डेवड़ी प्रवेश द्वार के प्रतिरूप जैसा बनाया गया है। ’बस्तर दशहरा’ के पूरे 75 दिन की अनुष्ठानिक गतिविधियों को मृदा शिल्प में तैयार कर भित्ती चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।

                                  बस्तर के जनजाति कलाकारों द्वारा बस्तर की लोक गाथा और पारम्पिक लोक इतिहास, ज्ञान पद्धति के आधार पर वहां की परम्परा के अनुरूप मॉडल तैयार किए गए हैं। प्रदर्शनी में धुरवा होलेक (धुरवा जनजाति के आवास का मॉडल), मुरिया लोन (मुरिया आवास संकुल, कोया लोन (माडिया आवास संकुल),  जनजाति अनुष्ठान-जतरा, अबुझमाड़िया लोन, पारंपरिक तरीके से लोहा गलाकर कृषि औजार तैयार करने की आदिवासियों की कार्यशाला, जनजातीय देवालय-माता गुढ़ी, मुरिया युवागृह घोटुल, बस्तर दशहरा के रथ, नारायण मंदिर, बारसूर स्थित प्राचीन गणेश प्रतिमा का प्रारूप ‘गणेश विग्रह’ जनजातीय देवता-रावदेव, डोलकल गणेश, नारायणपुर के समीप स्थित पर्वतीय चोटी – ‘पोलंग मट्टा’, माड़िया स्मृति स्तंभ – उरूस् कल के मॉडल पारम्परिक रूप से तैयार किए गए हैं। मुक्ताकाश प्रदर्शनी में लौह शिल्प की कला कृतियां, मृदाशिल्प, बेलमेटल शिल्प की कलाकृतियां भी प्रदर्शित की गई है। लोक वाद्यय और लोक नृत्यों को भी भित्ती चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। इस अवसर पर आदिम जाति एंव अनुसूचित जाति विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव एन.के. असवाल, सचिव आशीष भट्ट, आयुक्त राजेश सुकुमार टोप्पो, संस्कृति विभाग के आयुक्त राकेश चतुर्वेदी सहित विभिन्न विभागों के अनेक अधिकारी और प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए ग्रामीण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

Share This Article
By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close