(मनीष जायसवाल)कोरोना महामारी को लेकर कम्युनिटी ट्रांसमिशन धीरे धीरे अपने पाव पसार रहा है । ऐसे समय में कम्युनिटी बेस्ड शिक्षा निसन्देह खतरे का घर होगी। नीतिकारो को भली-भांति इस पहलू को समझना पड़ेगा कि सीखने की आदत को बनाये रखने के चक्कर मे कही लेने के देने न पड़ जाए।.. महामारी का एक सबक है “चुक न हो.. . जरा सी चुक आपको दिक्कत में डाल सकती है..! जान पड़ता यह सबक स्कूल शिक्षा विभाग के नीतिकारों पर लागू नही होता है । कुछ दिनों की शिक्षा विभाग की गतिविधियों पर नज़र डालें तो ऐसा लगता है कि, स्कूल के सहारे ही सही सरकार के अफसर राज्य और केंद्र के बीच खाई बढ़ाकर या फिर राज्य सरकार से वाहवाही लूटने के लिए… बिना सिर पैर योजनाओ को धरातल पर उतारने की कवायद कर रहे है। CGWALL NEWS के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
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शायद केंद के समक्ष मॉडल पेश कर यह बताना चाह रहे है हो कि बंद स्कूलों का दरवाजा पीछे के रास्ते से खोल कर कैसे मनगढ़ंत नवाचार अमल में लाया जाता है…?शिक्षा विभाग ने प्रदेश में कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच बंद स्कूलों को मोहल्लों में लगाने के लिए फरमान जारी कर केंद्र सरकार की लाकडाउन की एसओपी को किनारे रखकर 28 जिलों के लगभग 40 हजार प्राइमरी और मिडिल स्कूलों के वार्डो और मोहल्लों में समुदाय आधरित शिक्षा का चोला पहना कर इसकी शुरुवात तो कर दी है लेकिन अंजाम अभी बाकी है।जो गुरुजी नार्मल दिनों में स्कूल में नही टिक पाते है वे कैसे मोहल्लों में क्लास लेंगे,यह कुछ दिनों में पता चल जाएगा।
दूसरी तरफ शिक्षा सचिव 15 अगस्त को पाँच नवाचारों के लोकार्पण के लिए तमाम कोशिशें कर रहे है जिसे कोरोना काल का मॉडल बताया जाए .. और इस मॉडल को कोरोना के इस काल खंड में पूरे देश मे लागू करने के लिए केंद्र सरकार के सामने उदाहरण रखने की कोशिश की जायेगी ।इरादे तो अच्छे है किंतु अमल में लाना खासी एक्सरसाइज का काम है।शिक्षा अधिकारियों को प्रमुख सचिव डॉ आलोक शुक्ला की मिली खुराक के बाद विभागीय अमला नए नवाचारी प्रयोगों को पटरी पर लाने के लिए शत प्रतिशत लक्ष्य हेतु तेजी से कार्य करना आरम्भ कर दिया गया है। तमाम ऐसे निर्देश जारी हो रहे है जिससे दबाव बने । ऐसे गुरुजी जो शासन के कार्यो में रुचि नही लेंगे उनका वेतन रोकने के साथ कड़ी कार्यवाही किये जाने कहा जा रहा है।
स्कूलों के मामले में विधानसभा में मुखर रहने वाले बेलतरा के विधायक रजनीश सिंह ने एक चर्चा के दौरान बताया कि राज्य में कोरोना ग्राफ बढ़ गया है। अपनी इस नाकामी वाली उपलब्धि को छुपाने के लिए सरकार कुछ अफसरों को आँय बॉय सांय योजना बनाने को कह रहे है। शिक्षा विभाग के नवाचारी प्रयोग बड़े उदाहरण है। ये एक दो गांव या किसी ब्लॉक में सफल हो सकते है पर पूरे राज्यों में लागू हो,यह संभव है…?बेलतरा विधायक ने बताया कि यह वक़्त बच्चो की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने का समय है। बे लगाम हो चुके अधिकारी ऊल जुलूल निर्देश दे रहे है। आन लाइन के हाई टेक तरीके से सीधे गली और मोहल्लों में आ गए है। जब स्कूल तमाम सुविधाओं के बाद सुरक्षित नही तो पढ़ाई तुंहर पारा के मोहल्ला पारा कैसे सुरक्षित होंगे,सरकार बताए …?
विधायक रजनीश सिंह ने बताया कि प्रदेश की ग्रामीण पृष्ठभूमि से अंजान अधिकारी एसी चेंबरों में बैठ कर निर्णय ले रहे है। ये वही शिक्षक है जो कोरोना वारियर बन के कई मोर्चे पर प्रथम पंक्ति पर काम कर रहे है।लाऊड स्पीकर से पढ़ाई का नवाचार मास्टरों के मत्थे नही हो सकता, पंचायतों के पास पहले ही फंड नही है।लाऊड स्पीकर पढ़ई केवल समाचार पत्रों की सुर्खियों में अच्छा लगता है बच्चो को इससे कोई लाभ होने वाला नही है । मुख्यमंत्री से वाहवाही लूटने की कवायद को नवाचार का नाम देना बेमानी है।
आपको बताते चले कि पढ़ाई तुंहर पारा और लाऊड स्पीकर के नवचार से शिक्षक खुश नही है। विरोध के स्वर शिक्षक संघो में आ गए है। क्योंकि इन सब मे कई झमेले भी है। शिक्षको को इस व्यवस्था का पूरा।इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना है। जैसे मोहल्लों में जगह का चयन, समुदाय से सहयोगी का चयन, बैठने के लिए चटाई, पीने का पानी,चाक,डस्टर ब्लेक बोर्ड और सबसे महत्वपूर्ण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना यह सारा दारोमदार स्कूल के मास्टरों का होगा जो ऑनलाइन के साथ मोहल्ला में भी पढ़ाएंगे और पंचायतों के बजट में सहयोग की अपेक्षा से सारा खर्च खुद वहन करने वाले है।लाउडस्पीकर स्कूल के कांसेप्ट में आवश्यक सामग्री का जुगाड़ स्कूलों को पंचायतों के सहयोग से करना होगा।चयनित जगहों में हरबोलवा की सहायता से आरम्भिक शिक्षा बच्चो की दी जाएगी। इस प्रयोग में कोई दुर्घटना घट जाए तो भी तकलीफ़ मास्टरों को ही है।कई गावो में पंचायते न तो जगह देने तैयार न ही अनुमति, ऐसी कवायादों को जिससे गावो में महामारी का खतरा बढ़े.